लॉक डाउन..लॉक डाउन...लॉक डाउन....लॉक डाउन ? / EDITORIAL by Rakesh Dubey

31 मई को लॉक डाउन-4 भी समाप्त हो जायेगा। वास्तव में ये सारे लॉक डाउन तो कोविद-19 के संकट से निपटने के अल्पावधि उपाय थे, जो किए गये हैं। भारत में वायरस का प्रसार धीमा करने के लिए ये लॉकडाउन को मजबूती से लागू किये गये । ऐसा करके केवल थोड़ा समय बचाया गया जिसमें वायरस से निपटने की तैयारी की गई। वास्तव में वायरस से निजात तभी मिलेगी जब टीका बने या अधिकांश आबादी प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ले। इसमें महीनों से लेकर वर्षों तक का समय लग सकता है। लॉकडाउन का अर्थव्यवस्था पर ऐसा असर दिख रहा है कि मध्यम और दीर्घावधि के उपाय और मुश्किल होते दिख रहे हैं। भारत को एक संतुलित रुख अपनाने की आवश्यकता है जिससे वायरस का प्रसार धीमा हो और आर्थिक गतिवधियां गतिशील हों।

अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2021 की पहली तिमाही में भारत का सकल घरेलू उत्पाद 20 प्रतिशत तक गिरेगा। सुधार की गति इस बात पर निर्भर होगी कि लॉकडाउन समाप्त होने के बाद मामले किस गति से बढ़ते हैं। इस गिरावट का बोझ कौन वहन करेगा? लॉकडाउन के असर से आकलन करें तो इसका बोझ मेहनतकश वर्ग खासकर दैनिक मजदूरों और प्रवासी श्रमिकों पर पड़ेगा। छोटे कारोबारी उपक्रमों की आय, कंपनियों के मुनाफे और कर राजस्व पर भी असर होगा। फिलहाल तो भय का माहौल बनाकर इनका राजनीतिक प्रबंधन किया जा रहा है जिससे तमाम असहमतियां रुकी हुई हैं।

केंद्र-राज्य के रिश्तों पर भी इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है। कोविड महामारी ने यह दर्शाया है कि भारत को केंद्रीकृत तरीके से नहीं चलाया जा सकता है और केंद्र तथा राज्यों के बीच सक्रिय और रचनात्मक सहयोग अनिवार्य है। अर्थव्यवस्था पर इसका असर इस बात पर निर्भर करेगा कि लॉकडाउन में शिथिलता के विभिन्न चरण कैसे लागू किए जाते हैं और क्या रोजगार बहाल करने को प्राथमिकता दी जाती है या राजकोषीय व्यय में इजाफा करने से बचा जाता है।

पिछली 12 मई को प्रधानमंत्री ने 20 लाख करोड़ रुपये के एक प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की। विस्तृत ब्योरों से पता चलता है कि घोषित प्रोत्साहन पैकेज का 40 प्रतिशत हिस्सा अतिरिक्त व्यय नहीं है बल्कि वह रिजर्व बैंक द्वारा फरवरी 2020 से घोषित उपायों का हिस्सा है। वित्त मंत्री की घोषणाएं यह दर्शाती हैं कि शेष राशि का बड़ा हिस्सा भी प्रत्यक्ष राजकोषीय प्रोत्साहन के बजाय ऋण उपलब्ध कराने के उपाय, दीर्घावधि के विकास कार्यकम, रक्षा उत्पादन में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मानकों को शिथिल करना तथा अंतरिक्ष कार्यक्रम में निजी भागीदारी आदि शामिल हैं। इन घोषणाओं का कोविड-१९ की तात्कालिक चुनौती से कोई सरोकार नहीं है।

अगर अतिरिक्त आय या गरीब परिवारों के हाथ में जीडीपी के एक फीसदी के बराबर भी नकदी सौंपी जाती तो वह वास्तविक राजकोषीय प्रोत्साहन होता। स्टेट बैंक के अर्थशास्त्र के विभाग ने ऐसी ही अनुशंसा की थी। सरकार ने जो पैकेज घोषित किया है उसमें बहुत सारा व्यय ऐसा है जो फरवरी के बजट में भी शामिल था। इसके अलावा 9 मई को सरकार ने कहा कि बाजार उधारी को 7.8 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 12 लाख करोड़ रुपये किया जा रहा है जो जीडीपी के करीब 2 प्रतिशत के बराबर है। यह अंतर शायद राजस्व प्राप्ति में अनुमानित कमी को पूरा करने से संबंधित हो। राजस्व की कमी के कुछ अनुमान बताते हैं कि बढ़ी उधारी का अधिकांश हिस्सा इस कमी को पूरा करने में इस्तेमाल होगा। स्पष्ट है कि सरकार राजकोषीय विस्तार से बचना चाहती है और वह अर्थशास्त्रियों के उन सुझावों पर गौर नहीं कर रही है कि जीडीपी के 3 से 5 प्रतिशत के बराबर प्रोत्साहन प्रदान किया जाए। सरकार के मुताबिक उसका पैकेज लोगों को मजबूत बनाने के लिए है लेकिन फिलहाल हमें प्रवासी श्रमिकों के लिए पुनर्वास पैकेज की आवश्यकता है। लॉकडाउन के चलते हजारों और भी लोग बेरोजगार हुए हैं। उन्हें भी इसकी आवश्यकता है।
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !