विभागीय प्रवीणता और प्रशासन में तालमेल जरूरी / EDITORIAL by Rakesh Dubey

देश की गंभीर होती अर्थव्यवस्था और प्रशासनिक हस्तक्षेप से अनेक पेंचीद्गियाँ उलझने लगी हैं। उदहारण के लिए नागरिक विमानन सेवा। सरकार द्वारा 25 मई से विमानन सेवाओं की 'आंशिक' शुरुआत की घोषणा से सम्पूर्ण विमानन जगत चकित हो गया । इस चकित होने कारण साफ़ है कि इससे पिछली घोषणा में कहा गया था कि विमानन सेवाएं जून से शुरू हो सकती हैं। देश की विमानन कंपनियां कोविड-19 महामारी के आगमन से पहले से ही आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रही थीं और देशव्यापी लॉकडाउन ने उनकी दिक्कतों को बड़ाया है कम नहीं किया। 

नागरिक उड्डयन मंत्री ने घोषणा की है कि विमानन सेवाओं की शुरुआत एक तिहाई परिचालन के साथ होगी। इस दौरान विमान में और हवाई अड्डे पर कड़े सुरक्षा मानकों का पालन करना होगा। नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने एक परिपत्र में कहा है कि विमानन कर्मियों और यात्रियों को कुछ मानकों का पालन करना होगा। फेस मास्क, दस्ताने, सुरक्षा कतार में सामाजिक दूरी, तापमान की अनिवार्य जांच, आरोग्य सेतु ऐप को डाउनलोड करना, साथ ले जाने वाले सामान की मात्रा सीमित करना, यात्रा के दौरान भोजन नहीं देना आदि कदम उठाए जाएंगे। ये कदम कम से कम इतने तो अनिवार्य तौर पर अपेक्षित ही है।

दूसरे भाग का यह वक्तव्य गले नहीं उतर रहा है कि विमान किराये को तीन महीने तक सीमित रखा जाएगा। इस सीमा को सात श्रेणियों में बांटकर लागू किया गया है। जिसमें 40 मिनट से कम की उड़ान और इसके बाद 30 मिनट की वृद्धि वाली छह अन्य श्रेणियां शामिल हैं। सरकार को इतना ही काफी नहीं लगा तो सरकार ने एक दूसरी सीमा भी तय कर दी जैसे-40 प्रतिशत सीटों की बिक्री उच्चतम किराये के ठीक आधे दाम पर की जाएगी। कीमतों पर सीमा चाहे जितनी अस्थायी हो, यह केवल सीमित प्रतिस्पर्धा की स्थिति में ही लागू की जाती तो बेहतर होता ।

विमानन उद्योग पर यह बात लागू नहीं होती है। जैसे अकेले दिल्ली-मुंबई मार्ग पर सात से अधिक विमानन कंपनियां कई सीधी उड़ान संचालित करती हैं। ऐसे में कीमतों के अतिशय ऊंचा होने की आशंका वैसे भी कम रहती है। बहुत संभव है कि विमानन कंपनियां 50 दिनों के लॉकडाउन के बाद हालात का फायदा उठाने के लिए कुछ हद तक कीमतों में इजाफा करें, परंतु प्रतिस्पर्धी ऑनलाइन टिकटिंग सेवा द्वारा घट-बढ़ मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया के कारण किसी तरह के व्यावसायिक समूहन की आशंका निर्मूल हो जाती है। दूसरे शब्दों में, आपूर्ति शृंखला में शामिल तमाम एजेंटों के लिए एक साथ कीमतों में इस तरह के बदलाव करना बहुत मुश्किल है। यदि विमानन कंपनियां टिकट बहुत मंहगी दर पर बेचती हैं तो मांग और आपूर्ति का नियम स्वत: इसे नियंत्रित करेगा, क्योंकि यात्री उड़ान भरने या न भरने के लिए स्वतंत्र हैं। दोनों सिरों पर मूल्य नियंत्रण जटिलताएं बढ़ाएगा।इस बात को विमानन विभाग के प्रशासनिक अमले को सोचना चाहिए था।

आर्थिक सुधार से जुड़ी व्यापक अनिश्चितताओं को देखते हुए यह जोखिम भी है कि तीन महीनों की इस सीमा का आगे विस्तार किया जा सकता है। सरकार यदि उदारीकरण के शुरुआती दिनों को याद करे तो वो एक अच्छा सबक होगा। उस समय निजी विमानन कंपनियों में तेजी और गिरावट का दौर काफी हद तक सरकार के मूल्य नियंत्रण से भी संबद्ध था। उसके चलते अनेक निजी विमानन कंपनियां सरकारी विमानन कंपनी के न्यूनतम किराये से कम किराया नहीं रख पाती थीं। सरकार अगर कोविड-19 संकट के बीच लैंडिंग शुल्क कम करने और करों में कटौती आदि की विमानन उद्योग की मांग नहीं सुनती तो यह उसका अधिकार है लेकिन किराये की सीमा निर्धारित करने का निर्णय सरकार की नाकामी की पोल खोलता है | ये सरकार के पहले बोल वचनों से मेल नहीं खाता क्योंकि स्वयं प्रधानमंत्री कई बार कह चुके हैं कि सरकार औद्योगिक गतिविधियों में कम से कम हस्तक्षेप करेगी। सरकार को बुनियादी रूप से विभाग और प्रशासन दोनों से सुधार करना चाहिए, वर्तमान परिस्थिति में ऐसा करने की आवश्यकता भी है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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