दुष्काल : छद्म स्वदेशी नहीं, सच में स्वदेशी चाहिये / EDITORIAL by Rakesh Dubey

NEWS ROOM
दुष्काल से निपटने के लिए सरकार ने एक बड़े पैकेज के साथ आर्थिक सुधार के लिए कदम उठाये हैं भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने एक तरह से इसे समर्थन भी दिया है। अपने इस पैकेज के साथ सरकार का सारा जोर‘ आत्मनिर्भरता’ और ‘स्वदेशी’ पर है। सच में स्वदेशी ही वो माध्यम है जिससे इस आपदा और इससे से इतर भी राष्ट्र को स्थायी और सच्चे समग्र विकास की और ले जाया जा सकता है। वर्तमान में भारत और विश्व की सारी विकास अवधाराणाओं के केंद्र में मानव है। 

कोविड- 19 ने मानव केन्द्रित विकास को जमीन पर ला दिया है। प्रकृति ने भारी खिलवाड़ के बावजूद अपने दयालु हाथ नहीं समेटे। दिल्ली, भोपाल और अन्य कई उन नगरो में निर्मलता के आंकड़ों में बेहद सुधार आया कुछ समय पहले अमेरिका की शोध संस्था एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट ने वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक जारी किया था। इसमें उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में रह रहे लोगों की औसत आयु लगभग सात वर्ष तक कम होने की आशंका जतायी गयी थी। इस रिपोर्ट के अनुसार, कई राज्यों के कई जिलों में लोगों का जीवनकाल घट रहा है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कुछ समय पहले एक और गंभीर तथ्य की ओर इशारा किया था कि भारत में 34 प्रतिशत मौत के लिए प्रदूषण जिम्मेदार है। ये आंकड़े किसी भी देश- समाज के लिए बेहद चिंताजनक हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का आकलन है कि प्रदूषण के कारण हर साल दुनिया भर में 70 लाख लोगों की मौत हो जाती है, जिसमें 24 लाख लोग भारत के हैं। लॉक डाउन के दौरान प्रकृति ने अपनी अमूल्य भेंट हमें फिर से दी है। स्वदेशी की धारणा का विस्तार ही प्रकृति केन्द्रित विकास है। 

स्वदेशी का मुद्दा प्रधानमंत्री द्वारा उठाने पर गृह मंत्री ने अहम ऐलान किया कि अब सेन्ट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्सेज के कैंटीनों में सिर्फ स्वदेशी सामानों की बिक्री होगी। नया नियम 1 जून से लागू होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भावगत के स्वदेशी सामानों को अपनाने की बात कुछ दिन पहले कही थी। इसी पर प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से ‘लोकल फॉर वोकल’ की बात कही। स्वदेशी जागरण मंच ने गृह मंत्रालय की तर्ज पर रक्षा मंत्रालय की आर्मी कैंटीन और अन्य मंत्रलाय में भी स्वदेशी लागू करने की बात कही है। स्वदेशी अपनाने के लिए घर-घर प्रचार करने से लेकर सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर स्वदेशी और विदेशी वस्तुओं की सूची भेजने का अभियान संघ ने शुरु कर दिया है। 

इस विषय पर बरसों से काम कर रहे श्री के एन गोविन्दाचार्य स्वदेशी और इसके विस्तार प्रकृति केन्द्रित विकास के सम्पूर्ण अध्येता और मार्गदर्शक हैं। उन्होंने इस विषय के तत्वों को पुन: रेखांकित किया है। गोविन्द जी ने फिर दोहराया है कि “स्वदेशी का तत्व जमीन, जल, जंगल, जानवर, जीविका और जीवन परिवार से अभिन्न रूप से जुड़ा है और स्वदेशी का तत्व केवल देश में बने वस्तुओं का उपयोग करने तक सीमित नहीं है, बल्कि भाषा, भूषा, भोजन, भवन, भेषज और भजन को अपने अंदर समेटता है ! भारतीय संदर्भ में स्वदेशी के ही समान महत्वपूर्ण सिक्के का पहलू है-विकेंद्रीकरण स्वदेशी और विकेंद्रीकरण के मेल से ही भारत में अहिंसक समृद्धि आ सकती है और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषार्थो को सिद्ध किया जा सकता है! स्वदेशी का अर्थ विदेशी उद्योगपति की जगह भारतीय उद्योगपति को प्रतिस्थापित करना ही उद्देश्य नहीं है बल्कि भारतीय संदर्भ में 1991 में ही स्वदेशी का तकाजा घोषित किया जा चुका है वह है:-“चाहत से देशी-अर्थात एक 15-20 कि मी में प्रकृति से उत्पन्न वस्तुओं का सेवन। जरूरत से स्वदेशी- अर्थात देश में देश के लोगों के द्वारा देशी संसाधन का उपयोग करते हुए स्वामित्व के गौरव के साथ आर्थिक व्यवस्था से जुड़ना| मजबूरी में विदेशी- अर्थात मजबूरी में विदेशी चीजों का इस्तेमाल और मजबूरी कम होती चले इसके प्रयास ही आगे की सही दिशा होगी !भारत विविधतापूर्ण देश है ! लगभग दुनिया के क्षेत्रफल का 2 प्रतिशत भारत है, लेकिन दुनिया के जैवविविधता की 16 प्रतिशत किस्में भारत में उपलब्ध है। देश की औषधीय वनस्पतियों का तो कहना ही क्या ! भारत में 127 भू-पर्यावरणीय कृषि क्षेत्र है ! इस कारण 40 प्रतिशत से भी ज्यादा गोवंश नस्लों की उपलब्धता हैं ! भारत की दुनिया में विशेषता है- गौमाता और गंगाजी! स्वदेशी के तत्वज्ञान के अनुकूल सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व्यवस्थाएं गढ़ने का समय आया है ! इसमें समाज और सरकार दोनों को अपनी भूमिका निभाना है !”

वास्तव में यही स्वदेशी का दर्शन है, और प्रकृति केन्द्रित विकास का विस्तार यही से शुरू होता है। मगर आज जरूरत है ऐसी व्यावहारिक कार्य-योजना की, जिससे 2021-22 में पूर्व की भांति विकास दर छह से सात प्रतिशत हो जाए। सरकार इस होड़ में ऐसे बाजारवाद समर्थक छद्मवेशी लोगों के चंगुल में आ सकती है जो पूर्व में स्वदेशी के नाम पर करोड़ों रूपये के “एकीकृत निगमित व्यापार” खड़े कर चुके हैं। स्वदेशी की मूल धारणा विकेंद्रीकरण है। सरकार को संभलना होगा, देश में बहुत से “कालनेमि” साधु वेश में हैं। अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्रियों ने भारत और चीन को छोड़ शेष अर्थव्यवस्थाओं में तेज गिरावट का अंदेशा जताया है। सच्चे स्वदेशी प्रयासों से इसे भी संभाला जा सकता है। 
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!