कुछ ऐतिहात जो अब बेहद जरूरी हो गये हैं | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। निजामुद्दीन के तबलीगी मरकज की बात हो, दिल्ली से थोक में वापिसी हो, या इंदौर में जनता कर्फ्यू के बाद का जश्न हो और इनके बाद फैले कोरोना संक्रमण की बात हो। एक बात समान है, जानबूझ कर लापरवाही। इस लापरवाही के नतीजे किसी एक को नहीं सबको भुगतना होंगे। चीन से काफी जानकारी बाहर आ चुकी है, स्पेन और इटली से भी इससे जुड़े रिसर्च पेपर प्रकाशित हुए हैं, जिसमें मुख्य रूप से तीन बातें ही स्पष्ट हो रही हैं- आइसोलेशन, क्वारंटाइन और सोशल डिस्टेंसिंग।

अब तो अगले कुछ हफ्ते भारत के लिए और महत्वपूर्ण हो गये हैं। ट्रेनों के माध्यम से दिल्ली और मुंबई से जो लोग बिहार और उत्तर प्रदेश के दूरदराज इलाकों में पहुंचे हैं, उनके मामले अभी तक सामने आयेंगे। आलमी मरकज से गैर प्रभावित और प्रभावित सुदूर गाँव,शहर, प्रदेशों के साथ विदेश भी पहुंचेंगे। दूरदराज गांवों की बात छोड़ दे कुछ कस्बों तक में जांच और इलाज की सुविधा उपलब्ध नहीं है| ऐसे में सुझाव और सलाह के तौर पर आज सबसे महत्वपूर्ण है कि लोगों से दूरी बनाकर रखी जाये और घर में ही रहा जाये।

अब बेहद जरूरी हो गया है जो लोग कोरोना संभावित हैं, उन्हें क्वारंटाइन किया जाये। सरकार को चाहिए कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए की गई तैयारी का भी मूल्यांकन करे। अभी हमारी स्वास्थ्य सुविधाएं कहां ठहरती हैं। इसे छुपाना नहीं चाहिए, जहां भी सुधार की गुंजाइश हो, वहां सक्रियता के साथ सुधार किया जाना चाहिए।

सम्भावना पर विचार करना जरूरी है, अगर मामले बढ़ते हैं, तो ऐसे में हालात को संभालने के लिए विभिन्न स्तरों पर और भी प्रयास की दरकार होगी। कोविड-१९ से जब दुनिया उबर जायेगी, तो उसके बाद के क्या हालात होंगे, इसका आर्थिक, मानसिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभावों का व्यापक स्तर पर आकलन अभी से करना जरूरी हो गया है। यह निश्चित बात है स्वास्थ्य के क्षेत्र में ऐतिहासिक बदलाव होगा, इसकी पूरी संभावना है।

लॉकडाउन की बात करें, तो शहरों और गांवों में रहन-सहन का तरीका बिल्कुल अलग है। शहरों में एकल परिवार का चलन है, लोग दो कमरे के मकान में रहते हैं| झुग्गियों में रहनेवाले लोग एक ही कमरे में रहते हैं| मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिहाज से इस छोटी सी जगह में रह पाने की कठिनाइयाँ बहुत हैं| लोगों में अवसाद और तनाव बढ़ रहा है| इसकी वजह अमूमन, लोग आठ से दस घंटे काम के सिलसिले में घर से बाहर रहते थे। मुंबई-दिल्ली जैसे बड़े शहरों में मूवी, मॉल और मदिरा का चलन है| इसे लोग मन बहलाने का माध्यम मानने लगे हैं। नये विषयों को पढ़ने, लिखने और इकट्ठा होकर बौद्धिक चर्चा करने का अब चलन समाप्त सा है ऐसी स्थिति में बेचैनी बढ़ रही है। 

ऐसे में विशेषज्ञों की सलाह है अपने बच्चों और परिजनों से बात करें, लेकिन एक-दूसरे को मानसिक जगह (मेंटल स्पेस) दीजिये। वस्तुत: यह आत्म साक्षात्कार का समय है। खुद को जानिये और नयी चीजें सीखिये। अपना विश्लेषण कीजिये, यह व्यक्तिगत स्तर, सामुदायिक स्तर और देश के स्तर पर भी होना चाहिए।

यह समय सामनांतर चीजों को देखने और समझने का है| साफ-सफाई नहीं होने से कई और समस्याओं के बढ़ने का अंदेशा है| जो पहले से ही बीमार हैं, खासकर कैंसर रोगी, किडनी और अन्य रोगों से जूझ रहे हैं। ऐसे लोगों को विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है| एक मनोवैज्ञानिक का कथन है कि लोग जरूरत के हिसाब से ऊपर चढ़ते हैं, लेकिन संकट के वक्त में लोग वापस नीचे आ जाते हैं। अभी हमें मूलभूत जरूरतों पर जिंदा रहना है, देश के हर राज्य में विशेष खान-पान का चलन है, लोग उस पर निर्भर रह सकते हैं। इस सारी व्यवस्था को सकारात्मक नजरिये से देखिए, यह आत्मनिरीक्षण का समय है दूसरों के दोष देखने के लिए आगे समय आएगा। अभी अपने को देखें।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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