बस एक खिड़की खुली है, उस पर रहम कीजिये ! | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। कोरोना के कारण घर बंद, मोहल्ला बंद, शहर बंद, देश बंद, दुनिया बंद, सब बंद बस एक छोटी सी खिड़की खुली है, जिससे हम अपनों की खैरियत जान रहे हैं। इसी से सामाजिक प्राण वायु अंदर बाहर आ जा रही है। इसका नाम इंटरनेट है। लॉकडाउन और संगरोध [सोशल डिस्टेंसिंग] के इस माहौल में यही इंटरनेट तो प्राणवायु के समान काम कर रहा है। दूरदराज बैठे अपनों की खैरियत,  मनोरंजन, बातचीत दफ्तर का कामकाज सभी तो इस पर निर्भर है। सोचो, अगर इंटरनेट अपनी पूरी रफ्तार के साथ नहीं दे तो क्या होगा?  वो भी इस हाल में !

पूरी दुनिया के लोग जिस अंदाज में अपने स्मार्टफोन और कंप्यूटर पर इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं, ऐसा लगने लगा है कि इंटरनेट पर बढ़ता बोझ सारे तकनीकी ढांचे को ही कहीं ध्वस्त न कर दे। सारी प्रणालियाँ इंटरनेट बढ़ती मांग को पूरा करने में नाकाम हो जाये ४ जी तथा ब्रॉडबैंड कनेक्शनों की बैंडविड्थ इतनी ज्यादा खर्च हो जाये कि तब हमारे पास वीडियो देखने और चैट करने के लिए तो छोड़िये, बेहद जरूरी कामों और इलाज   के लिए भी गुंजाइश न रहे।

भारत के सेलुलर ऑपरेटर एसोसिएशन ने दूरसंचार मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा है कि वीडियो स्ट्रीमिंग तथा ओवर द टॉप एप्स का संचालन करनेवाली कंपनियों को यह निर्देश दिया जाये कि वे अपनी स्ट्रीमिंग का रिजोल्यूशन कम करें ताकि दबाव कम हो सके। देश भर के लोग अगर कम रिजोल्यूशन पर वीडियो या फिल्में भी देखें, तो उसके जल्दी और सटीक परिणाम नहीं मिलेंगे, परंतु अगर चंद कंपनियां, जो इस बाजार को कंट्रोल करती हैं, वे अपने स्तर पर फैसला कर लें, तो बैंडविड्थ की खपत  कम हो सकती है।

वैसे भी आजकल इंटरनेट पर वो ही देखा जा रहा है, जिस  पर सबसे ज्यादा बैंडविड्थ या डेटा खर्च होता है, जैसे कि वीडियो कॉल, नेटफ्लिक्स जैसे ओटीटी एप्स की फिल्में और कार्यक्रम, यूट्यूब के वीडियो, वर्क फ्रॉम होम के टूल्स, छात्रों की ओंन लाइन कक्षाएं, जिम तथा योग, सब  वीडियो के जरिये चल रहा हैं| सबका मूलाधार इंटरनेट और आपका डेटा प्लान है

आम तौर पर पहले इंटरनेट पर जितना डेटा डाउनलोड होता था। अब डेटा डाउनलोड कम से कम डेढ़ गुना बढ़ गया हैं। इंटरनेट के मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर की एक सीमा है। हम लगभग उस सीमा के करीब पहुंच  गये हैं। कभी भी हम उस सीमा को लांघ सकते हैं? और तब इंटरनेट का सारा ढांचा भरभराकर गिर सकता है और हमारी दुनिया कोरोना वायरस के साथ-साथ संचार और सूचना के एक बहुत बड़े संकट में जा सकती है।

फेसबुक कह चुका है कि भारी मांग के कारण उसकी सेवाओं पर असर पड़ा रहा है। इस समय भारत में औसतन प्रति व्यक्ति १०.७ गीगाबाइट डेटा का मासिक इस्तेमाल किया जा रहा है। अगले एक महीने में यह कम से कम डेढ़ गुना बढ़ सकता है। हमारे देश में मौजूदा दूरसंचार ढांचा इतना सक्षम नहीं है कि वह तेजी से बढ़ी मांग का सामना कर सके और समुचित स्पीड से नेटवर्क एवं कनेक्टिविटी मुहैया करा सके। यूरोपीय संघ ने कुछ दिन पहले सभी वीडियो शेयरिंग वेबसाइटों और प्लेटफॉर्मों से अपील की थी कि वे हाइ डेफिनेशन वीडियो की स्ट्रीमिंग करना बंद कर दें। जब जरूरी न हो, तब एचडी वीडियो का इस्तेमाल न किया जाये।

आप अपने टेलीफोन कॉल्स के ड्रॉप होने की फजीहत  से परिचित हैं, इस समस्या का निदान सरकार की ओर से दूरसंचार कंपनियों को दी गयीं तमाम चेतावनियों के बावजूद भी नहीं निकला। अब  यही हालत इंटरनेट सेवाओं के साथ हो सकती है। इस आशंका के समुचित समाधान के लिए पहलकदमी तुरंत जरूरी है |वरन  घर में बंद रहते हुए, अपनों की खैर-खबर, रोजमर्रा के काम घर से दफ्तर का काम और संक्रमण की रोकथाम पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा। जैसे आपने कभी पानी बचाने की पहल की थी, डेटा आपको प्राणवायु यही से मिलेगी।शुरुआत अपने से करें, और सरकार से अपील इस पर विचार कीजिये, अगर यह खिड़की बंद हो गई तो मुश्किल होगी।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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