भोपाल। 26 मार्च तक स्थगित विधानसभा सत्र को 17 मार्च को बुलाने और अपना बहुमत सिद्ध करने का आदेश महामहिम राज्यपाल ने तीसरी बार पत्र लिखकर मध्यप्रदेश सरकार को दिया है, इसके बावजूद भी 31 मार्च तक शक्ति परीक्षण के कोई आसार नजर नहीं आते और वैसे भी यह लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुकी है। सरकार की हीलाहवाली का जिक्र करते हुए राज्यपाल ने साफ़ किया है कि अब बहानेबाजी का मतलब है आपके दल के पास बहुमत नहीं है। बहुमत अल्पमत जब साबित हो सरकार बने या जाए, हर स्थिति में चूना नागरिकों को लगना है जो पिछले कई दिनों से लगता आ रहा है। मध्यावधि चुनाव हो या उपचुनाव चूना जनता को ही लगता है। साफ़ दिखते अल्पमत को न मानना कभी किसी बहाने तो कभी किसी बहाने टालमटोली, विधायकों की यहाँ-वहां चार्टर्ड हवाई यात्रायें कौन से प्रजातंत्र की जरूरत है। विधानसभा में 16 मार्च की उपस्थिति बहुमत का आईना है, विधानसभा सचिवालय के अधिकृत सूत्रों के अनुसार कुल उपस्थिति 204 कांग्रेस 92 भाजपा 107 सपा 1 निर्दलीय 4 । इतने साफ़ चित्र को किस स्पष्टीकरण की जरूरत है।
एक और महत्वपूर्ण बात इन सारे माननीय विधायकों मंत्रियों ने शपथ ली हुई है कि उनके कार्य भय,राग और द्वेष से मुक्त होंगे। पिछले एक सप्ताह में हुए तबादले, नियुक्तियां, कार्य मुक्तियाँ किस आचरण के प्रतीक है। ये सारे काम क्या प्रजातंत्र के मखौल नहीं है। सोचिये, 24 घंटे में 3 बार राज्य की सर्वोच्च प्रशासनिक सता की सलाह की अनदेखी कौन सा प्रजातांत्रिक कृत्य है? कुल मिलाकर ये सारे दृश्य प्रजातंत्र को चबाना ही तो है। राज्यपाल की गुस्से भरी दूसरी चिठ्ठी के बाद रात 9:30 पर कमलनाथ राज्यपाल से मिले नतीजा क्या रहा किसी को नहीं पता।कमलनाथ का तर्क है कि भाजपा के पास बहुमत है तो उसे अविश्वास प्रस्ताव लाना चहिये। मुद्दा जहाँ के तहां खड़ा है, नतीजा कोई निकालना नहीं चाहता।
कल मध्य प्रदेश विधानसभा को कोरोना वायरस की वजह से 26 मार्च तक स्थगित कर दिया गया था। फ्लोर टेस्ट की चुनौती झेल रहे सीएम कमलनाथ के लिए यह बड़ी राहत थी। यह राहत ज्यादा देर नहीं ठहरी। राज्यपाल ने 17 मार्च को पिछले दोबार से टाले जा रहे बहुमत सिद्ध करने के आदेश को दोहरा दिया। वैसे अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर दाखिल याचिका में कहा गया है, महामहिम राज्यपाल ने स्पष्ट कहा था कि कि 16 मार्च को फ्लोर टेस्ट कराया जाए लेकिन विधानसभा अध्यक्ष फ्लोर टेस्ट नहीं करा रहे है। शिवराज सिंह चौहान की ओर से सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि फ्लोर टेस्ट जल्दी कराए जाए।
16 मार्च को महामहिम राज्यपाल को सदन में अभिभाषण पढ़ते हुए एक मिनट ही हुआ था कि भाजपा विधायक दल के मुख्य सचेतक डॉ नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि राज्यपाल ऐसी सरकार का अभिभाषण पढ़ रहे हैं जो अल्पमत में है। हालांकि राज्यपाल ने अभिभाष्ण से इतर विधायकों से अपील की कि वह नियमों का पालन करें और शांति से काम लें। उन्होंने विधायकों से लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने के लिए संवैधानिक परंपराओं का पालन करने का आग्रह किया।
इस अपील के बाद राज्यपाल सदन से बाहर निकल गए। इसके बाद सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप प्रत्यारोप हुए तथा हंगामा होने। इस बीच, प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री डॉ गोविंद सिंह ने देश में कोरोना वायरस के खतरे तथा इस मामले में केन्द्र सरकार द्वारा जारी किए गए दिशा निर्देशों का हवाला दिया। हंगामे के बीच ही विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति ने व्यापक जनहित में 26 मार्च तक सदन की कार्यवाही स्थगित करने की घोषणा कर दी। 26 मार्च को राज्यसभा चुनाव के लिए मतदान होना है।
सर्व विदित है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गत मंगलवार को कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था और बुधवार को बीजेपी में शामिल हो गये। उनके साथ ही मध्यप्रदेश के 22 कांग्रेस विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था, जिनमें से अधिकांश सिंधिया के कट्टर समर्थक हैं। शनिवार को अध्यक्ष ने छह विधायकों के त्यागपत्र मंजूर कर लिए जबकि शेष 16 विधायकों के त्यागपत्र पर अध्यक्ष ने फिलहाल कोई निर्णय नहीं लिया है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।