बजट और राजनीतिक दबाव | EDITORIAL by Rakesh Dubey

बाजै की हालत देखते हुए  अब यह विश्वास हो गया है कि विभिन्न चुनौतियों के बीच २०२०-२१ का केंद्रीय बजट तैयार हुआ था ।इसके बाद  अर्थव्यवस्था में अचानक बड़ी सुस्ती आई है। कर राजस्व अनुमान से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का ०.७ प्रतिशत कम रहने के आसार हैं। हालांकि इसमें आर्थिक मंदी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का कितना-कितना योगदान है, उसका आसानी से निर्धारण नहीं किया जा सकता है। सरकार के लगातार चुनाव लडऩे की मुद्रा में होने और प्रधानमंत्री कार्यालय की अत्यधिक सक्रियता की वजह से बजट प्रक्रिया पर राजनीतिक दबाव था और बरकरार है। 

हालांकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दिखाया है कि उनके पास उन हित समूहों के लिए समय नहीं है, जो विशेष या किसी क्षेत्र को लाभ देने की मांग कर रहे हैं।   इस पर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है कि इस समय बेहतर रणनीति क्या है- मांग को बढ़ाने के लिए कुछ समय राजकोषीय बाधाओं की अनदेखी की जाए या संकट की इस घड़ी में ढांचागत सुधारों को आगे बढ़ाते हुए राजकोषीय स्थिति को नियंत्रण में रखा जाए। 

ऐसा लगता है कि वित्त मंत्री ने अपने सामने मौजूद स्थिति को देखते हुए दोनों विकल्पों के बीच का रास्ता चुना है। कागजों में राजकोषीय नियंत्रण की राह में केवल उतना ही बदलाव किया है, जितना राजकोषीय जिम्मेदारी एïवं बजट प्रबंधन अधिनियम (एफआरबीएम) इसकी मंजूरी देता है। हालांकि  खर्च को नियंत्रित किया गया है, लेकिन उतना नहीं, जितना राजस्व की किल्लत को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए था। इसीलिए बजट को दोनों पक्षों की तरफ से 'निराशाजनक' कहा जा रहा है।

बात शेयर बाज़ार की करें तो निश्चित रूप से ऐसा लगता है कि शेयर बाजारों में गहरी निराशा   है। शेयर बाजार बजट के दिन खुले थे और उनमें कारोबार हो रहा था। हालांकि यह शनिवार का दिन था। कुछ लोगों ने उम्मीद की होगी कि बड़े राजकोषीय प्रोत्साहनों पर काम हो रहा है, जिनसे उपभोक्ता मांग में फिर सुधार आएगा और कंपनियों की आमदनी में इजाफा होगा। हालांकि यह विचारधारा   अनिश्चितहै और  जो,  इस उम्मीद की समर्थक हैं। बहुत से लोगों का मानना है कि नई जीएसटी प्रणाली में कर चोरी बड़े पैमाने पर हो रही है। अगर इस कर चोरी की वजह से जीएसटी जीडीपी के एक फीसदी तक कम बना हुआ है तो इसका क्या मतलब है? निश्चित रूप से अगर जीडीपी के अनुपात में कर २०१७-१८ से घट रहा है और जिसकी एक वजह जनता के हाथ में ही अप्रत्यक्ष करों का रहना है तो क्या इसे एक उतने ही बड़े प्रोत्साहन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए? 

ऐसे कुछ जरूरी सवाल हैं, जो पूछे जा सकते हैं। क्या राजकोषीय घाटे को वास्तव में नियंत्रित किया गया है और उसे लक्ष्य से कम कैसे रखा जाएगा? वित्त मंत्री ने बीते वर्षों की तुलना में ज्यादा पारदर्शिता बरती है। उन्होंने कुछ अतिरिक्त बजट उधारी का खुलासा किया है और यह दिखाया है कि इससे वास्तविक राजकोषीय घाटे में कितनी बढ़ोतरी होगी। हालांकि एक तथ्य यह भी है कि अद्र्ध-सरकारी एजेंसियों की उधारी को इसमें प्रदर्शित नहीं किया गया।हालांकि अब पहले की तुलना में यह ज्यादा साफ हो गया है कि सरकार की राजकोषीय स्थिति क्या है। यही संभवतया एक वजह है, जिससे बॉन्ड बाजार बजट को लेकर इक्विटी बाजारों से बिल्कुल अलग रुख अपना सकता है। बजट अनुमानों के मुताबिक आगामी वर्ष में सरकार की बाजार उधारी संभावित आंकड़े से कम है। सवाल यह है कि क्या बॉन्ड बाजार प्रतिक्रिया दे पाएंगे? यह बजट सरकार से कुछ और खुलासे की मांग करता है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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