नतीजा दिल्ली : देश में सम्वाद और सहमति की जरूरत | EDITORIAL by Rakesh Dubey

दिल्ली फिर “आप’  की हो गई। कांग्रेस साफ हो गई और भारतीय जनता पार्टी का वो मुगालता टूट गया, वो ही देश में अंतिम विकल्प है। अपने को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी कहने का दम भरने वाली पार्टी के लिए यह सोचने की बात है कि कांग्रेस को मिलने वाले वोट उसके खाते में न जाकर इधर उधर क्यों जा रहे हैं ? इसका यह साफ़ संकेत है की भाजपा वोटर को अपनी बात समझने में दिल्ली में असमर्थ और  असफल रही और उसके नेताओं के बडबोलेपन ने यह साफ़ कर दिया की दिल्ली के लोगों का दिल जीतने में उसे और मशक्कत करना होगी |देश का परिदृश्य राज्य और केंद्र के बीच सम्वाद और सहमति की मांग कर रहा है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो आगे आने वाले दिन अच्छे नहीं होंगे।

वैसे भी भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए पिछले दो साल में सात राज्यों में सत्ता गंवा चुका है। दूसरी बार मोदी सरकार बनने के बाद ४ राज्यों में चुनाव हुए, जिसमें से तीन राज्यों में  भाजपा चुनाव बुरी तरह हार गई। पिछली बार दिल्ली में महज ३  सीटें जीतने वाली भाजपा से इस बार बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी, लगता है मन से काम नहीं हुआ मन की बात करने वाले नरेंद्र मोबी मतदाता के मन की बात नशी समझ सके । दिल्ली के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी का गणित तो एकदम गलत और भरमाने वाला साबित हुए उन्होंने ४८ सीटों पर जीत के अनुमान के साथ सत्ता में आने की उम्मीद जताई थी। हालांकि, उनका ही नहीं की बड़े भाजपा नेताओं के अनुमान गलत साबित हुए। इसी के साथ भाजपा के लिए देश के सियासी नक्शे में कोई फेरबदल नहीं हुआ ।  अब दिल्ली समेत १२  राज्यों में अभी भी भाजपा विरोधी दलों की सरकारें हैं। एनडीए के पास १६  राज्यों में ही सरकार है। इन राज्यों का जनसंख्या प्रतिशत ४२ है।

दिल्ली में खाता खोलने में असमर्थ रही कांग्रेस खुद के बूते या गठबंधन के सहारे महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, पुडुचेरी में सत्ता में है। दिसंबर में हुए चुनाव में झारखंड में सरकार बनने के बाद कांग्रेस की ७  राज्यों में सरकार है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी लगातार तीसरी बार जीती है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, केरल में माकपा के नेतृत्व वाला गठबंधन, आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस, ओडिशा में बीजद और तेलंगाना में टीआरएस सत्ता में है। एक और राज्य तमिलनाडु है, जहां भाजपा ने अन्नाद्रमुक के साथ लोकसभा चुनाव तो लड़ा था, लेकिन राज्य में उसका एक भी विधायक नहीं है। इसलिए वह सत्ता में भागीदार नहीं है। इस चुनाव से एक बात साफ़ उभर कर रही है देश का मतदाता देश की वर्तमान राजनीतिक कलाबाजियों से संतुष्ट नहीं है | मतदाता एक बड़ा परिवर्तन देश में चाहत़ा है, उसे प्रादेशिक और राष्ट्रीय मुद्दों पर स्पष्टता चाहिये | कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी इन मुद्दों को अपनी तरह हल करना चाहते है, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसा निर्वात बन रहा है, जो जन सामान्य की अनिवार्य इच्छाएं भी पूरी नहीं होती है | समस्या का निदान दोनों बड़े जिस प्रकार निकालते उससे मुद्दे साम्प्रदायिक हो जाते हैं | विभाजन होने लगता है, इसके परिणाम बहुत सुखद  नहीं दिखते|

कहने को दिसंबर २०१७  में एनडीए बेहतर स्थिति में था। भाजपा और उसके सहयाेगी दलों के पास १९  राज्य थे। एक साल बाद भाजपा ने तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में सत्ता गंवा दी। यहां अब कांग्रेस की सरकारें हैं। चौथा राज्य आंध्र प्रदेश है, जहां भाजपा-तेदेपा गठबंधन की सरकार थी। मार्च २०१८  में तेदेपा ने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया। २०१९  में हुए विधानसभा चुनाव में यहां वाईएसआर कांग्रेस ने सरकार बनाई। पांचवां राज्य महाराष्ट्र है, जहां चुनाव के बाद शिवसेना ने एनडीए का साथ छोड़ा और हाल ही में कांग्रेस-राकांपा के साथ सरकार बना ली। इसके बाद झारखंड में भी भाजपा सत्ता गंवा चुकी है, वहां अब कांग्रेस-झामुमो गठबंधन की सरकार है।

 अब यहाँ प्रश्न सरकारें और राजनीतिक दलों के गिनने का नहीं है | महंगाई बेरोजगारी राष्ट्र की सुरक्षा और वैश्विक चुनौतियों का है | इनका सामना सम्वाद और सहमति से हो सकता है | प्रदेश में किसी भी दल की सरकार हो या केंद्र में कोई भी सिंहासन पर हो चुनौतिया नहीं बदलेगी | बेहतर होगा एक बार साड़ी सरकारों में संवाद और सहमति हो|
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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