भूरिया का उदय यानी हिरा अलावा का अस्त, मरकाम और सिंघार पर ग्रहण | MP NEWS

भोपाल। झाबुआ का चुनाव मध्यप्रदेश की राजनीति में कई तरह के संकेत लेकर आया है। एक तरफ कमलनाथ सरकार मजबूत हुई तो भाजपा कमजोर। ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रदेश अध्यक्ष पद पर दावा भी कमजोर हो गया। इसके अलावा मध्य प्रदेश की आदिवासी समाज की राजनीति में भी बदलाव आएगा। कांतिलाल भूरिया का उदय आदिवासी राजनीति में विधायक हिरा अलावा का अस्त समझा जा रहा है। इतना ही नहीं पिछले दिनों लाइमलाइट में आए ओमकार सिंह मरकाम और उमंग सिंघार की राजनीति में कांतिलाल भूरिया के वजनदार होते ही कमजोर हो जाएगी।

प्रदेश में कांग्रेस के आदिवासी नेताओं को लेकर गृह मंत्री बाला बच्चन, वन मंत्री उमंग सिंघार, आदिम जाति कल्याण मंत्री ओमकार सिंह मरकाम जैसे नेताओं के नाम अब तक उभरकर सामने आते रहे। यही वजह रही कि इन्हीं नेताओं के नाम कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के दावेदारों की सूची में शामिल रहे। इनके अलावा पार्टी के अन्य आदिवासी नेताओं में बिसाहूलाल सिंह, जयस नेता व विधायक डॉ. हीरालाल अलावा सरकार के सामने गाहे-बगाहे चेतावनी भरे स्वरों में अपने अधिकार जताते नजर आए।

बिसाहूलाल सिंह और डॉ. अलावा ने विधानसभा चुनाव के बाद जहां मंत्रिमंडल के लिए दबाव बनाया था, वहीं लोकसभा चुनाव में जयस समर्थक को सीट दिलाने में डॉ. अलावा ने दबाव की रणनीति पर काम किया। बिसाहूलाल सिंह ने पीसीसी अध्यक्ष पद के लिए आदिवासी कार्ड में अपने नाम को आगे लाने की कोशिश की है जो भूरिया के चुनाव जीतने के बाद कमजोर पड़ सकती है।

देखा जाए तो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की टीम के आदिवासी नेताओं को भूरिया की जीत से झटका लग सकता है। इनमें वन मंत्री सिंघार व आदिम जाति कल्याण मंत्री मरकाम शामिल हैं। सिंघार ने राहुल गांधी के सहारे प्रदेश में अपनी अलग पहचान बनाने का प्रयास किया था और वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से सीधे टक्कर लेने की कोशिश की है। वहीं, गृह मंत्री बाला बच्चन पीसीसी अध्यक्ष के विश्वस्त बने रहे। 

इधर, कांग्रेस सरकार में आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करने वाले सुरेंद्र सिंह बघेल पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के विश्वस्त हैं। वे आदिवासियों के नेता के तौर पर उभर नहीं पाए हैं। विधायक फूंदेलाल मार्को, नारायण सिंह पट्टा, अशोक मर्सकोले, योगेंद्र सिंह बाबा, झूमा सिंह सोलंकी जैसे क्षेत्रीय आदिवासी नेता से आगे नहीं आ सके हैं। कलावती भूरिया अपने क्षेत्र में दबंग विधायक हैं, लेकिन कांतिलाल भूरिया की छाया उन पर हावी है। 

भूरिया पार्टी के 31वें आदिवासी विधायक
मप्र विधानसभा में 48 आदिवासी विधायकों में से कांग्रेस के 31 एमएलए हो चुके हैं। कांतिलाल भूरिया मध्यप्रदेश विधानसभा में पांचवीं बार विधायक की शपथ लेंगे। इसके पहले वे सातवीं से लेकर दसवीं विधानसभा में लगातार चार बार थांदला विस सीट से विधायक रह चुके हैं और दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री भी भूरिया रहे थे।

यही नहीं भूरिया 1998 से लेकर 2014 तक लगातार पांच बार लोकसभा सदस्य भी रहे। 2014 में वे दिलीपसिंह भूरिया से चुनाव हार गए थे, लेकिन उनके निधन से रिक्त हुई सीट पर उपचुनाव जीते थे। 2018 में झाबुआ से विधानसभा चुनाव हार गए और इसके बाद 2019 में भी लोकसभा चुनाव हारे तो वे हाशिए पर पहुंच गए थे। पार्टी के भीतर ही उनके आलोचक उनका राजनीतिक जीवन समाप्त बताने लगे।

भूरिया के सहारे आदिवासी नेताओं पर निशाने
मालूम हो कि प्रचार के दौरान उन्हें डिप्टी सीएम तक बनाने की बात कही गई थी। अब जीत के बाद भूरिया के लंबे संसदीय और विधायकी अनुभव के बाद अब पार्टी में उनके सहारे प्रदेश नेतृत्व अन्य आदिवासी नेताओं पर निशाने साध सकता है। जयस नेता व विधायक डॉ. अलावा और उमंग सिंघार पर सबसे ज्यादा इसका असर पड़ेगा। भूरिया को आगे लाकर कांग्रेस इन लोगों को पीछे करने की कोशिश कर सकती है।

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