भोपाल। मध्य प्रदेश में अब नगर पालिका अध्यक्ष एवं महापौर के चुनाव नहीं होंगे। नगरीय निकाय चुनावों में इन पदों के लिए कोई प्रत्याशी नहीं होगा। 20 साल से जनता सीधे वोट देकर अपने नगर पालिका अध्यक्ष एवं महापौर का चुनाव करती आई है परंतु अब ऐसा नहीं कर पाएगी। कमलनाथ कैबिनेट ने तय किया है कि 20 साल पहले जैसा होता था वही फिर से किया जाएगा। जनता पार्षदों को चुनेगी और पार्षद महापौर या अध्यक्ष को।
फैसला इसलिए ताकि सरकार का मूल्यांकन ना हो पाए
फिलहाल प्रदेश के नगरीय निकायों में आम चुनाव के जरिए जनता वोट कर महापौर या अध्यक्ष को चुनती है। नई व्यवस्था लागू करने के लिए मध्यप्रदेश नगर पालिक अधिनियम में संशोधन करने जा रही है। प्रदेश में अगले साल मार्च के महीने में निकायों के चुनाव संभावित है। प्रदेश की कांग्रेस सरकार अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर का चुनाव कराए जाने के पीछे अपना राजनीतिक लाभ देख रही है। उसे आशंका है कि यदि प्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर के चुनाव हुए तो उसे नुकसान हो सकता है।
पार्षदों की खरीद फरोख्त होती थी इसलिए प्रणाली लाए थे
20 साल पहले तय हुआ था कि अप्रत्यक्ष प्रणाली से नगर पालिका अध्यक्ष या महापौर का चुनाव होना गलत है। उन दिनों दलील यह भी दी गई थी कि प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं देश के प्रधानमंत्री का चुनाव में सीधे जनता द्वारा प्रत्यक्ष प्रणाली से किया जाना चाहिए। अप्रत्यक्ष प्रणाली की सबसे बड़ी खामी यह होती है कि चुनाव जीतकर आए पार्षदों की खरीद फरोख्त शुरू हो जाती है। सरकार के पास ऐसा कोई फार्मूला नहीं हो जो वो पार्षदों की खरीद फरोख्त जैसे गंभीर अपराध को रोक पाए, और जो व्यक्ति करोड़ों खर्च करके महापौर बनेगा, यह यह स्वभाविक नहीं होगा वो निवेश की गई रकम का 10 गुना कमाने की कोशिश नहीं करेगा।