नरोत्तम मिश्रा: EOW नहीं गुटबाजी के शिकंजे में, झुके नहीं तो गिरफ्तारी होगी

Bhopal Samachar
भोपाल। बताने की जरूरत नहीं कि व्यापमं घोटाला में मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को घोटाले में शामिल होने के कारण नहीं बल्कि् गुटबाजी के कारण जेल जाना पड़ा था। अब लगभग वही चक्र फिर से चल पड़ा है। इस बार केंद्र में पूर्व नरोत्तम मिश्रा है। तब ऐजेंसी एसटीएफ थी, अब ईओडब्ल्यू है लेकिन खेल वही है। पहले व्यापमं के नाम पर था अब ई टेंडर के नाम पर है। उस समय लक्ष्मीकांत शर्मा के मंत्री होने के कारण थोड़ी मुश्किलें भी थीं, इस बार नरोत्तम मिश्रा तो पूर्व मंत्री हैं। 

ईओडब्ल्यू जांच नहीं कर रहा, शिकंजा कस रहा है

ई-टेंडर घोटाला में ईओडब्ल्यू जांच करता नजर नहीं आ रहा लेकिन हां टारगेट सेट करके कार्रवाई करता नजर जरूर आ रहा है। भाजपा प्रदेश कार्यालय के बाहर दावे किए जाते हैं कि ई-टेंडर घोटाला में कई दिग्गज शामिल हैं परंतु इन दिनों पूरा घोटाला और कार्रवाई पूर्व मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के नेता नरोत्तम मिश्रा के इर्द गिर्द सिमटकर रह गई है। 

नरोत्तम मिश्रा के दोस्त मुकेश मिश्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज

आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने नरोत्तम मिश्रा के करीबी मुकेश शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। इससे पहले ईओडब्ल्यू ने इस मामले में मुकेश शर्मा से पूछताछ की थी। उनके नगरी प्रशासन स्वास्थ्य और जल संसाधन विभाग के टेंडर को लेकर पूछताछ की गई थी।

नरोत्तम के इर्द-गिर्द जाल बुनती रहेगी ईओडब्ल्यू

गौरतलब है कि पूर्ववर्ती शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार में जल संसाधन मंत्री रहे नरोत्तम मिश्रा के दो करीबियों निर्मल अवस्थी और वीरेंद्र पांडे को ईओडब्ल्यू पहले ही गिरफ्तार कर चुकी है। पिछले दिनों दोनों को रिमांड पर लेकर ईओडब्ल्यू ने पूछताछ की थी। अब माना जा रहा है कि नेता और अफसरों पर कार्रवाई हो सकती है। इसके अलावा पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा से भी पूछताछ की जा सकती है।

3000 करोड़ का घोटाला, कई दिग्गज शामिल हैं

आरोप है कि शिवराज सरकार के कार्यकाल में ई-टेंडरिंग में लगभग 3000 करोड़ रुपये से ज्यादा का घोटाला हुआ है। कांग्रेस ने अपने विधानसभा चुनाव के वचन-पत्र में ई-टेंडरिंग घोटाले की जांच और दोषियों को सजा दिलाने का वादा किया था। ई-टेंडरिंग की प्रक्रिया के दौरान एक अधिकारी ने इस बात का खुलासा किया था कि ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल में छेड़छाड़ की उन कंपनियों को लाभ पहुंचाया गया, जिन्होंने टेंडर डाले थे, जिन 9 टेंडरों में गड़बड़ी की बात सीईआरटी की जांच में पुष्टि हुई है, वे लगभग 900 करोड़ रुपये के हैं।

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