कर्नाटक : सरकार के स्थिर होने में संदेह | EDITORIAL by Rakesh Dubey

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नई दिल्ली। कर्नाटक में 16 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होंगे | फ़िलहाल भले ही येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बन गये हो, पर राजनीतिक स्थिरता नहीं लौटने वाली है| सदन में बहुमत साबित करने में भाजपा सफल हो जाएगी, उसके बाद की डगर बड़ी टेडी है | भाजपा को कुमारस्वामी के कंटक बने त्रिशूल को साधने में मुश्किल आयेगी | इनमें मुलबगल से विधायक एच नागेश, कोल्लेगल से विधायक एन महेश और रानेबेन्नूर से विधायक आर शंकर। ये तीनों कुमारस्वामी के विरोध में थे और विधानसभा अध्यक्ष ने तीनों को सदस्यता के अयोग्य घोषित कर दिया है। यानी वे उपचुनाव में भी हिस्सा नहीं ले सकते। इस प्रकार इन तीनों को पूरी तरह परिदृश्य से बाहर कर दिया गया है। इसका यह अर्थ भी है कि जब तक उपचुनाव नहीं होते हैं, विधानसभा में कुल 222 सदस्य रह जाएंगे और बहुमत के लिए 112 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता रहेगी| 16 सीटों पर उपचुनाव की उम्मीदवारी का गणित सीधा नहीं है |

2018 के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा के पास 105 विधायक थे, कांग्रेस के पास 78 और जनता दल सेक्युलर के पास 37 विधायक। पहले दिन से येदियुरप्पा को लग रहा था कि उन्हें ही मुख्यमंत्री बनना चाहिए था। कांग्रेस के निवर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धरमैया को लग रहा था कि उन्हें पद से हटाया गया है, इससे उनकी कुमारस्वामी सरकार की स्थिरता में कोई रुचि नहीं थी। वास्तव में ये दो वे लोग थे जो इस गठबंधन को अपनी सत्ता की राह की बाधा मानते थे।

बासवकल्याण के विधायक बी नारायण राव ने विश्वास मत पर सौ टंच बात कही है कि, 'जब आप नीम के बीज बोते हैं तो आप आम की फसल की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? उनकी बात का अगला हिस्सा कर्नाटक के दुःख को दर्शाता है उन्होंने कहा था  “मैं मौजूदा मुख्यमंत्री, पिछले मुख्यमंत्री और भविष्य में बनने वाले मुख्यमंत्री से करबद्घ विनती करता हूं, कृपया अपने आसपास अच्छे लोगों को रखें। आप अचल संपत्ति कारोबारियों को टिकट देते हैं, बिल्डरों को टिकट देते हैं, शराब के ठेकेदारों को टिकट देते हैं और उनसे उम्मीद करते हैं कि वे राजनीतिक आदर्शों के प्रति वफादार रहेंगे?' अब अब उपचुनाव में भाजपा को इस संकट का सामना करना होगा | टिकट किसे दें ? यह भाजपा की एक बड़ी  दुविधा है । विधानसभा अध्यक्ष ने जिन विधायकों को अयोग्य घोषित किया तो उपचुनाव हो रहे हैं  | अब बागी विधायक, भाजपा से टिकट मांगेंगे, लेकिन पिछले चुनाव में भाजपा को पराजित करने में उनकी अहम भूमिका थी। पार्टी किसका दावा मानेगी? अपने पराजित विधायकों का या बागियों का? यह इकलौता मुद्दा नहीं है। भाजपा की आंतरिक स्थिरता भी संदेह के घेरे में है। येदियुरप्पा के सबसे बड़े विरोधियों में से एक बीएल संतोष को पार्टी की केंद्रीय इकाई में स्थानांतरित कर दिया गया है। जो लोग येदियुरप्पा के साथ नहीं हैं, वे दिल्ली में अपील कर सकते हैं। उनकी तादाद बहुत ज्यादा है। एक मुख्यमंत्री के लिए इससे बड़ा भय और क्या हो सकता है? 

ऐसे में केंद्र के पास एक तरीका यह है कि वह इस हकीकत को स्वीकार करे कि विधानसभा में त्रिशंकु की स्थिति है, संवैधानिक मशीनरी ध्वस्त हो चुकी है और ऐसे में केंद्र को नए चुनाव की घोषणा कर  सकता है, परंतु यह कोई विकल्प नहीं है क्योंकि विधायक इस बात पर बवाल मचा देंगे कि चुने जाने के एक वर्ष के भीतर दोबारा चुनाव क्यों? यही कारण है कि कर्नाटक में चाहे जो भी हो लेकिन एक बात तो निश्चित है, सरकार की डगर टेड़ी है, सरकार निरंतर अनिश्चय की स्थिति में रहेगी।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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