ऐसे तो सबके सिर पर छत नहीं होगी | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। भारत सरकार सबको अपने मकान का सपना दिखा रही है | इसके विपरीत भारत में मकानों की खरीद-बिक्री पर भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट न केवल चिंतित करती है, बल्कि यह एक स्थाई होते संकट की ओर भी इशारा करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार घर महंगे हो गये है घर खरीदने वाले लोगों को वर्ष 2015 में अपनी मासिक आय का 56.1 प्रतिशत हिस्सा मकान की खरीद में लगाना पड़ता था, वहीं वर्ष 2019 में उन्हें 61.5 प्रतिशत हिस्सा खर्च करना पड़ रहा है। आवास-भवन निर्माण क्षेत्र में जो स्थितियां हैं, वे किसी विडंबना से कम नहीं हैं। बिल्डर और भवन उद्योग जहां एक ओर मकान न बिकने का रोना रो रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट उन्हें आईना दिखा रही है।

रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, विगत चार वर्षों में मकान महंगे हुए हैं। इसी से जुड़ी एक अन्य उपयोगी रिपोर्ट है, जो बताती है कि अनबिके मकानों की कीमत में विगत एक वर्ष में आठ प्रतिशत इजाफा हुआ है। वैसे मकानों का महंगा होना ही उनके न बिकने का एकमात्र कारण नहीं है। इससे अलहदा दो अन्य महत्वपूर्ण कारण भी हैं, जिन पर सरकार और आवास निर्माताओं को गौर करना चाहिए।

इनमें पहला कारण वह है, जिसकी सुनवाई इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। बड़े-बडे़ बिल्डरों और नामी कंपनियों ने भी खरीदारों को तरह-तरह से ठगा है। पूरे पैसे ले लेना, समय पर और वादे के अनुरूप निर्माण न करना, कमजोर या घटिया निर्माण करना और सबसे बड़ी बात खरीदारों के साथ दुर्व्यवहार करना। मामला एकाध बिल्डरों का नहीं है, उस पूरे बिल्डर समाज का है, जो गुणवत्ता और अपनी छवि के प्रति पर्याप्त सजग नहीं है। न जाने कितने खरीदारों और भावी खरीदारों की आशा और विश्वास को ध्वस्त किया गया है, जिसकी कीमत उन्हें अनबिके मकानों और सम्मान गंवाकर चुकानी पड़ रही है। देश में जगह-जगह अदालतों का दरवाजा खटखटा रहे धोखा खाए लोग अब न केवल अपना मकान चाहते हैं, बल्कि वे धोखेबाज बिल्डरों को जेल में देखना चाहते हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट उचित ही चाहता है कि केंद्र सरकार मकान खरीदारों के हितों की रक्षा के लिए एक नीति लाए। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से इस नीति के लिए कुछ समय चाहा है।

दूसरा और बड़ा कारण- आवास निर्माण क्षेत्र को सरकार द्वारा आवश्यकता से कम समर्थन। इस बजट में कर्ज लेकर मकान खरीदने में कर रियायत बढ़ाई गई है, लेकिन वह पर्याप्त नहीं है। रियायत मात्र 45 लाख रुपये या उससे कम कीमत वाले मकानों के लिए दी गई है। इसका नतीजा यह कि मुंबई, दिल्ली, चेन्नई जैसे बड़े शहरों में खरीदारों की संख्या ज्यादा नहीं हो सकती, क्योंकि यहां पर मकानों की कीमत बहुत ज्यादा है। नरेंद्र मोदी सरकार ने वर्ष 2022 तक सबको मकान देने का लक्ष्य तय किया है। गरीबों को सीधे नकदी हस्तांतरण कर उनके लिए आवास निर्माण का कार्य अच्छा चल रहा है, लेकिन शहरों में सरकार को कई अन्य उपाय करने होंगे। छोटी-छोटी चीजों की खरीद-बिक्री का सुदृढ़ नियमन करने वाली सरकार से लोग यह तो उम्मीद करेंगे ही कि वह लाखों-करोड़ों में बिकने वाले मकानों की खरीद-बिक्री का संपूर्ण नियमन करे। आवास निर्माण केवल अतिरिक्त सफेद-काले पैसे के निवेश का क्षेत्र नहीं है, यह आम आदमी के सिर पर छत देने की मानवता का विषय है। जब छत का मानवीय मूल्य समझा जाएगा, तभी वह सबको सहजता से उपलब्ध होगी। शायद नई आवास नीति में सरकार गौर करे |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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