सवर्णों ने जो कहा था वो करके भी दिखाया | MY OPINION by Dr AJAY KHEMARIYA

 "मामा तेरी खैर नही मोदी तुझसे बैर नही" औऱ "हम है माई के लाल'' के नारे पिछले साल हुए मप्र विधानसभा चुनाव में खूब सुनाई दिए थे मप्र के चुनावी नतीजों में इनका प्रभाव स्वयंसिद्ध भी हुआ बीजेपी मामूली अंतर से जीती हुई बाजी हार गई थी। सर्वाधिक नुकसान ग्वालियर अंचल की उन 34 सीटों पर हुआ जो जातीय गोलबंदी से आज भी उभर नही पाई है। यहां 26 सीटों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था और पूरे सूबे में सरकार बनाने से पार्टी कुल 7 सीट पीछे रह गई थी। इसके पीछे मूल कारण शिवराज सिंह चौहान का आरक्षण को लेकर दिया गया बयान "कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नही कर सकता "माना गया क्योंकि प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों ने तब इसे बड़ा मुद्दा बना दिया। 

सवर्ण जातियों ने शिवराज सिंह की लो प्रोफाइल लोकप्रियता के आगे इसे चुनोती के रूप में खड़ा करने में सफलता हासिल की इस बीच यह भी सार्वजनिक तौर सवर्ण औऱ पिछड़ी जातियों से यह भी सुनाई देता था कि "मोदी तुझ से बैर नही मामा तेरी खेर नही" असल मे प्रमोशन में आरक्षण को निरस्त करने के मप्र उच्च न्यायालय के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के शिवराज सिंह के निर्णय से कर्मचारियों में यह स्थिति निर्मित हुई बाद में करीब 10 लाख कर्मचारियों के परिवारों से सवर्ण पिछड़ी जातियां भी जुड़ गई क्योंकि दलित आदिवासी आरक्षण से ये दोनों वर्ग सीधे प्रभावित हो रहे थे। 

इस बीच एट्रोसिटी एक्ट पर केंद्र सरकार के अध्यादेश ने माहौल को ज्यादा दूषित कर दिया था आंकड़े भी इस बात की गवाही देते है कि सवर्ण ओबीसी नाराजगी का खामियाजा मप्र में शिवराज सिंह को उठाना पड़ा था लोकसभा चुनाव में इसी मप्र की जनता ने मोदी की झोली सांसदों से भर दी यहां तक कि दिग्विजयसिंह, सिंधिया,भूरिया,अजय सिंह, विवेक तन्खा जैसे दिग्गज लाखो वोटों से हारे है कमलनाथ अपना किला बमुश्किल बचा पाए है अगर वे सीएम न होते तो नकुलनाथ को भी पराजय का सामना करना पड़ता यह पक्का है क्योंकि वे सात में से चार विधानसभा क्षेत्रों से अपनी हार नही रोक पाए।

अब अगर इस नारे की प्रमाणिकता को आंकड़ो के आलोक में खंगाले तो मप्र के माई के लाल यानी सवर्ण पिछड़े वर्ग ने जो कहा था उसे क्रमशः विधानसभा ,लोकसभा में करके भी दिखाया है सीएसडीएस के चुनाव बाद के आंकड़े बताते है कि मप्र में कमलनाथ सरकार के प्रति लोगो का झुकाव खत्म प्रायः हो गया है सवर्ण आरक्षण को लेकर मोदी सरकार ने जो 10 फीसदी का प्रावधान किया था उसे लेकर कांग्रेस सरकार की सुस्ती ने ठीक वैसे ही प्रतिक्रिया इस वर्ग में दी जैसे माई के लाल शब्द ने शिवराज को मुश्किल में लाकर खड़ा कर दिया था। 

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सवर्णों के 33 फीसदी वोट मिले थे जो 2019 के लोकसभा में घटकर 25 फीसदी रह गए।इन्ही वर्गों की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी को 2018 में 58 फीसदी वोट पड़ा था लेकिन मोदी से बैर   न निभाते हुए 75 फीसदी सवर्णों ने उन्हें वोट देकर अपने नारे की सार्थकता साबित की।सीएसडीएस के विस्तृत आंकड़े बताते है कि मप्र में ओबीसी वोट जिसे बीजेपी ने करीने से मथा है वह फिर से मोदी के पास आ गया है 2018 विधानसभा में कांग्रेस को 41 फीसदी पिछड़ा वोट मिला था लेकिन 2019 में यह घटकर 27 फीसदी ही रह गया जबकि विधानसभा के 48 फीसदी वोटर ने लोकसभा में मोदी के लिये यह आंकड़ा 65 फीसदी पर पहुँचा दिया। दलित वर्ग में कांग्रेस का वोट अभी भी स्थिर नजर आ रहा है विधानसभा में 49 फीसदी से बढ़कर लोकसभा में यह 50 हो गया लेकिन मोदी यहां भी पीछे नही है शिवराज के माई के लाल बयान के बाद भी उन्हें विधानसभा में मिले 33  फीसदी की तुलना में मोदी को 38 फीसदी दलितों ने मप्र में वोट किया है।

कांग्रेस के लिये सबसे चिंताजनक ट्रेंड प्रदेश के  आदिवासी वर्ग से नजर आ रहा है 2018 के 40 फीसदी वोटर की तुलना में लोकसभा में यह घटकर 38 फीसदी रह गया वहीं बीजेपी का कमल निशान दबाने वाले 30 फीसदी आदिवासी मोदी के नाम पर बढ़कर 54 फीसदी पर आ गए।गैस सिलिंडर आवास, शौचालय, आयुष्मान जैसी फ्लेगशिप स्कीम्स का फायदा यहां साफ दिख रहा है आदिवासी कांग्रेस का परम्परागत वोटर रहा है बीजेपी को वोट कराना इस वर्ग में आज भी बड़े बीजेपी नेताओं के लिये टेडी खीर रहा है लेकिन इस लोकसभा में आदिवासियों ने जमकर बीजेपी का कमल दबाया है रतलाम  झाबुआ सीट से कांतिलाल भूरिया या धार से ग्रेवाल की हार ही इस ट्रेंड की पुष्टि नही करता है बल्कि गुना में श्री सिंधिया की ऐतिहासिक शिकस्त में भी सहरिया आदिवासी वर्ग की बड़ी भूमिका है इस इलाके में पाई जाने वाली इस बिरादरी को सबसे पिछड़ा,अशिक्षित माना जाता है और ये वोट के नाम पर सिर्फ कांग्रेस के पंजे को ही पहचानते है लेकिन वोटिंग के बाद लगभग सभी कांग्रेसियों का मानना था कि पीएम आवास के चलते अंचल की गुना,ग्वालियर ,मुरैना सीट पर सहरिया वोट मोदी को गया है।शिवराज सरकार द्वारा इस वर्ग के लिये पोषण आहार हेतु शुरू की गई 1000 महीने नकदी की स्कीम बन्द होने का प्रचार भी कांग्रेस के विरुद्ध गया।

एक दूसरा चौकाने वाला आंकड़ा जो सीएसडीएस ने मप्र को लेकर जारी किया है उस पर बीजेपी भी शायद यकीन कर पाए वह है अल्पसंख्यक वोटर को लेकर।इन आंकड़ो के अनुसार मप्र में 33 फीसदी माइनोरिटी ने मोदी को वोट किया है जो कि विधानसभा में 15 फीसदी था वही कांग्रेस को इस वर्ग ने 67 फीसदी वोट दिए।इन आंकड़ो में सिख अल्पसंख्यक भी शामिल है इसके बाबजूद अगर अल्पसंख्यक  वोटर इतनी बड़ी संख्या में वोट मोदी को करके आये है तो यह कांग्रेस के लिये खतरे का अलर्ट है क्योंकि मप्र में यूपी,बंगाल,बिहार जैसा धार्मिक धुर्वीकरण नही है न ही ये वर्ग आपस मे प्रतिक्रियावादी है भोपाल में साढ़े तीन लाख की दिग्विजयसिंह की हार इस आंकड़े की काफी कुछ कहानी बयां करती है।

सच्चाई यही है कि मप्र में कमलनाथ सरकार ने जो कुछ काम किया भी उसे जनता के बीच ले जाने में बिल्कुल भी सफल नही हुई किसान कर्जमाफी को लेकर 67 फीसदी किसानों ने सरकार से अपनी नाराजगी को वोट के माध्यम से जाहिर किया।कन्यादान ,पेंशन,जैसे मदो में राशि दोगुनी करने का कोई प्रचार सरकार या पार्टी के स्तर से किया ही नही गया।पार्टी चुनाव बाद कबीलों में बंटी हुई नजर आई मंत्री अपने क्षेत्रीय नेताओ की तिमारदारी में लगे रहे 15 साल बाद सत्ता की वापसी की हनक ने पार्टी के कार्यकर्ताओं को पंख लगा दिए रही सही कसर तबादला उधोग की बदनामी,औऱ आपसी खींचतान ने पूरी कर दी।कमलनाथ मुख्यमंत्री के रूप में स्टार प्रचारक की जगह महाकौशल औऱ छिंदवाड़ा में फंसे नजर आए जबकि शिवराज हारने के बाबजूद पूरे प्रदेश में उसी सीएम मोड़ में 200 जगह सभाएं ले रहे थे वे जबरदस्त कम्युनिकेटर है और टाइगर अभी जिंदा है कहकर लोगो औऱ बीजेपी वर्कर में जोश भरने में सफल रहे।वही विधानसभा चुनाव में कैम्पेन कमेटी के अध्यक्ष के रूप में मण्डला,डिंडोरी से लेकर बालाघाट,धार,झाबुआ तक हेलीकॉप्टर उड़ाने वाले श्री सिंधिया अपने ही गढ़ गुना में घिरे रहे वे अपना चुनाव होने के बाद सीधे विदेश रवाना हो गए।

लोकसभा चुनाव में जनता ने दो सन्देश दिए है एक तो कांग्रेस सरकार यह नही समझे की उसे उसकी काबिलियत पर वोट देकर सरकार में लाया गया है दूसरा जनता परिपक्व है उसे राज्य और राष्ट्र के मुद्दे समझाने की जरूरत नही है।इसीलिए जो नारा मोदी और शिवराज को लेकर जनता ने उछाला था उसे आगे कोई भी हल्के में लेने की कोशिश न करें।न राजा,न महाराजा,न कमलनाथ।शिवराज तो करेंगे ही नही।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !