इन बातों से देश एक रहेगा क्या, कोविंद जी ? | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। महामहिम, आप इस देश के राष्ट्रपति (President) है और हम आम नागरिक, हमारा नाम कुछ भी हो सकता है. इससे हमारे भारतीय होने पर कोई फर्क नहीं पड़ता | आप भी आये दिन हमारे देश भारत में चुनाव पश्चात, सामने आ रहे अजीबोगरीब विश्लेष्ण देख रहे होंगे | ये विश्लेष्ण सुर्खी बनते हैं और उनकी आड़ में जो कुछ चलता है, उससे देश कभी एकजुट नहीं होगा | आज देश के सामने दो रास्ते हैं | एक– इन फिजूल बातों को छोड़ राष्ट्र निर्माण में लगे दो- इनके पिछलग्गू बन अपने हिस्से की बात करे | हिस्सा दिलाने की दम भरने वाले फिर आग से खेल रहे हैं | 1947 का विभाजन और विभीषिका सबको याद है |

अब AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के विश्लेष्ण को देखिये | वे वायनाड से राहुल गाँधी (RAHUL GANDHI ) की जीत का श्रेय मुसलमानों को देते हैं और देश में हिस्सेदारी की बात करते हैं ? इससे क्या संदेश जा रहा है ? उनका यह कथन कि भाजपा लोकसभा चुनाव में कुछ राज्यों में कांग्रेस के कारण नहीं बल्कि क्षेत्रीय दलों की वजह से [पंजाब और केरल ] हारी है। राहुल खुद अमेठी में हार गए, लेकिन वायनाड में जीत दर्ज की क्योंकि वहां 40 % मुसलमान हैं। औवेसी ने कहा कि आप लोग कांग्रेस और अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों को नहीं छोड़ना चाहते हैं, लेकिन याद रखें कि उनके पास ताकत नहीं है। वे मेहनत नहीं करते हैं।उन्होंने कहा कि 15 अगस्त को1947  जब देश आजाद हुआ तो हमारे बुजुर्गों ने सोचा होगा कि यह नया भारत होगा।

ओवैसी यही नहीं रुके , आगे कहा “मुझे अभी भी इस देश में अपना हक मिलने की उम्मीद है। हम भीख नहीं चाहते, हम किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहते।“ इससे पहले वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहते हैं कि “अगर कोई ये समझ रहा है कि हिंदुस्तान के वजीर-ए-आजम 300 सीट जीत कर हिंदुस्तान पर मनमानी करेंगे, तो यह नहीं हो सकेगा। हिंदुस्तान में , हम किरायेदार नहीं, बराबर के हिस्सेदार रहेंगे|” यह सब क्या इंगित करता है ?

विभाजन का दर्द वे ही अच्छी तरह जानते हैं जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप से इसको सहा है। अपने देश के बंटवारे के दौरान जिन्हें अपना घर-बार छोड़कर जाना पड़ा, अपनों को खोना पड़ा, वही इसकी दास्तान बयान कर सकते हैं। आज तक इस भयानक दर्द के बारे में हमने सिर्फ किताबों में पढ़ा है। चेकोस्लोवाकिया देश के शांतिपूर्ण विभाजन की बात छोड़कर भारत-पाकिस्तान, उत्तर और दक्षिण कोरिया और जर्मनी का विभाजन आम लोगों के लिए काफी दर्दनाक रहा है। विभाजन का कारण कोई भी हो, लेकिन रेखाएं जहां पड़ने वाली है, इनके पास रहने वाले लोगों पर इसका पहला सीधा असर पड़ता है।

1947 को अलग हुए दो हिस्सों [देशों ]के कायदे कानून अलग हैं, होना भी चाहिए । लेकिन वो दरार जिसने देश बांटा, के कारण कभी भी बेवजह सीमाओं पर दोनों देशों की अपनी-अपनी सेना तैनात हो जाती है। एक दूसरे पर बेवजह निगरानी, शक की नजर तेज हो जाती है। इसका नतीजा दोनों देशों की ओर से शस्त्र-अस्त्रों का जमावड़ा, कभी-कभार सीमा क्षेत्रों में फायरिंग होती है,जिसका खामियाजा भुगतना पड़ता है आम लोगों को। देश की रक्षा मुख्य मुद्दा बन जाता है और आम लोगों का विकास पीछे रह जाता है|

अफ़सोस, ओवैसी के बयान राहुल गाँधी और नरेंद्र मोदी के बहाने किसी और बात के संकेत है | इन दोनों नेताओं को अपनी ओर से इस विषय पर स्वत: कुछ कहना था | राजनीतिक परिदृश्य उनकी मजबूरी हो सकती है | महामहिम आपकी आसंदी राजनीति से परे कही जाती है | इस आसंदी से निर्णय राष्ट्रहित के होते हैं, हस्तक्षेप का आग्रह है | देश में गलत संदेश देने वालों को चेतावनी नहीं, सबक दीजिये | जिससे राष्ट्रभाव की भावना मजबूत हो और विभाजन के संकेत रुके | महामहिम, यही राष्ट्र हित है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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