सुलगता भोपाल और ग्वालियर-चंबल में शांति: चुनाव कुछ बदला-बदला सा है हुजूर | MY OPINION by PRAVESH SINGH BHADORIA

प्रवेश सिंह भदौरिया। लोकसभा चुनाव के 5 चरण हो गये हैं। शब्दों के तीर और जहर भरे हो चुके हैं। मध्यप्रदेश में अभी 02 चरण रह गये हैं। अमूमन शांत रहने वाला हृदयप्रदेश भी थोड़ा अशांत हुआ है। "चौकीदार चोर है", "उसका बाप चोर है" जैसे शब्द फिजाओं में घूम रहे हैं। यहां तक कि एक वर्तमान सांसद को तथाकथित रुप से सत्ता दल के एक कार्यकर्ता द्वारा सरेआम काटने की धमकी भी दी जा चुकी है। जिसका एक कारण शायद "क्षत्रिय-ब्राह्मण" वजूदीय स्थापना रहा होगा।

"धर्म जनता के लिए अफीम है" ये कार्ल मार्क्स के वाक्य आज भोपाल शहर पर सटीक बैठ रहे हैं जहां धर्म के नाम पर शैतान-आतंकी तक की संज्ञा एक प्रत्याशी को दी जा चुकी है। इससे जनता तो नहीं लेकिन मीडिया जरूर खुश है क्योंकि उसे रोज नया मसाला मिल रहा है। कुछ राजनेता भी फिल्मी कलाकार की तरह टीवी के लिए ही कार्य कर रहे हैं। क्षणिक प्रसिद्धि पाने का सबसे अच्छा तरीका वर्तमान में नकारात्मकता ही है।

हालांकि गर्म ग्वालियर-चंबल क्षेत्र इस बार शांत है। ग्वालियर में मुख्य लड़ाई दो सबसे शांत प्रत्याशियों के बीच है वहीं मुरैना में एक तरफ कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं और दूसरी तरफ भाजपा के ऐसे प्रत्याशी हैं जो बोलने से ज्यादा करने में भरोसा रखते हैं तथा जो वक्त के साथ और परिपक्व हो गये हैं। भिंड की स्थिति दो क्षेत्रों से अलग है। कांग्रेस प्रत्याशी के होने से लगा था कि माहौल बिगड़ सकता है किंतु उनकी परिपक्वता और भाजपा के लिए केंद्रीय मंत्री द्वारा शुरुआती सभा लेने से वहां पूरा चुनाव स्वतः ही शांत हो गया है। 

उम्मीद है राजनेता धैर्यवान होंगे और वोट करने के लिए किसी भी हद में जाने से बचेंगे।तभी राष्ट्र मजबूत होगा,देश तरक्की करेगा।

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