रिजर्व बैंक: देशहित इस फैसले को तो मानो | EDITORIAL by Rakesh Dubey

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नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायलय (Supreme Court) का यह निर्णय देश के आर्थिक स्वास्थ्य (Economic health) की जो तस्वीर पेश करता है। वो चौकाने से ज्यादा तुरंत कुछ करने का संकेत देती है। यह निर्णय भारतीय रिजर्व बैंक (reserve Bank) को 'विलफुल' बैंक डिफॉल्टर्स और वार्षिक निरीक्षण रिपोर्ट का खुलासा करने का निर्देश देता है। सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय इससे बेहतर समय पर नहीं आ सकता था, जब पूरा देश बैंकिंग प्रणाली के बिगड़ते स्वास्थ्य से चिंतित है। माना जाता है कि इन एनपीए का एक बड़ा हिस्सा छोटी संख्या वाले बड़े विलफुल डिफॉल्टरों के कारण होता है। शीर्ष अदालत का निर्देश जनता के लिए एक बड़ी राहत के रूप में आया, जो लंबे समय से सरकार और आरबीआई दोनों से विलफुल 'बैंक डिफॉल्टरों की सूची के खुलासे की मांग कर रहे थे। यहां तक कि इस विषय पर संसद में सवालों भी पूछे गए थे लेकिन उस पर भी सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी थी। सरकार और रिजर्व बैंक गोपनीयता कानूनों को ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे।

न्यायमूर्ति नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एमआर शाह की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने आरटीआई कार्यकर्ता सुभाषचंद्र अग्रवाल द्वारा आरबीआई के खिलाफ दायर एक अवमानना याचिका में आरबीआई बनाम जयंतीलाल एन मिस्त्री और आरबीआई में अदालत द्वारा पूर्व में जारी विशिष्ट निर्देशों के प्रति अदालत की अवज्ञा का आरोप लगाते हुए फैसला सुनाया। यह किसी से छिपा नहीं है कि ऋण के बोझ के तहत, उद्योग और बैंक बीमार पड़ जाते हैं, हालांकि किसी ने कभी यह नहीं सुना कि एक बड़े बीमार उद्योग के मालिक कभी बीमार पड़ गए। बैंक प्रबंधन और बड़े डिफॉल्टेड कर्जदारों के बीच मिलीभगत के नवीनतम मामले के रूप में पूर्व आईसीआईसीआई के टॉप ब्रास, उसके पति और वीडियोकॉन प्रमोटर्स को शामिल किया जा सकता है, जिसमें बैंक बोर्ड ने आखिरी क्षण तक मुख्य कार्यकारी को बचाने की पूरी कोशिश की। 

सर्वोच्च न्यायालय का नवीनतम निर्णय आम आदमी के लिए एक बड़ी राहत के रूप में आया है, जो अब उम्मीद करते हैं कि लोग बैंकों को जानबूझकर लूटने वाले नाम से जानेंगे। पीठ ने आरबीआई को अपनी डिस्क्लोजर नीति को वापस लेने का निर्देश दिया क्योंकि इसमें अनेक ऐसे अनेक छूट के प्रावधान है, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में जारी किए गए निर्देशों के विपरीत हैं। जयंतीलाल एन मिस्त्री मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि आरबीआई आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी का खुलासा करने के लिए बाध्य है।

सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि नई नीति, जिसने 30 नवंबर, 2016 को डिस्क्लोजर नीति की जगह ली है, विभिन्न विभागों को सूचना का खुलासा नहीं करने का निर्देश देती है, जिसे भारतीय रिजर्व बैंक बनाम जयंतीलाल एनएम के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उल्लंघन कहा जा सकता है। इस प्रकार, आरबीआई ने इस मामले में छूट देकर अदालत की अवमानना की है। हालांकि, पीठ ने आरबीआई को जयंतीलाल एन मिस्त्री के फैसले का पालन करने का एक आखिरी अवसर दिया है और बैंकिंग नियामक को भी चेतावनी दी है कि उसके आदेश का कोई भी उल्लंघन होने पर अदालत की कार्रवाई की गंभीर अवमानना मानी जाएगी।

याचिका मे कहा गया था कि आरबीआई ने एक डिस्क्लोजर नीति जारी की, जिसमें अवपे सार्वजनिक सूचना अधिकारियों (PIO) को निर्देश दिया गया कि वे लगभग सभी सूचनाओं का खुलासा न करें, यहां तक कि उच्चतम न्यायालय द्वारा जिस तरह की जानकारी का खुलासा करने का निर्देश दिया गया है, उनका भी खुलासा न करें। याचिका में कहा गया है कि आरबीआई मुख्यालय ने सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत प्राप्त आवेदनों के संबंध में जानकारी का खुलासा नहीं करने का फैसला किया है। इस निर्णय को अखिल भारतीय बैंक अधिकारियों के परिसंघ ने सही ठहराया है। वह चाहता है कि समय-समय पर अपनी डिस्क्लोजर नीति की समीक्षा करे। 
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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