प्रचार करती भाजपा और अवसर खोती कांग्रेस | EDITORIAL by Rakesh Dubey

हाल ही में राहुल गांधी ने जी 20 समूह के देशों के राजदूतों से मुलाकात की। दोपहर भोज पर हुई इस मुलाकात के दौरान उनकी मां सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह भी उनके साथ थे। राहुल ने विदेश नीति पर अपना रुख स्पष्ट करने वाला कोई वक्तव्य नहीं दिया। कांग्रेस अध्यक्ष बस एक मेज से दूसरी मेज पर जाकर मुलाकात करते रहे। वहां मौजूद एक राजनयिक ने इसे समय की बरबादी बताया तो एक अन्य ने कहा कि उन्होंने अवसर गंवा दिया। ऐसी आम धारणा बन रही है कि - विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के कमजोर प्रदर्शन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोबारा पकड़ बनाने में कामयाब रहे हैं और विपक्ष अपनी बात वजन के साथ रखने में नाकाम रहा है। 

इन दिनों मोदी सरकार अपनी छोटी-मोटी उपलब्धियों को लेकर भी अखबारों में पूरे पन्ने के विज्ञापन दे रही है। दिल्ली में यही काम आम आदमी पार्टी की सरकार ने अपने चार साल पूरे होने पर किया। जब मोदी ने बार-बार यह दावा किया कि उनकी सरकार के पहले किसी ने कुछ नहीं किया था तो भी किसी ने उनको चुनौती नहीं दी। भाजपा ने सुभाष चंद्र बोस, वल्लभभाई पटेल और यहां तक कि महात्मा गांधी जैसे कांग्रेस के दिग्गजों को हड़प लिया और कांग्रेस मूक दर्शक बनी देखती रह गई। 

वैसे राहुल गाँधी ने अब तक विभिन्न मुद्दों को लेकर मोदी पर हमले किए हैं लेकिन ये हमले उतने भी प्रभावी नहीं रहे जितना अतीत में 'सूटबूट की सरकार'। राफेल पर आरोपों की धार नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट ने कुंद कर दी। इस रिपोर्ट में बहुत सुविधाजनक ढंग से गंवाई गई सॉवरिन गारंटी तक को शामिल नहीं किया गया है। मोदी को केवल चोर कहने से कुछ नहीं होने वाला है क्योंकि बोफोर्स के उलट इस मामले में पैसे के लेनदेन का कोई संकेत नहीं मिल रहा है ।  किसानों के संकट- रोजगार की कमी आदि मसलों पर लौट जाया जाए जहां मोदी रक्षात्मक रुख अपना रहे है। 

अपनी तमाम विफलताओं के बावजूद मोदी सरकार के पास प्रदर्शित करने के लिए कई उपलब्धियां भी है । भाजपा ने जब 'नामुमकिन अब मुमकिन है' अभियान चलाया तब राहुल को तत्काल मतदाताओं को यह याद दिलाना था कि कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने अतीत में कैसा प्रदर्शन किया था और यह बात जोर देकर करनी थी कि वह उस प्रदर्शन को दोहरा सकती है। पता नहीं क्यों यह भूला जा रहा है कि गरीबी में आई भारी कमी, जीडीपी के प्रतिशत के रूप में बुनियादी क्षेत्र में निवेश के दोगुना होने, सभी बड़े शहरों में  नए हवाई अड्डे बनने, बिजली का संकट दूर करने, वाम चरमपंथ में  भारी कमी आदि संप्रग की उपलब्धियां रही थी । इतना ही नहीं कश्मीर में शांति, रिकॉर्ड फसल उत्पादन, फसल विविधता, आधार की पहल, सूचना का अधिकार के जरिये नागरिकों को अधिकार संपन्न बनाना, ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, 20 लाख वनवासियों को नए कानून के तहत भूमि अधिकार सौंपना, एड्स से सफलतापूर्वक निपटना आदि अनेक सफलताएं हैं जिनका जिक्र किया जा सकता है । अगर कांग्रेस जनता को ये उपलब्धियां याद दिलाती तो वह यह साबित कर सकती थी कि केवल मोदी ही अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे। अब सवाल यह है कि राहुल ने जी 20 देशों के राजदूतों की बैठक में खामोशी क्यों बरती?

यह धारणा बनती जा रही है कि राहुल अपनी शुरुआती गलतियों के बाद एक गंभीर राजनेता के रूप में उभरे हैं। इसके विपरीत यह भी सच है कि उन्हें गंभीर राजनीति करने में थोड़ा वक्त लग गया (वह 15 वर्ष से सांसद हैं)। बीते छह वर्ष से वह कांग्रेस के उपाध्यक्ष या अध्यक्ष हैं, परंतु इस अवधि में वह पार्टी को जमीनी स्तर पर खड़ा करने में या नया नेतृत्व सामने लाने में नाकाम रहे हैं। बावजूद इसके कांग्रेस का चुनावों में  प्रदर्शन बेहतर हुआ है। पार्टी ने राज्यों के चुनाव ही नहीं जीते बल्कि उपचुनाव में भी उसका प्रदर्शन सुधरा। जबकि उपचुनावों में भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा है और वह अपनी 13 में से 8 सीट गंवा चुकी है। ऐसा लग रहा है कि राहुल लाभ का वह अवसर गंवा रहे हैं जो सरकार की गलतियों से उनको मिले थे। दिल्ली और उत्तर प्रदेश में गठबंधन करने में नाकामी से यह विफलता और गंभीर हो गई है। 
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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