संविधान सुधारिए, 370 हट जाएगी ! | EDITORIAL by Rakesh Dubey

NEW DELHI: भारतीय संविधान की धारा ३७० को लेकर देश में चल रही बहस दो हिस्सों में बंट गई है। एक हिस्सा तुरंत इसे खत्म करने की पैरवी कर रहा है,पर सच्चाई यह है कि एकदम ऐसा करना असंभव है। असंभव इसलिए कि भारतीय संविधान खुद इसे ७० साल से अस्थाई कहने के बावजूद, फौरन कुछ करने में असमर्थ है।जैसे जम्मू कश्मीर संविधान सभा फिर से गठित नहीं की जा सकती क्योंकि जम्मू कश्मीर को जब अपना अलग संविधान रखने की इजाजत भारत ने ही दी थी। यह सब तब संभव है जब भारतीय संविधान में संशोधन हो। संविधान संशोधन करने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत की जरूरत और दृढ़ इच्छा शक्ति की जरूरत है। २०१९ का चुनाव इस दिशा में निर्णायक सिद्ध हो सकता है। सारा देश एक समान सोचे तब ऐसा हो सकता है।

कुछ लोग सोचते हैं कि इससे जम्मू और लद्दाख के संभागों की जनता के साथ होने वाला भेदभाव खत्म हो जाएगा। शायद नहीं, भारत सरकार ने हमेशा ही कश्मीर केंद्रित नीतियां अपनाई हैं। उसने कभी जम्मू या लद्दाख की ओर ध्यान नहीं दिया। उसे हमेशा यही लगा कि कश्मीर हाथ से निकल जाएगा इसलिए कश्मीरी नेताओं को ही झोली में बिठाए रखा। इस बहस का स्वागत भी है। पर इसमें धारा ३७० कहां है।धारा ३७० सारे जम्मू- काश्मीर राज्य के लिए है। वह सारे राज्य को एक समान अधिकार देती है। तो धारा ३७० पर बहस करने से क्या जम्मू और लद्दाख वालों को उनके अधिकार मिल जाएंगें? 

धारा ३७० की समाप्ति के लिए संविधान संशोधन हेतु लोकसभा और राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत के साथ ही जम्मू कश्मीर में उस संविधान सभा के गठन की आवश्यकता होगी जो इसके प्रति दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करे। जब तक जम्मू कश्मीर की विधानसभा इसको हटाने या फिर इसमें संशोधन करने का प्रस्ताव पारित नहीं करती तब तक लोकसभा या राज्यसभा धारा ३७०के प्रति कुछ नहीं कर सकती हैं और ऐसा निकट भविष्य में तभी संभव है, जब भाजपा या धारा ३७० की मुखालफत करने वाले दल की दो तिहाई बहुमत वाली सरकार जम्मू- काश्मीर राज्य में स्थापित हो।जो अभी टेढ़ी खीर दिखता है।

धारा ३७० के तहत मिलने वाले विशेषाधिकारों में से सबसे अधिक दुष्प्रचार उस नियम को लेकर है जिसके तहत राज्य के बाहर का कोई भी व्यक्ति राज्य में जमीन नहीं खरीद सकता। हालांकि कुछ अन्य राज्यों में भी ऐसा नहीं कर सकते हैं जब तक कोई व्यक्ति एक निर्धारित अवधि के तहत उस राज्य में वास नहीं करता । हालांकि उद्योग इत्यादि के लिए लीज पर जमीन मिलती है। इसका इतिहास बड़ा विचित्र है ,दरअसल वर्ष १९२७ में राज्य के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने जम्मू कश्मीर के लोगों के हितों की रक्षार्थ स्टेट सब्जेक्ट कानून बनाया था जिसके तहत राज्य का निवासी ही राज्य में सरकारी नौकरी कर सकता था और जमीन खरीद सकता था। इसी के आधार पर अन्य राज्यों ने अपने अपने कानून आजादी के बाद तैयार किए थे। यह अधिकार धारा ३७० ने नहीं दिया था बल्कि महाराजा हरि सिंह की दूरदृष्टि थी कि उन्होंने कई साल पहले ही इसे लागू कर दिया था।

कश्मीर की स्थिति को लेकर कुछ और भी दुष्प्रचार हैं जिन्हें धारा ३७० से जोड़ा जाता है, जो सही नहीं है । अन्य राज्यों की भांति जम्मू कश्मीर में भी आरटीआई लागू है। सुप्रीम कोर्ट के केसों का हवाला देते हुए मुकदमे लड़े जाते हैं। भारतीय तिरंगा भी उसी शान से फहराता है जैसे वह अन्य राज्यों में फहराया जाता है। अगर देशभर में इंडियन पैनल कोड है तो जम्मू कश्मीर में रणवीर पैनल कोड है जो महाराजा रणवीर सिंह ने तैयार की थी। हां इतना जरूर है कि जम्मू कश्मीर का अपना अलग संविधान होने के कारण भारत सरकार के कानून सीधे तौर पर लागू नहीं होते हैं बल्कि पहले उन्हें राज्य विधानसभा में पारित किया जाता है।यह सही है कि जम्मू कश्मीर का अलग संविधान है और अपना झंडा है, लेकिन इसमें जम्मू कश्मीर के लोगों की कोई गलती नहीं है। यह तो उन भारतीय नेताओं की गलती है जिन्होंने विलय पत्र को स्वीकारते हुए इसकी अनुमति दी थी। वैसे इस गलती को भी सुधारने का मौका भारतीय संविधान ही दे सकता है, पर संशोधन के बाद । यूँ तो तो भारतीय संविधान की विभिन्न धाराओं के तहत देश के कई अन्य राज्यों को भी कई अधिकार मिले हैं। कई अधिकार नए बनने वाले राज्यों को मिलने जा रहे हैं। कई राज्य विशेषाधिकारों की मांग कर रहे हैं। वर्तमान और भावी सरकार को संविधान संशोधन पर कुछ सोचना चाहिए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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