GWALIOR संभाग प्रत्येक सीट पर हार जीत के अहम फैक्टर | MY OPINION by Dr.Ajay Khemariya

अजय खेमरिया। ग्वालियर शहर की तीन सीटों पर बीजेपी को हार मिली है ग्वालियर सीट को छोड़कर शेष दो जगह ईस्ट और साउथ में हार चौकाने वाली है। ग्वालियर से मंत्री जयभान सिंह जी की हार भी मुरैना में रुस्तम सिंह की तरह सबको नजर आ रही थी ग्राउंड रिपोर्ट के दौरान किसी भी वर्ग, कोने में मंत्री जी को लेकर कोई अच्छा बोलने तैयार नही था, दूसरी तरफ कांग्रेस के केंडिडेट लगातार 5 साल से सक्रिय थे। तमाम बार नेताओं को अपनी जमीन खिसकने का अंदाजा तभी हो पाता है जब वे खुद उसे महसूस करते है जयभान सिंह जी के साथ भी यही हुआ है जनता का साथ, संगठन की नाराजगी अपनों की बेरूखी को वे समझ ही नही पाए उनका आभा मण्डल ही उनकी हार का आधार बना ।एट्रोसिटी से ज्यादा खुद जयभान सिंह अपनी व्रती और कृति के चलते परास्त हुए है।

ग्वालियर ईस्ट की सीट पर सतीश सिकरवार की हार एट्रोसिटी, जबरदस्त भीतरघात और कांग्रेस की प्रभावी केम्पेन के चलते हुई है।मुन्नालाल गोयल का लगातार यहां से हारना उनके लिये सहानुभूति का कारण रहा दूसरा कांग्रेस ने सतीश को लेकर जो नेगेटिव केम्पेन की उससे सतीश आखरी तक उबर नही पाए इसमें बीजेपी के नामधारी ,पदधारी लोगो ने जो मुलम्मा लगाया उसने इस कैडर सीट पर कमल को मुरजाने में अपना निर्णायक योगदान दिया है।यहाँ हार जिस मार्जिन से हुई है उसे सिर्फ बीजेपी के भितरघात तक सीमित करना ठीक नही है इस हार के कुछ अन्य फैक्टर भी है।

एट्रोसिटी एक्ट ने बीजेपी के सभी सवर्णों को नाराज कर दिया इनमे से एक ठाकुर जाती को यहां टिकट मिल गई शेष जो बीजेपी की खिलाफत में मंत्रियो को बंधक बना रही थी वे गुस्से में कांग्रेस के साथ हो ली। इस सीट पर ब्राह्मण और वैश्य बड़ी संख्या में है दोनो ने एकजाई होकर बीजेपी प्रत्याशी के खिलाफ वोट कर दिया।वैश्य पहले से ही समाज के नाम से बीजेपी के खिलाफ थे सयोंग से यहां कांग्रेस का इकलौता केंडिडेट ही वैश्य मिल गया। एक अन्य फैक्टर दलित वोटर सा बारीकी से समझने की जरूरत है सवर्ण तो यहां बीजेपी से नाराज थे ही दलित इसलिये बीजेपी के ख़िलाफ हो गए क्योंकि एट्रोसिटी के खिलाफ आंदोलन के अगुवाई ठाकुर लोगो ने ही की थी वे इस आंदोलन में जेल भी गए इसलिये बीजेपी के ठाकुर केंडिडेट दलितों के निशाने पर आ गए ये ट्रेंड पूरे ग्वालियर चंबल में रहा है यह फैक्टर ग्वालियर और ईस्ट की सीट्स पर स्पष्ट है इन्ही दोनो सीट्स पर दलित सर्वाधिक है और बसपा की मौजूदगी यहां नगण्य थी।

ग्वालियर ग्रामीण की सीट्स पर भारत सिंह कुशबाह की जीत पहले से ही तय थी उनकी जीत में जातीय समीकरण के साथ उनके खुद के एफर्ट्स भी मार्के वाले है उन्होंने लो प्रोफ़ाइल में 5 साल काम कर अपना जनाधार बढ़ाया था।कांग्रेस ने यहां मदन कुशबाह को उतारकर बीजेपी के समीकरण बिगड़ने के प्रयास किए पर साहब सिंह गुर्जर के बसपा से लड़ने ,फूल सिंह बरैया के निर्दलीय आ जाने से समीकरण भारत सिंह के पक्ष में हो गए उन्होंने सवर्ण वोटर्स को भी बड़ी संख्या अपने पक्ष में आने व्यवहार से कायम रखा।कांग्रेस अगर इस सीट पर अशोक सिंह को टिकट देती तो शायद यह सीट भी उसकी झोली में आ सकती थी।फिलहाल भारत सिंह यहां और भी मजबूत साबित होंगें लेकिन लोकसभा में बीजेपी की यह बढ़त कायम नही रहेगी क्योंकि तब बहुकोणीय जातीय विभाजन नही होगा।

डबरा में बीजेपी की करारी हार अप्रत्याशित नही है लेकिन मार्जिन चौकाने वाला है यहाँ जीत का गणित क्षेत्रीय सांसद और मंत्री नरोत्तम मिश्रा के समन्वय पर ही निर्भर था लेकिन यह इस चुनाव में लोकसभा और नगरपालिका की तरह बिल्कुल भी नजर नही आया।2 अप्रेल की घटनाओं के बाद ये समझा जा रहा था कि यहां नॉन जाटव प्रयोग सफल साबित हो सकता है लेकिन यह अनुमान गलत साबित हुआ किसान कर्जमाफी,केंडिडेट और बीजेपी की कलह यहां बीजेपी को यहां शर्मनाक पराजय तक ले गई।

भितरवार में बीजेपी की पराजय भी चौकाने वाली है यहां सब कुछ बीजेपी के फेवर में था यहां किसान कर्जमाफी ,रावत और बघेल समाज का टिकट न मिलने पर आखरी में बीजेपी के खिलाफ जाना हार का मूल वजह बना है। राघवेंद्र तोमर का लगभग 10 हजार वोट पाना बीजेपी के रावत वोट बैंक में सीधा नुकसान था। कांग्रेस केंडिडेट ने बड़ी चतुराई से शांत भाव से चुनाव लड़ा अनूप मिश्रा का चुनाव प्रबन्धन भी बेहद खराब था। ग्वालियर साउथ की बीजेपी की हार बहुत ही अप्रत्याशित है 1993 के बाद कांग्रेस यहां जीत पाई है किसी को भी इसका अंदाजा नही था कि बीजेपी यहां हार जाएगी क्योंकि इस सीट का जातीय गणित पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में है यहां बीजेपी का केंडिडेट जातीय आधार पर इस सीट को बीजेपी के लिये अभेद्य बनाने का काम 2003 से करता आया है।लेकिन समीक्षा के बागी लड़ने के अलावा सिंधी समाज की नाराजगी,बीजेपी के सभी बड़े नेताओं के भितरघात ने कांग्रेस का काम आसान कर दिया बीजेपी केंडिडेट की निष्क्रियता और जीरो प्रोफ़ाइल ने भी नए मतदाता वर्ग को कांग्रेस के यंग और क्वालीफाइड केंडिडेट की तरफ मोड़ दिया। इस कैडर सीट पर बीजेपी का हारना खतरनाक संकेत है खासकर संगठन के लिये।

दतिया की सीट पर मंत्री नरोत्तम मिश्रा की कम मार्जिन जीत के लिये वे स्वयं जिम्मेदार है उन्हें हराने के लिये छोटी बड़ी स्थानीय बाहरी सब ताकते लगी लेकिन खुद के कैलिबर से वे जीतने में सफल साबित हुए उनके खिलाफ जातीय आधार पर अंदर ही अंदर बड़ा धुर्वीकरण हुआ विकास कार्य और जनसंपर्क सब धरे रह गए।जिस बसई इलाके में वे लगातार पिछड़ते आ रहे थे इस बार इसी इलाके ने उन्हें बचा लिया।उनकी कठिन जीत के पीछे प्रदीप अग्रवाल का टिकट कटवाने का फैक्टर भी अहम रहा।सेंबड़ा ,भांडेर के टिकट कटवाने का ठीकरा भी उनके सिर रहा है पार्टी में उनका व्यापक विरोध अंदर ही अंदर चरम पर था जिसे वे नजरअंदाज करते रहे यही उनका बड़ा चैलेंज रहा।अंत मे वे जीत गए तो सिर्फ अपनी निजी हैसियत ओऱ प्रभाव से।

भांडेर में बीजेपी अगर टिकट नही बदलती तो परिणाम यह नही होता घनश्याम पिरोनिया के विरुद्ध मैदान में कोई नाराजगी नही थी उसके बाबजूद बीजेपी ने वहां टिकट बदलकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली जिस केंडिडेट को टिकट दिया वह किसी एंगिल से इस काठी के लिये उपयुक्त नही थी।
सेंबड़ा में भी बीजेपी ने केंडिडेट बदलकर भांडेर जैसी गलती की प्रदीप अग्रवाल का भी मैदान में कोई विरोध नही था उनका टिकट काटना गलत निर्णय रहा इसका प्रभाव जिले की तीनों सीटों खासकर दतिया में ज्यादा नजर आया। प्रदीप अग्रवाल यदि केंडिडेट होते तो इतनी बुरी हार नही होती सेंबड़ा में,भांडेर सेंबड़ा दोनो जगह बीजेपी को नरोत्तम विरोधी लॉबी ने इसलिये भी यहाँ दोनो केंडिडेट को निपटाने का काम किया क्योंकि इन दोनों पर नरोत्तम मिश्रा की छाप लगी थी।

शिवपुरी जिले में बीजेपी को 5 में से 2 सीट मिली है शिवपुरी में कैबिनेट मंत्री यशोधरा राजे जी जीती है उनकी बम्पर जीत विशुद्ध रूप से उनकी निजी जीत है सिंधिया परिवार के प्रभुत्व और उनकी निजी मेहनत से शिवपुरी में बीजेपी को शानदार जीत मिली।

कोलारस में बीजेपी की जीत भी बीजेपी और कांग्रेस के ऊंचे नेताओं के लिये चौकाने वाला रहा है।वीरेंद्र रघुवंशी अपने निजी नेटवर्क और कांग्रेस प्रत्याशी की विरोधी लॉबी की मदद से ही जीत सके है उनकी लड़ाकू क्षवि को भी लोगो ने काफी पसंद किया।यहां बीजेपी संगठन के 80 फीसदी लोग बीजेपी के खिलाफ रहे कमोबेश यही हालत कांग्रेस केंडिडेट के साथ रही।

करैरा में कांग्रेस की जीत विशुद्ध रूप से बीजेपी के खराब केंडिडेट और एट्रोसिटी एक्ट के चलते हुई,किसान कर्जमाफी का मुद्दा भी यहां बड़ा फैक्टर साबित हुआ है।सिंधिया का प्रभाव भी यहां एक फ़ेक्टर रहा है।बीजेपी केंडिडेट अगर रमेश खटीक होते तो शायद यहाँ बीजेपी के पक्ष में नतीजे आ सकते थे।यहाँ बीजेपी केंडिडेट को आरम्भ से ही स्वीकार्यता की समस्या से जूझना पड़ा।कुशवाह, गुर्जर,जाटव,यादव ब्राह्मण ,वैश्य,कुछ सीमा तक रावत जाती का विरोध भी यहां झेलना पड़ा।

पोहरी में बीजेपी केंडिडेट की हार किरार जाति का केंडिडेट कांग्रेस से आना रहा ,बसपा से कैलाश कुशबाह का लड़ना भी बीजेपी के लिये हार का कारण रहा।इस बार यहां यादव,रावत, गुर्जर,आदिवासी,वोट बैंक कांग्रेस की तरफ खिसक गया साथ ही किरार वोटर में भी डिवीजन हो गया।

पिछोर में बीजेपी ने बहुत शानदार चुनाव लड़ा इससे बेहतर चुनोती 30 साल में कभी बीजेपी नही दे पाई इसके बाबजूद बीजेपी नजदीकी मुकाबले में हार गई ।यहाँ बीजेपी ब्राह्मण,वैश्य वोटर के कारण हार गई।

बमौरी की सीट पर बीजेपी की हार बिल्कुल भी चौकाने वाली नही है जिस तरह का केंडिडेट यहां बीजेपी ने उतारा उसी दिन बीजेपी मुकाबले से बाहर हो गई शेष काम के एल अग्रवाल ने निर्दलीय लड़कर कर दिया।अगर के एल अग्रवाल या ओ एन शर्मा को बीजेपी टिकट मिला होता तो कांग्रेस विधायक की हार कोई रोक नही पाता।यह सीट बीजेपी ने गिफ्ट में कांग्रेस को दी है ।

गुना में केंडिडेट बदलने का फायदा बीजेपी को मिला यह सीट बीजेपी की कैडर सीट बन गई है।कांग्रेस केंडिडेट बेहद ही हल्का साबित हुए।5 साल में कांग्रेस यहाँ कोई विकल्प नही खड़ा कर पाई।

चांचौड़ा में ममता मीणा ने बेहतर चुनाव लड़ा बीजेपी के पाया इससे अच्छा विकल्प नही था।लक्ष्मण सिंह की जीत प्रत्याशित थी उसी अनुरूप नतीजा आया है भील,लोधा,दलित,ब्राह्मण,वैश्य वर्ग ने यहां बीजेपी को वोट नही किया।कुंभराज जैसे इलाके में भी बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा।यहां बीजेपी केंडिडेट का निजी विरोध भी उन्हें ले डूबा पूरे 5 साल ममता मीणा पार्टी को खूंटी पर टांग कर रखे रही ।

राधौगढ़ में कांग्रेस की जीत पर किसी को कभी शंका नही थी। 5 साल में यहां विधायक राजवर्धन सिंह ने खुद को प्रमाणित किया है उसका फायदा उन्हें मिला है।

अशोकनगर में बीजेपी केंडिडेट ठीक थे लेकिन किसान कर्जमाफी ,एट्रोसिटी, और कांग्रेस केंडिडेट का मजबूती से चुनाव लड़ना बीजेपी की हार का कारण रहा।बीजेपी संगठन ने भी यहां पार्टी को निबटाने में संकोच नही किया।

चन्देरी सीट पर भूपेंद्र द्विवेदी का प्रयोग नाकाम रहा बीजेपी के पूर्व विधायक राजकुमार यादव का बसपा से लड़ना पूर्व विधायक जगन्नाथ रघुवंशी की खुली नाराजगी बड़ा फैक्टर रहा है।यहां लोधी जाति इस बार भी बीजेपी के साथ नही आ सकी आदिवासी ,यादव,रघुवंशी,लोधी जातियों में बीजेपी से बिखराब हार का मूल कारण रहा है।बीजेपी संगठन के बिना भी भूपेंद्र द्विवेदी ने अच्छी टक्कर दी।

मुंगावली सीट बीजेपी किनारे पर आकर यहां इस बार हार गई यहाँ बीजेपी ने ही बीजेपी को हरा दिया। पूरे संभाग में बीजेपी संगठन कहीं भी अपनी छाप नही छोड़ पाया हर जगह बीजेपी के लोगो ने बीजेपी को बड़ी संख्या में हराने का काम किया जबकि कांग्रेस तुलनात्मक रूप से पहली बार एकजुट नजर आई।

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