लुढ़कता रुपया और अर्थतन्त्र के अनुमान | EDITORIAL by Rakesh Dubey

दिन–ब-दिन कमजोर होते रूपये के पीछे वैश्विक अर्थव्यवस्था की मौजूदा हलचलें भी हैं, जो भारत के आर्थिक तंत्र पर चिंताजनक असर डाल रही हैं। डॉलर के मुकाबले कमजोर रुपया, कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता, निर्यात में नरमी और पूंजी का बाजार से पलायन जैसे कारक भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के मार्ग की चुनौती बने हुए हैं।

भारत सरकार द्वारा वस्तु एवं सेवा कर के माध्यम से कराधान प्रणाली में आवश्यक सुधार के प्रयास तथा नोटबंदी के निर्णय के भी प्रारंभिक परिणाम निराशाजनक रहे हैं, लेकिन यह बड़े संतोष की बात है कि इन सभी चुनौतियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की गति मजबूती से जारी है। इसका एक बड़ा कारण कर सुधार और दिवालिया कानूनों को लागू करना माना जा रहा है।

आंकड़ों को देखें तो इन पहलों से आर्थिक प्रणाली की संरचना को ठोस आधार मिला है। औद्योगिक संस्था फिक्की के ताजा तिमाही सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में मेनुफैक्चरिंग सेक्टर में उत्पादन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होगी और इसका एक नतीजा निर्यात बढ़ने के रूप में सामने आयेगा। सही मायने में  निर्यात में अपेक्षित वृद्धि नहीं होने और रुपये की कीमत गिरने से चालू खाता घाटा बढ़ा है। रुपये की गिरावट से भी निर्यात को लाभ नहीं हो सका है ,ऐसे में पिछली तिमाही के आकलन और अगली तिमाही के पूर्वानुमान बहुत कुछ कहते हैं और गंभीर इशारे भी करते हैं।

एशियन डेवलपमेंट बैंक ने सितंबर के आखिरी हफ्ते में कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर मौजूदा वित्त वर्ष में 7.3 प्रतिशत और आगामी वित्त वर्ष में 7.6 प्रतिशत रह सकती है। यह अनुमान भारतीय रिजर्व बैंक और भारत सरकार के अनुमान से मेल खाता है। बहुत अलग नहीं है। चालू वित्त वर्ष के लिए रिजर्व बैंक का आकलन 7.4 प्रतिशत है और सरकार का मानना है कि विकास दर 7.5 प्रतिशत रह सकती है।

यह सब इसलिए भी है कि एशिया की ज्यादातर उभरती अर्थव्यवस्थाओं के विकास में स्थिरता बनी हुई है और इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर के बड़े झटकों को बर्दाश्त करने में सहूलियत बनी रहेगी, जो भारत को राहत देती है। कुछ अन्य अहम तथ्य भी देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती की और इशारा करते हैं। एशियन डेवलपमेंट बैंक की सालाना रिपोर्ट में रेखांकित किया है कि 2018-19 के इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रही थी और इस अप्रैल-जून में निजी उपभोग में 8.6 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गयी थी। वही लगातार दूसरी तिमाही में निवेश की बढ़त दो अंकों मेंअर्थात 10 प्रतिशत रही है।

यह इस बात संकेत है कि नोटबंदी और डिजिटल लेन-देन पर जोर देने के खराब असर से ग्रामीण क्षेत्र बाहर निकल रहा है और वहां आमदनी बेहतर हो रही है। एक सिद्धांत है कि उपभोग और उत्पादन की बढ़त से ग्रामीण अर्थव्यवस्था से बड़ी मदद मिलती है। किसानों के लिए किये जा रहे उपायों और स्वास्थ्य बीमा नीति से भी आमदनी, बचत और खर्च में फायदा होने की उम्मीद दिखती है, लेकिन इस माहौल में खुदरा मुद्रास्फीति में बढ़त, निर्यात को बढ़ाने और पूंजी बाजार की अस्थिरता पर ध्यान दिया जाना भी उतना ही जरूरी है, तभी संतुलन सध सकता है।
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !