SC/ST एक्ट से उपजी आपदा का भी हल है | EDITORIAL by Rakesh Dubey

Bhopal Samachar
एससी-एसटी और ओबीसी को लेकर किए गए फैसलों से केंद्र की मोदी सरकार और मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार हलकान है। 6 सितम्बर को सवर्ण जातियों के भारत बंद से निबटने की तैयारियां चल रही हैं। इसी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आए फैसले के खिलाफ दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को 'भारत बंद' किया था। इस दौरान सबसे ज्यादा हिंसा मध्य प्रदेश के ग्वालियर और चंबल संभाग में हुई थी। अब देश में सवर्ण समुदाय के लोग भी एकजुट हो रहे हैं। केंद्र में भाजपा अध्यक्ष तो मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह यदि चिंतित हैं, तो कुछ राजनीतिक ताकत इस आग में अपने हाथ भी सेंक रही है। क्या इस समस्या का कोई हल नहीं है ?

खबर है कि दिल्ली में हुई बैठक में बीजेपी नेताओं ने सवर्ण वर्गों की नाराजगी को लेकर चर्चा की। बैठक में इस बात पर चर्चा हुई कि मोदी सरकार की ओर से ओबीसी और दलितों को लेकर किए गए फैसलों से सवर्ण जाति में नाराजगी फैल रही है और इस नाराजगी को कैसे दूर किया जाए। सरकार चाहती है कि सवर्ण जातियों की नाराजगी को किस तरह से दूर किया जाए जिससे यह तबका भी पार्टी के साथ जुड़ा रहे, साथ ही एससी/एसटी और ओबीसी जाति के लोग भी नाराज ना हों। इसी मसले को लेकर अमित शाह ने एनडीए के घटक दलों के नेताओं के साथ भी बात की है।

दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार की ओर से लाए गए एससी/एसटी कानून को लेकर कई सवर्ण संगठनों द्वारा छह सितंबर को आहूत की गई 'भारत बंद' के मद्देनजर समूचे मध्य प्रदेश में पुलिस अलर्ट हो गई है|इसी के तहत राज्य के 3 जिलों मुरैना, भिंड और शिवपुरी में ऐहतियाती तौर पर मंगलवार से धारा 144 तत्काल प्रभाव से लगा दी गई जो सात सितंबर तक प्रभावी रहेगी। मध्य प्रदेश में एससी/एसटी एक्ट के खिलाफ सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था (सपाक्स) के द्वारा शुरू किया गया आंदोलन पूरे राज्य में फैलता जा रहा है। प्रशासन को डर है कि राज्य में विरोध प्रदर्शन के दौरान दलित समुदाय के युवा प्रदर्शन कर सकते हैं और अगर ऐसा होता है तो हिंसा भड़क सकती है।

राज्य के सभी 51 जिलों के पुलिस अधीक्षकों को सतर्क रहने के निर्देश दिए गए हैं।

सवाल यह है कि यह समस्या देश  में हर कभी और हर किसी रूप में सिर उठाती है। सरकार ने इसके लिए एक रास्ता “समान नागरिक संहिता”  विधि आयोग के माध्यम से चुना था। आयोग के अपनी धारणा, प्रक्रिया और सीमा होती है। इसके विपरीत सरकार के हाथों में असीमित शक्ति,   केंद्र सरकार जब एक रात में नोट बंदी का आदेश निकाल सकती है तो इस समस्या के निदान के लिए एक अध्यादेश “समान नागरिक संहिता “ के पक्ष में भी जारी कर सकती है। यह एक सर्वमान्य हल हो सकता है। देश सबका है, इस आग को हवा दे रहे हाथों को सब जानते हैं,  आम नागरिक अपने विशेषाधिकार का उपयोग करें, हिंसा से बचें। विचार से रास्ता निकलता है, इससे भी निकलेगा।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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