हर दिन फिसलता रुपया क्यों ? | EDITORIAL by Rakesh Dubey

कुछ दिन पहले रुपये का मूल्य लगभग 64 रुपये प्रति डॉलर था जो इस समय घटकर लगभग 71 रुपये प्रति डॉलर हो गया है। रुपये का यह मूल्य हमारे विदेशी मुद्रा बाजार में निर्धारित होता है। यह बाजार एक मंडी सरीखा है। मंडी में आलू का दाम इस बात पर निर्भर करता है कि विक्रेता कितने हैं, और खरीददार कितने हैं? इसी प्रकार रुपये का दाम विदेशी मुद्रा बाजार में इस बात पर निर्भर करता है कि डॉलर आदान- प्रदान कितना है? जब विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर अधिक आ जाते है तो डॉलर के दाम गिरते हैं और तदानुसार रुपये का दाम ऊंचा होता है। इसके विपरीत जब विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर की मांग  बढ़ जाती है तो डॉलर का दाम बढ़ जाता है और तदानुसार रुपये का दाम गिरता है जैसा कि वर्तमान में हो रहा है।

रुपये की मूल्य की इस गिरावट के कारण जानने के लिए हमें देखना होगा कि डॉलर की आवक कम क्यों है और मांग ज्यादा क्यों है? पहले आवक को लें। डॉलर की आवक  का प्रमुख स्रोत हमारे निर्यात हैं। हमारे उद्यमी जब इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अथवा गलीचे का निर्यात करते हैं तो विदेशी खरीदार भुगतान डॉलर में करते हैं। हमारे निर्यातक इन डॉलर को हमारे विदेशी मुद्रा बाजार में बेचते हैं और इनके बदले रुपये खरीदते हैं। डॉलर की आवक कम होने का प्रमुख कारण यह है कि हमारे निर्यात कम हो रहे हैं इसलिए निर्यातकों द्वारा कम मात्रा में डॉलर अर्जित किये जा रहे हैं और निर्यातों के माध्यम से डॉलर की आवक कम है। डालर की आवक कम होने का दूसरा कारण विदेशी निवेश में गिरावट है। विदेशी निवेश डॉलर को भारतीय मुद्रा में बेचकर रुपये में बदलते हैं और तब उस रुपये का भारत में निवेश करते हैं। जनवरी से अप्रैल 2017 में विदेशी निवेशकों ने 1400 करोड़ डॉलर का भारत में निवेश किया था। जनवरी से अप्रैल 2018 में यह रकम गिरकर मात्र 30 करोड़ रह गई है। इसलिए विदेशी निवेश से डॉलर की सप्लाई कम आ रही है।

डॉलर की मांग ज्यादा होने का एक और कारण यह है कि भारत से अमीर लोग पलायन कर रहे हैं। वे भारत की नागरिकता छोड़कर अपनी पूंजी को भारत से दूसरे देशों में ले जा रहे हैं और वहां की नागरिकता स्वीकार कर रहे हैं। इस कार्य के लिए भी वे रुपयों को विदेशी मुद्रा बाजार में जमा करके डॉलर खरीद रहे हैं। दूसरी तरफ हमारे विदेशी मुद्रा बाजार में हमारे डॉलर की मांग बढ़ रही है। इसका एक कारण कच्चे ईंधन तेल के दाम में वृद्धि है। अमेरिका में अर्थव्यवस्था तीव्र गति से बढ़ रही है।  इससे अमेरिका में तेल की डिमांड बढ़ रही है और विश्व बाजार में कच्चे तेल के दाम 60 रुपये प्रति बैरल से बढ़कर वर्तमान में 80 रुपये प्रति बैरल हो गया है। इसी क्रम में हमारे दूसरे आयातों में भी वृद्धि हो रही है। चीन से खिलौने, फुटबाल आदि का आयात भारी मात्रा में हो रहा है। इन आयात के लिए हमारे आयातक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये जमा करते हैं और डॉलर खरीदते हैं। आयातकों द्वारा रुपये ज्यादा मात्रा में हमारे विदेशी मुद्रा बाजार में जमा किए जा रहे हैं और तदानुसार डॉलर की मांग बढ़ रही है और इस बढती मांग के कारण रुपया फिसल रहा है। सरकार को गंभीरता से सोचना होगा।

सारांश है कि हमारे निर्यात और विदेशी निवेश कम होने से डॉलर की सप्लाई कम हो रही है, जबकि ईंधन तेल तथा अन्य माल के आयात बढ़ने से डॉलर की डिमांड बढ़ रही है। इस असंतुलन के कारण डॉलर का मूल्य बढ़ रहा है और तदानुसार रुपया फिसल रहा है। 
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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