दिग्विजय सिंह संघी चाल से घबराई भाजपा, मंत्रियों से मांगा फीडबैक | MP ELECTION NEWS

भोपाल। अबकी बार 200 पार का ऐलान करके जन आशीर्वाद यात्रा पर निकले सीएम शिवराज सिंह के रथ के आसपास भीड़ तो काफी नजर आ रही है परंतु सीएम शिवराज सिंह के चेहरे पर वो आत्मविश्वास और उल्लास नजर नहीं आ रहा जो 2013 में दिखाई दे रहा था। इधर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मप्र में भाजपा को चित करने के लिए आरएसएस की रणनीति अपना ली है। वो वन-टू-वन पैटर्न पर काम कर रहे हैं। शिवराज सिंह के जासूसों की रिपोर्ट है कि दिग्विजय सिंह की मैन-टू-मैन मार्किंग प्रभाव छोड़ रही है। घबराई भाजपा ने मंत्रियों से आधिकारिक जानकारी मंगवाई है। 

बीजेपी में सारा बोझ शिवराज सिंह पर


भाजपा संगठन के उच्च स्तरीय पदाधिकारी एक्टिव हैं परंतु मीडिया मैनेजमेेंट सुस्त है और जमीनी कार्यकर्ता बेपरवाह। उनकी उदासीनता के अपने-अपने कारण भी हैं और उनके तर्क अकाट्स हैं। हालात यह हैं कि इन दिनों भाजपा कार्यालय में जब भी 100-50 कार्यकर्ता जमा हो जाते हैं, एक मीटिंग कर ली जाती है ताकि प्रेस रिलीज जारी किया जा सके। मीटिंग-मीटिंग खेलने वाले दिग्गज जमीन पर उतरने की क्षमता ही नहीं रखते, जिनकी जनता पर पकड़ है वो रूठे हुए हैं। कुल मिलाकर बीजेपी का सारा बोझ सीएम शिवराज सिंह पर ही है। 

मंत्री और पदाधिकारी भी लापरवाह

हालात यह है कि मप्र के कई मंत्री और संगठन के पदाधिकारी भी लापरवाही कर रहे हैं। जिलों में पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय बनाने और सत्ता-संगठन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा के लिए हर एक मंत्री और एक पदाधिकारी को जिलो में जाने के निर्देश दिए थे परंतु जब पार्टी ने उन मंत्री और पदाधिकारियों की टीम से बैठकों का फीडबैक मांगा तो किसी के पास कुछ नहीं था। लाचार संगठन ने अब तक बैठकें नहीं करने वालों को भी तत्काल जिलों में जाकर बैठकें पूरी करने को कहा है। 

कमलनाथ और सिंधिया पर भारी दिग्विजय सिंह की यारी


नर्मदा यात्रा के बाद दिग्विजय सिंह का एक नया संस्करण सामने आया है। वो कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ यारी जमा रहे हैं। उनकी बातों में अपनापन और रिश्तों का अधिकार नजर आ रहा है। कम शब्दों में कहें तो वो मध्यप्रदेश में कांग्रेस के अकेले पूर्णका​लिक दिग्गज नेता हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे कि आरएसएस के प्रचारक हुआ करते हैं। इधर ज्योतिरादित्य सिंधिया की पार्टटाइम पॉलिटिक्स पहले की तरह जारी है। कमलनाथ भोपाल में डटे हैं परंतु मीटिंग-मीटिंग ही खेल रहे हैं, मानो वो प्रदेश अध्यक्ष नहीं बल्कि संगठन मंत्री हों जिसे जनता से कोई सरोकार नहीं होता। मध्यप्रदेश की जनता को कमलनाथ की उपस्थिति केवल बयानों के माध्यम से ही पता चल रही है। 
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