खड़े होईये अन्नदाता के पक्ष में | EDITORIAL by Rakesh Dubey

सारी सरकारें चुनाव सामने दिखते ही किसानों की बात करने लगती है। इसके विपरीत कृषि फसलों को उत्पादन खर्च पर आधारित लाभकारी कीमत प्राप्त करने के लिए देशभर के किसान दशकों से संघर्ष करते आए हैं, उनका संघर्ष आज भी जारी है। कुछ संगठनों द्वारा कुछ सालों से स्वामीनाथन आयोग की सिफरिशे (राष्ट्रीय किसान आयोग) लागू करने की मांग फिर शुरु की है। आयोग की यह रिपोर्ट प्रथम हरित क्रांति की तरह उत्पादन केंद्रित है। प्रथम हरित क्रांति का अनुभव यह बताता है कि उत्पादन वृद्धि के लिए केवल किसान ही नहीं पूरे समाज को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार लागत पर डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने की सिफारिश को  भी एक धोखा कहा गया है। इसलिए केवल जुमलों को घेरने के लिए यह मांग करना नासमझी है। खासकर तब जब पूरे देश में किसानों में आक्रोश है और वह अपने अधिकार के लिए रास्ते पर उतर गया है। मध्यप्रदेश जैसे कुछ राहत प्रयासों के बावजूद।

भारत में कृषि उत्पादन बढ़ाने की चुनौती हमेशा रही है। देश में बढ़ती आबादी के खाद्यान्न पूर्ति के लिए डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन के नेतृत्व में हरित क्रांति की शुरुआत की गई। खेती की देशी विधियों के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने का रास्ता अपनाने के बजाय उन्होंने रासायनिक खेती, संकरीत बीज और यांत्रिक खेती को बढ़ावा दिया। क्रॉप पैटर्न बदलकर एक फसली पिक पद्धति को बढ़ावा देने से जैव  विविधता, फसल विविधता पर बुरा असर पड़ा। देश के बड़े हिस्से में बहुफसली खेती एक फसली खेती में परिवर्तित हो गई। किसान को अपने खेती से पोषक आहार तत्व मिलना बंद हुआ तथा पूरे देश में रासायनिक खेती के कारण कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति घटी व भूजल स्तर में तेजी से गिरावट आने लगी तथा जमीन, पानी और खाद्यान्न जहरीले हुए। कृषि उत्पादन तो बढ़ा लेकिन किसानों पर दो तरफा मार पड़ने से उनकी हालत तेजी से बिगड़ती गई। बीज, खाद, कीटनाशक, यंत्र का बढ़ता इस्तेमाल, सिंचाई, बिजली आदि के लिए किसान की बाजार पर निर्भरता बढ़ने से लागत खर्च बढ़ा। फसलों का उत्पादन बढ़ने से फसलों की कीमत कम हुई। परिणामस्वरूप लागत और आय का अंतर इस तरह कम हुआ कि खेती घाटे का सौदा बनी और किसान कर्ज के जाल में फंसता चला गया।

दूसरी हरित क्रांति के लिए यूपीए के तत्कालीन कृषि मंत्री ने कहा है कि उन्होंने स्वामीनाथन आयोग की 17 में से 16 सिफारिशें लागू की थीं। एनडीए सरकार कह रही है कि उन्होंने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट नब्बे प्रतिशत लागू की है। अर्थमंत्री ने बजट पेश करते समय कहा कि सरकार पहले से स्वामीनाथन आयोग के अनुसार लागत के डेढ़ गुना कीमत दे रही है। अब सरकार ने सी-2 पर पचास प्रतिशत मिलाकर एमएसपी देने की घोषणा कर दी है। स्वामीनाथन स्वयं कहते हैं कि एनडीए सरकार उनके रिपोर्ट पर अच्छा काम कर रही है। फिर भी किसान की हालत बिगड़ती जा रही है। क्यों, एक सवाल है ?

किसानों को तुरंत राहत दे ऐसी कोई योजना  सरकार के पास नहीं है न ही इसके लिए उन्होंने बजट में कोई प्रावधान किया है। स्वामीनाथन आयोग की आर्थिक सिफारिशें पूर्णत: लागू होने पर भी किसान के मासिक आय में अधिकतम 1000 रुपयों की बढ़ोतरी संभव है। इसके विपरीत आज किसान की केवल खेती से प्राप्त मासिक आय औसतन 3000 रुपये है। वह बढ़कर 4000 रुपये हो सकती है। अन्य मिलाकर कुल आय 6400 रुपये से 7400 रुपये हो सकती है। जबकि सरकार कुल आय को दोगुना करने का दावा कर रही है। परिवार की बुनियादी आवश्यकताओं के लिये न्यूनतम मासिक आय 21 हजार रुपये होनी चाहिये।  जरूरी है, सरकारों इस बात के लिए दबाव बनाया जाये कि वह  इस निमित्त चल रहे किसान आन्दोलन को वो गंभीरता से ले। भारत कृषि प्रधान देश है, हर नागरिक का किसानों से प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्बन्ध है। इससे सरोकार जोड़ कर अन्नदाता के हाथ सबको मजबूत करना चाहिए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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