कमलनाथ ने सिंधिया को कभी बढ़ने नहीं दिया | Blog by Hitesh Bajpai

हितेष वाजपेयी। कमलनाथ जी का मध्यप्रदेश में इतिहास रहा है, जो की कुछ महीनों का ही है कि वे केंद्र के सभी नेताओं को अपने से हीन और जूनियर मानते हैं और शायद "कम-अक्ल" भी। यही कारण है कि दीपक बावरिया की मध्यप्रदेश में हो रही "पिटाई" को भी उन्होंने अप्रत्यक्ष "समर्थन" ही नहीं दिया अपितु कोई कार्यवाही न कर इसे प्रोत्साहित ही किया है। 

गाहे बगाहे दीपक बावरिया के नीति-निर्देशों को भी उन्होंने कभी समर्थन नहीं दिया अपितु "राशी" वापस करा कर यह भी बता दिया कि दीपक जी के सारे फैसले उनके लिए "बेकार" हैं। दीपक बावरिया भी दुखी हैं परन्तु कमलनाथ जी के इस व्यवहार के विरुद्ध न कुछ कर सकते हैं और न ही मध्यप्रदेश से भाग सकते हैं। यानि की उन्हें कमलनाथ के अपमानजनक व्यवहार को झेलना ही है।

इसके पश्चात कमलनाथ जी ने हमेशा सिंधिया जी को भी कभी बढ़ने नहीं दिया। सिंधिया के "नेतृत्व" की उद्घोषणा में सबसे बड़ी बाधा कमलनाथ ही रहे। कमलनाथ इसलिए भी परेशान हैं क्योंकि सिंधिया के आकर्षक व्यक्तित्व के सामने उनकी छवि एक स्वार्थी "राजनैतिक-पर्यटक" की ही है और यह सभी हाल में हुए "सर्वे" में भी उभर कर आ रहा है। सभी सर्वे में लोकप्रियता के क्रम में एक तरफ कमलनाथ का नाम ही नहीं है तो वहीँ दूसरी तरफ सिंधिया जी को कांग्रेस नेताओं में अच्छी खासी लोकप्रियता हासिल होती है। 

शायद चौहत्तर साल बाद मध्यप्रदेश आये, कानपूर में जन्में कमलनाथ ग्वालियर की मिट्टी के सामने "बौनें" साबित हो रहे हैं। कमलनाथ शायद इसलिए भी नाराज़ हैं क्योंकि उनके प्रयास के बावजूद राहुल गाँधी नें सिंधिया को कांग्रेस की चुनावी नैय्या की "कमान" में शामिल कर ही दिया। 

राहुल गाँधी नें एक महती कार्यक्रम कार्यकर्ताओं को उनसे जुड़ने का "शक्ति-एप्प" का दिया। कमलनाथ नें "मुंह-दिखाई" के रूप में इसे जोर-शोर से शुरू भी किया। इसके लिए हर विधायक को टारगेट भी दिया गया परन्तु मन ही मन कमलनाथ की प्लानिंग कुछ और थी और कमलनाथ नें राहुल गाँधी की "शक्ति" को फ़ैल कर ही दिया। 

मैं ज़ी न्यूज़ के विवेक पतैय्या की रिपोर्ट देख रहा था। विवेक भाई का कहना है कि इस एप्प से केवल बीस हज़ार कार्यकर्ता ही पिछले एक महीने में जुड़ पाए। ये कमलनाथ जी की सोची समझी "रणनीति" नहीं तो और क्या है जो कि नहीं चाहते कि कार्यकर्ता सीधे राहुल गाँधी से जुड़ पायें। जो कांग्रेस दावा करती है कि उसनें फर्जी वोटर लिस्ट को ठीक करवाया वो एक महीने बाद भी केवल बीस हज़ार कार्यकर्ता राहुल गाँधी के एप्प से जोड़ पाए इसमें जरूर कुछ न कुछ "सोच" है। 

कमलनाथ नहीं चाहते कि मध्यप्रदेश का सच राहुल गाँधी तक पहुंचे क्योंकि मानों या न मानो परन्तु मध्यप्रदेश कांग्रेस का सही नेतृत्व तो सिंधिया ही हैं उनके पश्चात अजय सिंह, बाला बच्चन, कांतिलाल भूरिया, विवेक तनखा, सुरेश पचौरी, रामेश्वर नीखरा, हजारी लाल रघुवंशी, राजेन्द्र सिंह जैसे मेहनती नेता आते हैं जिन्होंने अपना जीवन कांग्रेस को दिया है और हाँ कमलनाथ के प्यारे दिग्विजय सिंह जी तो वैसे भी श्री "बंटाधार" के रूप में ख्यात हैं ही जो कि कमलनाथ को मुफीद लगते हैं। 
लेखक श्री हितेष वाजपेयी मप्र राज्य नागरिक आपूर्ति निगम के चेयरमैन हैं। 
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