इंटरनेट: उपकरण है, हथियार नहीं ! | EDITORIAL

राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत का इंटरनेट उपभोक्ता समाज और विशेषकर मीडिया जगत के लोग बिना किसी सूचना के इंटरनेट शट डाउन के शिकार हो जाते हैं। ये शिकायत भी करें, तो किससे कोई सुनने को तैयार नहीं है। एक प्रजातांत्रिक देश में किसे क्या परिभाषा दें, समझ से परे है। इंटरनेट शट डाउन के   मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे है। देश में कोई समझने को तैयार नही है. विश्व में भारत की छबि अच्छी नहीं बन रही है।

यूनेस्को और इंटरनैशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स की ओर से जारी ‘साउथ एशिया प्रेस फीडम रिपोर्ट 2017-18’ के मुताबिक बाकी दुनिया के मुकाबले साउथ एशिया में इंटरनेट शटडाउन की घटनाएं ज्यादा होती हैं, जबकि साउथ एशिया में भारत अव्वल है। इंटरनेट शटडाउन का मतलब है कानून-व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से शासन के आदेश पर किसी खास क्षेत्र में कुछ समय के लिए इंटरनेट सेवाएं रोक देना।

आंकड़े देखें तो मई 2017 से अप्रैल 2018 के बीच पूरे दक्षिण एशिया में इंटरनेट शटडाउन की 97 घटनाएं रेकॉर्ड की गईं, जिनमें 82 अकेले भारत में हुईं। पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे उपद्रवग्रस्त माने जाने वाले देश हमसे बेहतर स्थिति में हैं। इस अवधि में पाकिस्तान में 12 इंटरनेट शटडाउन हुए जबकि अफगानिस्तान और श्रीलंका में मात्र एक-एक घटना दर्ज हुई। वैसे इन देशों में इंटरनेट की पहुंच सीमित है इसलिए यहां उसके दुरुपयोग की भी ज्यादा गुंजाइश नहीं रहती। इसके विपरीत भारत जैसे लोकतांत्रिक देश की तुलना इस मामले में  जब भी की जाएगी तो पश्चिम के विकसित और लोकतांत्रिक समाजों से ही की जाएगी अभी जो आंकड़े उपलब्ध हैं उसके अनुसार भारत इस तुलना में कहीं नहीं ठहरता। कश्मीर भारत का ऐसा क्षेत्र है जहां अक्सर ऐसे कदम उठाने पड़ते हैं, लेकिन देश के अन्य हिस्सों में भी हाल के दिनों में इंटरनेट शटडाउन की काफी घटनाएं हुई हैं।

भारतीय प्रशासन शांति स्थापना के दृष्टिकोण से इसे अपेक्षाकृत आसान और हानिरहित कदम मान कर चलता है। अक्सर कानून व्यवस्था को खतरे की आशंका होने पर इंटरनेट शटडाउन के आदेश दे दिए जाते हैं। इससे जहां लोगों का स्वतंत्र रूप से सूचना हासिल करने का अधिकार बाधित होता है वहीं प्रेस और मीडिया के लिए अपना काम करना कठिन हो जाता है। इतना ही नहीं, इंटरनेट शटडाउन जैसी घटनाओं की अधिकता एक समाज के रूप में हमारी परिपक्वता पर भी सवाल उठाती है। इससे पता चलता है कि एक समाज के रूप में हम जागरूक नहीं हैं। हम न तो खबरों और अफवाहों में फर्क कर पाते हैं न ही अफवाहों के खुद पर असर को नियंत्रित कर पाते हैं।  सरकार की ओर से इंटरनेट का उपयोग मात्र प्रचार के लिए हो रहा है। इसे कानून व्यबस्था बनाने में प्रयोग किया जा सकता है। सरकार इसके विपरीत इसे शट डाउन कर  अफवाह को फैलने से रोक नहीं पाती, बल्कि अफवाहों को और बल मिलता है। समाज को भी इस विषय में सजग रहकर अपने दायित्व का पालन करना चाहिए। जब सरकार और समाज दोनों इस मोर्चे पर मिलकर काम करेंगे, तो निश्चय ही इसका उपयोग उपकरण के रूप में होगा। अभी सरकार इसे एक वर्ग का हथियार समझ बैठी है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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