राकेश दुबे@प्रतिदिन। मालूम नही मोदी सरकार और कितने वित्तीय झटके देश के मध्यम वर्ग को देगी, अब सरकार का निशाना प्रोविडेंट फंड है। नोट बंदी के बाद बैंकों ने सावधि जमा पर ब्याज ही नहीं कम किया और बहुत सारे शुल्क वसूलना शुरू कर दिया। पेट्रोल डीजल को जीएसटी में लाने की बात करते हुए दूसरे दरवाजे से कर लगा दिए। जिन लोगों के पास धन है वे विदेश निकल गये माध्यम वर्ग तो कही नही जा सकता। उसके पास वित्तीय सुधार के बाद प्रोविडेंट फंड बचा था उस पर भी सरकार की नजर है। वित्त मंत्री अरुण जेटली वित्तीय वर्ष २०१८-१९ में पेश किए गए बजट प्रस्ताव के माध्यम से प्रोविडेंट फंड अधिनियम को खत्म करने जा रहे हैं। विशेषज्ञों की माने तो केंद्र सरकार के इस कदम से आम जनता विशेष कर मध्यम वर्ग को बड़ा झटका लग सकता है।
वित्त विधेयक २०१८ में सरकार बचत प्रमाणपत्र अधियनियम-१९५९ और पीपीएफ अधिनियम १९६८ को खत्म किए जाने का प्रस्ताव है। इन अधिनियमों से जुड़ी बचत योजनाओं को गवर्नमेंट सेविंग्स बैंक एक्ट-१८७३ में शामिल किया जाएगा। इसके लिए इस एक्ट में नए प्रावधानों को शामिल किया जाएगा।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि वित्त विधेयक में पीपीएफ एक्ट को समाप्त करने के प्रावधान से पूर्व में इन बचत योजनाओं में किए गए निवेश पर कोई परेशानी नहीं आएगी। इसके साथ ही दस प्रमुख बचत योजनाएं भी बचत खाते में तब्दील हो जाएंगी। स्पष्ट तौर पर कहें तो पीपीएफ अधिनियम के खत्म हो जाने से समुचित ब्याज का लाभ उन लोगों को भी नहीं मिल पाएगा जो नया निवेश करेंगे। सभी नए निवेश गवर्नमेंट सेविंग्स बैंक एक्ट के तहत होंगे। हालांकि उन लोगों पर असर नहीं पड़ेगा जिन्होंने फाइनेंस एक्ट २०१८ के लागू होने से पहले का निवेश कर रखा है।
पीपीएफ अधिनियम के खत्म होने से पीपीएफ, किसान विकास पत्र, पोस्ट ऑफिस सेविंग बैंक खाता, नेशनल सेविंग मंथली इनकम, नेशनल सेविंग आरडी अकाउंट, सुकन्या समृद्धि खाता, नेशनल सेविंग टाइम डिपॉजिट (१,२,३,और ५ साल), सीनियर सिटीजंस सेविंग योजना और एनएससी पर सर्वाधिक असर पड़ेगा।
जैसे ही यह बिल संसद पास कर देती है तो लोक भविष्य निधि (पीपीएफ) जैसी लोकप्रिय योजना नए निवेशकों के लिए पहले जैसी लाभकारी नहीं रह जाएंगी। अब प्रश्न माध्यम वर्ग के पास निवेश की दृष्टि बैंक, शेयर बाज़ार, म्यूचल फंड और रियल स्टेट जैसे विकल्प ही बचेंगे, जिनमें ब्याज कम है या लौटने की सम्भावना क्षीण है। सोने में निवेश की सीमा, धारण पात्रता के माध्यम से पहले ही तय की जा चुकी हैं। अब मध्यम वर्ग के सामने भविष्य की सुरक्षा के लिए निवेश एक चिंता का विषय हो गया है। देश के आर्थिक सलाहकारों को नये विकल्प सुझाना होंगे।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।