
उस आडिट की बलिहारी है कि जब किसी आम ग्राहक के खाते में जमा रकम निर्धारित न्यूनतम सीमा से कम हो जाती है तो बैंक को उसका तुरंत पता चल जाता है और ग्राहक से अनाप-शनाप जुर्माना भी वसूल लिया जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि हीरा व्यापारी नीरव मोदी पिछले सात साल से पीएनबी से अवैध तरीके से मनचाही रकम लेता रहा और किसी को कानों-कान खबर कैसे नहीं लग पाई ? पीएनबी एक सूचीबद्ध कंपनी है, इसकी हर तिमाही बैलेंस शीट बनती है और इसका नियमित रूप से आडिट भी किया जाता है। इस स्थिति में घोटाले की भनक न लगने की बात पर किसी भी सूरत में भरोसा नहीं किया जा सकता।
पीएनबी के लिए नीरव मोदी प्रकरण कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले हीरा कारोबार से जुड़ी कंपनियां विनसम और श्री गणोश ज्वेलर्स बैंक को 9000 करोड़ रुपये की चपत लगा चुकी हैं। पीएनबी ने इन घटनाओं से सबक लिया होता तो आज उसे पूंजी बाजार में यह फजीहत नहीं झेलनी पड़ती। हकीकत यह है कि पीएनबी का डूबा हुआ कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है।
बैंक के जानबूझ कर कर्ज न लौटाने वाली राशि में पिछले महज छह महीने में ही 23 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हो चुकी है। इससे साफ संकेत मिलता है, इस बैंक के सिस्टम में ही गलती है इस बीमारी से अन्य सार्वजनिक बैंक भी अछूते नहीं है। इसी वजह से इन बैंकों की फंसे कर्ज की राशि तेजी से बढ़ रही है। सरकार को इस मुद्दे पर बचाव की मुद्रा में आने के बजाय असल बीमारी के इलाज के उपाय करने चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।