
एक कहावत है “विद्वत्ता का कोई पैमाना नहीं होता”। सरकार में भले ही वय, ज्ञान अनुभव के बाद माननीय राज्यपालों को CHANCELLOR जैसा दायित्व सौंपा जाता है। निजी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति इससे परे हैं। इनमें तो कुलाधिपति परिवार तक स्थापित हो गये हैं। परिवार के सारे सदस्य कुलाधिपति एक शहर में स्थित अलग-अलग विश्वविद्यालयों के। राजनीति का अनुभव प्राप्त कुलाधिपति भी एक दो विश्वविद्यालयों में हैं। बाकी में विश्वविद्यालय स्थापना करने वाली सोसायटी द्वारा मनोनीत। इस मनोनयन का आधार विश्वविद्यालय में वेष्ठित, धन, राजनीति और सोसायटी में पकड़ जैसे गुण हैं। आयकर विभाग से लगभग सबकी दोस्ती दुश्मनी निभा चुकी है।
INCOME TAX DEPARTMENT को धन समर्पण के कीर्तिमान भी इन्ही ने स्थापित किये हैं, कुछ ने आवश्यकतानुसार नाम भी बदल लिए हैं। पाठ्यक्रम शुरू होने और बंद होने के कीर्तिमान भी इस प्रदेश में ऐसे कुलाधिपतियों के नाक के नीचे हुए है। मान्यता प्राप्त पाठ्यक्रम में प्रवेश और बिना मान्यता के पाठ्यक्रम भी इन महान विभूतियों के संरक्षण में चले हैं। इनसे इतर एक और विश्वविद्यालय प्रदेश में हैं, जिसके लिए आपकी सरकार को कुलपति नहीं मिल रहा है। आयु सीमा पार कुलपति जी, आगामी आदेश तक बने रहेंगे क्योकि विश्वविद्यालय के नये भवन के वे ही विश्वकर्मा हैं। सरकार द्वारा स्थापित एक और विश्वविद्यालय का उदाहरण भी आपके संज्ञान में होना जरूरी है, जहाँ प्राध्यापको को नियुक्त किये बगैर शोध छात्रों को प्रवेश दे दिया गया। अब नये कुलपति कुछ करें तो करें।
यह सब आपकी जानकारी में लाना इसलिए जरूरी है कि निजी विश्वविद्यालय और शासन द्वारा द्वारा स्थापित विश्वविद्यालयों को आप पटरी पर ला सकें। व्यापम के बाद उच्च शिक्षा में भी नेकनामी नही है। जरुर विचार कीजिये,आप शासन द्वारा स्थापित विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति हैं तो निजी विश्वविद्यालयों की कुलाध्यक्ष। राज्यपाल जी, पुन: आपका ह्रदय से स्वागत।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।