पूर्वोत्तर में नया टाइम जोन ? | EDITORIAL

राकेश दुबे@प्रतिदिन। यह सवाल अनेक बार उठ चुका है देश के पूर्वी प्रदेशों में एक नया ‘टाइम जोन’ बनया जाये। इसके लाभ और हानि पर मंथन जारी है। इस नए ‘TIME ZONE’ की मांग लंबे समय से की जा रही है, कुछ अरसा पहले अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री की ओर भी यह मांग की गई थी। इस मांग के पीछे कई महत्त्वपूर्ण पहलू देखे जा सकते हैं। NORTHEAST प्रदेशों में लगभग 4.30 बजे सवेरा हो जाता है और शाम को 4.30 बजे से अंधेरा होने लगता है। ऐसे में सरकारी कार्यालयों का समय दस बजे से शाम छह बजे होने के चलते पूर्वी भारत में जनबल और ऊर्जा का समुचित लाभ नहीं मिल पाता है। प्रश्न यह है कि अगर उस क्षेत्र के लिए नया टाइम जोन बना दिया जाएगा तो EAST INDIA के विकास में तेजी आएगी? पक्ष में तर्क है, विपक्ष में संस्कृति विभाजन जैसे खतरे देखे जा रहे हैं।

भारत म्यांमार से होते हुए थाईलैंड तक सड़क बनाने की पहल कर रहा है। आज नहीं तो कल, उसे पूर्वी एशिया से सड़क के माध्यम से जुड़ना होगा। ऐसे में भारत के मध्य भाग से पूर्वी भाग के समय में लगभग दो घंटे का अंतर, विकास व उद्यमिता को गहरे से प्रभावित करेगा। भारत सरकार ‘एक्ट ईस्ट’ पर काफी समय से जोर दे रही है। इसके तहत पूर्वी प्रदेशों के लिए सरकार पहले की तुलना में ज्यादा सक्रिय, प्रभावी और जनोपयोगी नीति अपनाने के लिए प्रतिबद्ध है। कुछ समय पहले भारत सरकार ने पूर्वोत्तर भारत को तेज, सुविधाजनक तथा सुरक्षित संपर्क साधन के तौर पर लोहित नदी सादिया-धोला पुल दिया है। यह सही समय है कि केंद्र सरकार पूर्वी भारत के लिए काफी समय से उठ रही मांग के तौर पर नए टाइम जोन को स्वीकार कर ले। भारत इस मामले में विश्व के बड़े देशों, जैसे रूस से सबक ले सकता है, जहां 11 टाइम जोन हैं। हमारे पड़ोसी और चिर प्रतिद्वंद्वी देश चीन में भी पांच टाइम जोन प्रयोग में लाए जाते हैं।

पूर्वोत्तर के लिए नया टाइम जोन अपनाकर भारत उस भाग के जनबल और प्राकृतिक संसाधनों का ज्यादा बेहतर, कुशल व प्रभावी दोहन कर सकेगा। पूर्वोत्तर भारत के विकास के लिए वहां के पर्यटन में असीम संभावनाएं छुपी हैं जो एक मानक व व्यावहारिक समय जोन न होने की वजह से पूर्ण रूप में विकसित नहीं हो सकी है। आज के इस तेज और गतिशील विश्व में जहां पर पल-पल की बहुत कीमत हो गई है, भारत के लिए दो घंटे व्यर्थ गुजरें, यह उचित नहीं कहा जा सकता। भारत सरकार को इस मसले पर विचार करना चाहिए। संस्कृति विभाजन की बात कहने वालों को भी वैज्ञानिक तरीकों से सोचना चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !