
चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने एजेंडे के तहत बांटी गई जमीन का पूरा रिकाॅर्ड पेश करने के निर्देश देकर मामले की सुनवाई 8 सप्ताह बाद निर्धारित की है। भू-अधिकार अभियान मप्र के सदस्य राहुल श्रीवास्तव की ओर से दायर इस याचिका में कहा गया है कि मप्र की तत्कालीन सरकार ने वर्ष 2002 में एक घोषणा पत्र जारी किया। इसके तहत हुए सर्वे से पता चला कि प्रदेश भर के लगभग 3 लाख 44 हजार 229 दलित और आदिवासी परिवारों के पास भूमि नहीं है।
इस अनुशंसा पर प्रदेश सरकार ने 7 लाख एकड़ शासकीय भूमि दलित और आदिवासी परिवारों के लिए आवंटित की। याचिका में आरोप हैं कि राज्य शासन ने दलितों और आदिवासियों के लिए 7 लाख एकड़ भूमि आवंटन के आदेश दिए थे, लेकिन दलितों एवं आदिवासियों को कम भूमि आवंटित की गई है। शेष जमीन का क्या हुआ और वह किसे बांटी गई, इसकी जानकारी राज्य शासन एवं संबंधित विभाग से सूचना के अधिकार के तहत मांगी जो नहीं दी गई।
इस पर याचिकाकर्ता ने अपने स्तर पर जानकारी जुटाई, जिसमें उन्हें पता चला कि राज्य व जिला स्तर पर भी भूमि कहां और किसे बांटी गई, इसकी वाकई कोई जानकारी मौजूद ही नहीं है। आवेदक का आरोप है कि शासन ने जिन लोगों को भूमि आवंटित की है उनमें से कुछ के पास पट्टे हैं तो कुछ के पास नहीं। साथ ही कुछ दलितों एवं आदिवासियों की भूमि पर दबंगों ने कब्जा कर रखा है।
दलितों और आदिवासियों के नाम से आवंटित की गई 7 लाख एकड़ जमीन और इसके लिये खर्च किये गये 37 करोड़ की राशि की सही जानकारी न मिलने पर यह याचिका दायर की गई। मामले पर हुई प्रारंभिक सुनवाई के बाद युगलपीठ ने अनावेदकों को नोटिस जारी करके रिकाॅर्ड पेश करने के निर्देश दिए। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता राघवेन्द्र कुमार पैरवी कर रहे हैं।