तलाक ऐसे भी हो सकते हैं | EDITORIAL

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। आपसी सहमति से तलाक के मामलों की संख्या एक ओर देश में बढ़ रही हैं। दूसरी सर्वोच्च न्यायालय का ताज़ा फैसला पारिवारिक कलह को शांत करने का एक नया रास्ता दिखाता है। अपने नीर-क्षीर निर्णय में सर्वोच्च अदालत ने पृथक होने वाले पेशे से पायलट पति को पत्नी व बेटे की परवरिश के लिए 10 लाख रुपये अंतरिम गुजारा भत्ता के तौर पर निचली अदालत में 10 लाख रुपये जमा कराने को कहा है। इस राशि को पत्नी अपनी तात्कालिक जरूरतें पूरी करने के लिए बिना शर्त निकाल पाएगी।

दरअसल, परिवार अदालतों द्वारा तलाक के मामलों में शुरुआत में आपसी सहमति से सुलह कराने के प्रयास होते हैं। मानवीय दृष्टि से यह सही भी प्रतीत होता है। कई बार यह उपाय काम कर जाता है तो कई दफा ऐसा प्रयास पीड़ित पक्ष के खिलाफ ही चला जाता है। दरअसल, अपने निजी व सामाजिक परिवेश में किसी विवाह का टूटना दोनों पक्षों के लिए पीड़ादायक होता है। विवाह निजता के अलावा, सामाजिक और पारिवारिक गठबंधन भी होता है। इसके बावजूद दांपत्य सामान्य रखने का कोई तय समीकरण नहीं है। विभिन्न कारणों से पति-पत्नी में संबंध-विच्छेद की स्थिति बन जाती है। तब दबाव के जरिये रिश्तों को पुरानी रौ में लाना मुश्किल हो जाता है।

जो रिश्ता पहले से ही टूटन के करीब है, उसे जबरन जोड़े रखना जब संभव नहीं रह जाता और दोनों कोई वस्तु नहीं कि जिसे सिर्फ इसीलिए साथ रखा जाए क्योंकि उनके बीच वैवाहिक संबंध रहे है। समाज में यह धरना बन रही है कि ऐसी परिस्थिति समय का तकाजा और समझदारी  यही है कि जब बात इतनी बिगड़ चुकी हो कि साथ रहना मुमकिन न हो तो उसे सहूलियत से समेट लिया जाना बेहतर है।

यह अकसर देखने में आता है कि दांपत्य की दिक्कतों से उकता कर पति/पत्नी विवेकसम्मत रास्ता चुनने के बजाय आत्महत्या तक के रास्ते चुन लेते हैं। तलाक पाने के लिए पुलिस-कचहरी के दबाव में साथ रहना मानसिक प्रताड़ना का सबसे बड़ा कारक हो जाता है। ऐसे में गरिमापूर्ण तरीके से संबंध से अलग हो जाना ही दंपति, उसके बच्चे या परिवार के हित में होता है।

सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश व्यावहारिक और वैधानिक है। इन तमाम बलात आजमायी जाने वाली तकनीकों से बेहतर है-सम्मान व शांतिपूर्वक अलगाव। इसलिए अदालत का यह फैसला, बेहद सधा हुआ है। इसी में दोनों पक्षों की भलाई है। निश्चित मुआवजा चुका कर दोनों पक्ष सुकून भरा जीवन जीने को स्वतंत्र हैं। प्रारम्भिक अदालतों तक भी यह संदेश इसी रूप में जाए तो इस कारण होने वाली जनहानि से बचा जा सकता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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