
एक्टिविस्ट डॉ नूतन ठाकुर द्वारा दाखिल की गई इस याचिका में चुनौती दी गई थी कि उत्तर प्रदेश आरटीआई नियमावली के नियम 4(2)(बी)(v) में कहा गया है कि यदि सूचना इतनी विस्तृत हो कि इससे सरकारी अधिकारी की दक्षता प्रभावित हो रही हो तो उसे दिए जाने से मना किया जा सकता है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस दया शंकर त्रिपाठी की बेंच ने नूतन और मुख्य शासकीय अधिवक्ता रमेश पाण्डेय की बहस सुनने के बाद अपने आदेश में कहा कि यह प्रावधान सूचना देने की प्रक्रिया में संतुलन हेतु रखा गया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि आवेदिका ने मुख्यमंत्री द्वारा 1 जनवरी 2006 के बाद से समस्त बाहरी दौरों और उसी तारीख से सभी आईपीएस अफसरों के तबादलों के आदेश मांगे थे, जो औचित्यपूर्ण नहीं थे।
कोर्ट ने कहा कि आरटीआई एक्ट का उद्देश्य प्रशासन में पारदर्शिता तथा उत्तरदायित्व लाना है लेकिन सूचना मांगे जाने का कोई औचित्य भी होना चाहिए। कोर्ट के अनुसार इन कारणों से नियम 4(2)(बी)(v) पूरी तरह वैध है।