
इसरो की व्यापारिक इकाई अंतरिक्ष कॉरपोरेशन का विदेश व्यापार इस साल 204.9 फीसदी बढ़ा है। देश की बहुत सी निजी कंपनियां इस तरक्की से ईष्र्या कर सकती हैं। लांच किए गए पीएसएलवी रॉकेट का ही उदारण लें। इसने जो 104 उपग्रह सफलता के साथ अंतरिक्ष की कक्षाओं में स्थापित किए हैं, उनमें से 101 विदेशी हैं। कई छोटे देशों के उपग्रहों के अलावा इनमें से 88 एक अमेरिकी कंपनी प्लेनेट लैब के नैनो सैटेलाइट हैं। यह कंपनी धरती की छवियां लेने और उन्हें वर्गीकृत करके बेचने का काम करती है। जाहिर है कि उसके पास अमेरिकी कंपनियों समेत कई विकल्प रहे होंगे, लेकिन मुनाफे के लिए व्यवसाय कर रही एक कंपनी ने इसरो पर भरोसा किया, यह तथ्य अपने आप में बहुत कुछ कहता है।
अंतरिक्ष के बाजार में इसरो एक बहुत बड़ा खिलाड़ी बनने जा रहा है, जिसे लगभग पूरी दुनिया काफी समय से मानती है। शुरू में भारत अपने उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित करने के लिए सोवियत रॉकेटों और निजी कंपनी आर्यनस्पेस पर पूरी तरह निर्भर था। आज हालत यह है कि आर्यनस्पेस इसरो की व्यापारिक सहयोगी है। आर्यनस्पेस के पास आए कई उपग्रह इसरो ने ही अंतरिक्ष में स्थापित किए हैं। इसरो की दो विशेषताएं उसे दुनिया में सबसे अलग और महत्वपूर्ण अंतरिक्ष एजेंसी बनाती हैं। एक तो उसने बहुत ही कम लागत में कोई भी अभियान पूरा करने में सफलता हासिल कर ली है। जिस मंगल अभियान को अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने ६७१ अरब डॉलर में पूरा किया, वैसे ही अभियान को इसरो ने महज ७३ अरब डॉलर में पूरा कर लिया। दूसरी बात यह है कि इसरो की असफलता की दर दूसरी सभी अंतरिक्ष एजेंसियों से काफी कम है, यहां तक कि इस बाजार में भारत के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी चीन की एजेंसी से भी काफी कम। असफलता की दर कम होना अंतरिक्ष बाजार में साख का सबसे बड़ा आधार होता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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