
पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से दुनिया इस समस्या से जूझ रही है कि ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को किस तरह टाला जाए। तमाम कोशिशों, सम्मेलनों और समझौतों के बावजूद हम इसका कोई भरोसेमंद तरीका अभी तक नहीं निकाल सके हैं। विकसित देश, जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे ज्यादा गुनहगार हैं, पीछे हटने को तैयार नहीं और विकासशील देश विकसित बनने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। इन कोशिशों में वे तरीके भी शामिल हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाते हैं। दिसंबर 2015 में दुनिया के तकरीबन 200 देशों ने पेरिस में मिलकर यह तय किया था कि वे दुनिया के तापमान को औद्योगिक क्रांति के पहले के तापमान से डेढ़ डिग्री ज्यादा तक सीमित करने की कोशिश करेंगे। लेकिन उसके एक महीने बाद ही जो जनवरी आई, वह इतिहास की दूसरी सबसे गरम जनवरी थी।
इतना ही नहीं, 2016 को इतिहास का सबसे गरम साल माना गया। और अब 2017 की शुरुआत की खबर हमने सुन ली है। सच यह है कि गरम होती दुनिया की चुनौती से निपटने का काम सभी देशों को विकसित और विकासशील की सोच से आगे जाकर अपने स्तर पर करना होगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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