
अपने नेता मानने वाले इन लोगों यह भी पता नहीं चल पाता कि धांसू डायलॉगबाजी के चक्कर में उनकी हैसियत एक जोकर जैसी ही रह जाती है। मंच के विदूषक भी ज्यादा अच्छे होते हैं। कुछ टिप्पणी तो इतनी खराब हुई है, जिनसे उत्पन्न कटुता भूलने में काफी साल लगेंगे। जैसे, बीजेपी के राज्यसभा सांसद विनय कटियार ने कहा कि प्रियंका गांधी से ज्यादा सुंदर अभिनेत्रियां और प्रचारक महिलाएं बीजेपी में हैं, लिहाजा प्रियंका के प्रचार करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। क्या अर्थ है ऐसी बात का प्रियंका के साथ-साथ कितनी महिलाओं पर कीचड़ उछला है। चुनाव प्रचार में महिलायें आने से पहले कई बार सोचेंगी।
उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार करने आए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी नहीं चूके। शिवराज ने वहां कहा कि आजम खान ऐसे नेता हैं, जिनका नाम ले लूं तो नहाना पड़ता है।क्या सन्देश निकला इस वाक्य से। वहीँ आजम खान भी इस मामले में कम नहीं है, आजम खान ने कहा कि मुसलमान ज्यादा बच्चे इसलिए पैदा करते हैं क्योंकि उनके पास कोई काम नहीं होता। यह टिप्पणी पूरे एक समुदाय के खिलाफ नहीं जाती। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता राजेंद्र चौधरी ने पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह दोनों को आतंकवादी बता दिया। उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि ‘मेगास्टार अमिताभ बच्चन से मेरा निवेदन है कि वह गुजरात के गधों का प्रचार न करें।’
ऐसा महाराष्ट्र में भी हुआ। शिव सेना और भाजपा दोनों के नेता एक दुसरे को नीचा दिखाने से नहीं चूके। चुनाव आयोग की आचरण संहिता के अतिरिक्त हमारी अपनी भी एक आचरण संहिता होती है, जिसे संस्कार कहा जाता है, इसे ये सब क्यों भूले, एक बड़ा प्रश्न है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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