
यह सब आम, नासमझ लोगों को मूर्ख बनाने का मसला नहीं है, बल्कि सिलिकॉन घाटी और वॉल स्ट्रीट की तकनीकी व वित्तीय दुनिया के बड़े-बड़े नाम न सिर्फ इस दशहत से परेशान हैं, बल्कि कुछ तो इसके मुकाबले के लिए तैयारियां भी कर रहे हैं। मसलन, रेडिट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी स्टीव हॉफमैन ने तो इसके लिए ढेर सारी मोटरसाइकिल, बंदूकें और कई हथियार तक खरीद लिए हैं, ताकि किसी आपात स्थिति में वह तुरंत बचते हुए भाग निकलें। कई अरबपति आजकल वहां सुरंगनुमा भूमिगत घर खरीद रहे हैं, जिन्हें ‘कयामत का बीमा’ कहा जाता है। ऐसे ही घर कभी परमाणु हमले से बचने के लिए अमेरिका में बेचे गए थे। फेसबुक में प्रोडक्ट मैनेजर रह चुके एंटोनियो ग्रेसिया मार्टीनेज ने सैन-फ्रांसिस्को के पास निर्जन जगह पर पांच एकड़ जमीन पर ऐसा ही घर बनवाया है, जिसमें बिजली पैदा करने के लिए जेनरेटर भी है और सोलर पैनल भी। लिंक्डइन के सह-संस्थापक रेड हॉफमैन का कहना है कि इस डर से वह न्यूजीलैंड में जाकर बसने की सोच रहे हैं।
कयामत को लेकर पैदा हो रहे इन नए फोबिया पर कई तरह की सोच है। एक सोच यह कहती है कि पश्चिम की दुनिया में बचपन से ही मन में कयामत की बात इस तरह डाल दी जाती है कि बड़े होने और पढ़-लिख जाने के बाद भी लोग उससे मुक्त नहीं हो पाते। इसलिए वे हरदम इसके खतरे को सूंघते रहते हैं, जबकि भारत या चीन के लोगों की यह सोच नहीं होती, इसलिए वे ऐसे खतरों को लेकर बहुत ज्यादा आतंकित नहीं दिखाई देते। एक सोच यह भी है कि सिलिकॉन वैली और वॉल स्ट्रीट के अमीरों ने बहुत कम समय में बहुत पैसा कमाया है। इसके साथ ही उन्होंने एक चीज सीखी है कि वे पैसे कुछ भी खरीद सकते हैं। यहां तक कि भविष्य के लिए सुरक्षा भी; भले ही यह कयामत जैसे किसी काल्पनिक खतरे को लेकर क्यों न हो? खासकर तब, जब उन्हें अपनी कुल कमाई का एक छोटा-सा अंश ही इसमें खर्च करना हो। वैसे भी यह मामला तर्क का नहीं, डर का है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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