नया वैश्विक खतरा इलेक्ट्रो मैग्निटिक पल्स वेब

राकेश दुबे@प्रतिदिन। अमेरिका और उसकी देखा-देखी पूरी पश्चिम की दुनिया में यह दहशत कई लोगों को परेशान करने लगी है कि किसी भी क्षण दुनिया का अंत हो सकता है। या कम से कम ऐसा कुछ हो सकता है कि बहुत बड़ी आबादी की जान खतरे में पड़ जाए। कुछ को लगता है कि कोई नया वायरस महामारी फैलाता हुआ पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले सकता है। यह मानने वाले भी कई हैं कि जब कृत्रिम बुद्धि वाले रोबोट दुनिया के तकरीबन सभी काम करने लगेंगे, तो बड़े पैमाने पर बेरोजगारी फैलेगी। इससे जो असंतुलन पैदा होगा, उसे नियंत्रित करना शायद किसी के बस में नहीं होगा। कुछ को लगता है कि एक बड़ा साइबर हमला अमेरिका की कंप्यूटर प्रणाली को जाम करके सबके जीवन को खतरे में डाल सकता है। लेकिन सबसे बड़े जिस खतरे की बात हो रही है, वह है इलेक्ट्रो मैग्निटिक पल्स (ईएमपी) वेब के हमले की। धारणा यह है कि अगर ऐसा हमला हुआ, तो लाखों लोग मारे ही जाएंगे, साथ ही पूरी विद्युत व्यवस्था ठप्प हो जाएगी। दिलचस्प बात यह है कि इसमें परमाणु हमले की बात कोई नहीं कर रहा। हालांकि अमेरिकी चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी ने इस खतरे का जिक्र कई बार किया था। यह भी माना जाता है कि लोगों के मन में बसे ऐसे ही डर ने डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति बना दिया।

यह सब आम, नासमझ लोगों को मूर्ख बनाने का मसला नहीं है, बल्कि सिलिकॉन घाटी और वॉल स्ट्रीट की तकनीकी व वित्तीय दुनिया के बड़े-बड़े नाम न सिर्फ इस दशहत से परेशान हैं, बल्कि कुछ तो इसके मुकाबले के लिए तैयारियां भी कर रहे हैं। मसलन, रेडिट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी स्टीव हॉफमैन ने तो इसके लिए ढेर सारी मोटरसाइकिल, बंदूकें और कई हथियार तक खरीद लिए हैं, ताकि किसी आपात स्थिति में वह तुरंत बचते हुए भाग निकलें। कई अरबपति आजकल वहां सुरंगनुमा भूमिगत घर खरीद रहे हैं, जिन्हें ‘कयामत का बीमा’ कहा जाता है। ऐसे ही घर कभी परमाणु हमले से बचने के लिए अमेरिका में बेचे गए थे। फेसबुक में प्रोडक्ट मैनेजर रह चुके एंटोनियो ग्रेसिया मार्टीनेज ने सैन-फ्रांसिस्को के पास निर्जन जगह पर पांच एकड़ जमीन पर ऐसा ही घर बनवाया है, जिसमें बिजली पैदा करने के लिए जेनरेटर भी है और सोलर पैनल भी। लिंक्डइन के सह-संस्थापक रेड हॉफमैन का कहना है कि इस डर से वह न्यूजीलैंड में जाकर बसने की सोच रहे हैं।

कयामत को लेकर पैदा हो रहे इन नए फोबिया पर कई तरह की सोच है। एक सोच यह कहती है कि पश्चिम की दुनिया में बचपन से ही मन में कयामत की बात इस तरह डाल दी जाती है कि बड़े होने और पढ़-लिख जाने के बाद भी लोग उससे मुक्त नहीं हो पाते। इसलिए वे हरदम इसके खतरे को सूंघते रहते हैं, जबकि भारत या चीन के लोगों की यह सोच नहीं होती, इसलिए वे ऐसे खतरों को लेकर बहुत ज्यादा आतंकित नहीं दिखाई देते। एक सोच यह भी है कि सिलिकॉन वैली और वॉल स्ट्रीट के अमीरों ने बहुत कम समय में बहुत पैसा कमाया है। इसके साथ ही उन्होंने एक चीज सीखी है कि वे पैसे कुछ भी खरीद सकते हैं। यहां तक कि भविष्य के लिए सुरक्षा भी; भले ही यह कयामत जैसे किसी काल्पनिक खतरे को लेकर क्यों न हो? खासकर तब, जब उन्हें अपनी कुल कमाई का एक छोटा-सा अंश ही इसमें खर्च करना हो। वैसे भी यह मामला तर्क का नहीं, डर का है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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