
यह रिपोर्ट 589 जिलों के अध्ययन के आधार पर तैयार की गई है। इसके मुताबिक देश भर के तीसरी क्लास के 42.5 प्रतिशत बच्चे पहली क्लास की किताबें किसी तरह पढ़ लेते हैं। दो साल पहले ऐसे बच्चों की संख्या 42.2 प्रतिशत थी। पांचवीं के 47.8 प्रतिशत बच्चे ही दूसरी क्लास की किताबें पढ़ पाते हैं, हालांकि 2014 में ऐसे बच्चों की संख्या 48 प्रतिशत थी थी। आठवीं कक्षा के 71.3 प्रतिशत छात्र ही दूसरी क्लास की किताबें ढंग से पढ़ पाते हैं। दो साल पहले ऐसे स्टूडेंट्स की संख्या 74.7 प्रतिशत थी।
यानी आठवीं के स्तर पर पढ़ाई का हाल पहले से भी बुरा हो गया है। जहां तक अंग्रेजी पढ़ने का सवाल है तो तीसरी क्लास के 32 प्रतिशत बच्चे किसी तरह इंग्लिश के साधारण शब्द पढ़ पाते हैं जबकि 2009 में 28.5 प्रतिशत बच्चे ऐसा कर पाते थे। पांचवीं कक्षा के 24.5 प्रतिशत स्टूडेंट्स ही अंग्रेजी के साधारण वाक्य पढ़ पाते हैं। उनका यह हाल वर्ष 2009 से ज्यों का त्यों बना हुआ है। अंग्रेजी पढ़ने के मामले में आठवीं के स्तर पर काफी गिरावट आई है। वर्ष 2016 में 45.2 प्रतिशत छात्र किसी तरह अंग्रेजी के साधारण वाक्य पढ़ते पाए गए, जबकि 2014 में ऐसे छात्रों का हिस्सा 46.7 और 2009 में 60.2 प्रतिशत था।
आज कोई भी व्यक्ति अपने बच्चों को मजबूरी में ही सरकारी स्कूलों में पढ़ाता है। राजनीतिक नेतृत्व के लिए शिक्षा आज भी चुनावी मुद्दा नहीं बन पाई है। सरकार को पता है कि जो ताकतवर तबका राजनीति और प्रशासन पर असर डाल सकता है, उसे सरकारी स्कूलों से कोई मतलब नहीं है। जबकि गरीबों के लिए रोजी-रोटी की समस्या ही इतनी अहम है कि वे मिड डे मील से ही खुश हैं, बेहतर शिक्षा के लिए आवाज उठाने की बात भी नहीं सोचते। केंद्र सरकार अगर भारत को एक शिक्षित समाज बनाना चाहती है तो उसे जीएसटी जितनी ही तवज्जो सरकारी स्कूलों की पढ़ाई को भी देनी होगी।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए