फैसलों का अपरिहार्य विरेचन

राकेश दुबे@प्रतिदिन। मोदी सरकार की तरफ से फैसलों का धारावाहिक क्रम जारी है। इसी क्रम में काले धन को बाहर निकालने के अब तक के अंतिम उपाय के तहत-कुछ दंडनीय प्रावधान के साथ रास्ता दे दिया गया। वहीं भाजपा विधायकों-सांसदों और मंत्रियों से आठ नवम्बर के बाद के उनके खाते का लेखा-जोखा मांगा गया। यह पहले के फैसले का अपरिहार्य विरेचन है, लेकिन हंगामा कर रहे विपक्ष और कतार में जलालत झेल रहे आम आदमी ने इसे काले धन और उसकी बुनियाद भ्रष्टाचार पर कानून की ओट में सरकार का यू-टर्न माना है।

यह बहस किसी नतीजे पर अभी पहुंचती कि सरकार ने आयकर कानून में संशोधन विधेयक को लोक सभा से बिना बहस के पारित भी करा लिया। विपक्ष का यह आरोप तथ्य से परे नहीं है कि इस मनी बिल को पारित करने में सांविधानिक प्रक्रियाओं का पालन तक नहीं हुआ। देश चूंकि लाइन में है और विपक्ष इसको राजनीतिक मुद्दा बनाये हुए संसद ठप्प किये हुए है; लिहाजा सरकार तेजी दिखाने के लिए बाध्य है। सत्ता का यह तर्क हो सकता है लेकिन आयकर कानून में संशोधन बहस की मांग बहुमत के कारण नहीं करता है।

नोटबंदी पर जिस तरह से सरकार हड़बड़ी से गड़बड़ियां करती हुई दिख रही है, उसको देखते हुए बहस से भला ही होता। पर जब नोटबंदी लाई ही गई थी कि काले धन पर पूर्ण विराम के संकल्प के साथ; फिर सरकार ने अपना फैसला क्यों बदला? आम जनता में यह संकेत गया कि आठ नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नैतिकता जितने ऊंचे मचान पर थे। पर काले धन के कारोबारियों के आगे झुक कर वहां से नीचे खिसक आए।

यह संदेश इतना तीखा है कि सरकार को इसकी काट ढूंढ़नी पड़ी। विपक्षी दबाव से बचाव और अपने को उसी ऊंचाई पर रखने के लिए अपने दल के जनप्रतिनिधियों से हिसाब-किताब मांगा गया। सरकार यह साबित करने में लगी है कि मुहिम न तो कहीं मुड़ी है और न ही मद्धिम पड़ी है। इसकी मिसाल है-हम अपनों को भी नहीं बख्श रहे लेकिन विपक्ष इस झांसे में नहीं आ रहा। वह मई 2014 के बाद से ही उनके खाते खंगालने पर जोर दे रहा है। मोदी ऐसी कवायद पहले भी कर चुके हैं, फिर भी अधूरी तैयारियों और अस्पष्ट मंसूबों के आरोप झेल रहे पीएम को इस दूसरे उपाय से विसनीयता बनाए रखने में मदद ही मिलेगी।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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