नेता सडक की बजाय संसद में बोले और उसे चलायें

राकेश दुबे@प्रतिदिन। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राहुल गाँधी दोनों ही कह रहे है कि उन्हें संसद में बोलने नहीं दिया जाता। वास्तव में पूरे देश के लिए चिंता का विषय है। आखिर हमारे देश में संसदीय लोकतंत्र की यह कौन सी दशा है कि शीर्ष नेता ऐसा कहने को विवश हुए हैं। जब दोनों पक्ष ऐसी बात करें तो निष्कर्ष निकालना जरा कठिन हो जाता है कि सच क्या है? नेताओं से अलग देश की चिंता है कि संसद का पूरा शीत सत्र बिना किसी कामकाज के सरकार और विपक्ष की रस्साकशी में खत्म हो रहा है। 

सवाल है कि जब दोनों पक्ष बोलना चाहते हैं तो उसमें बाधा कहां है? प्रधानमंत्री यह कहकर अपनी जिम्मेवारी से नहीं बच सकते कि उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा है। वैसे संसद चलाने की जिम्मेवारी सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों की है किंतु सरकार की जिम्मेवारी ज्यादा है। सरकार को हर वह कोशिश करनी चाहिए, जिससे संसद चले।

आखिर संसद न चलने से जो विधेयक पारित न हो पाए उससे समस्या देश को होगी पर माना तो यही जाएगा कि सरकार ने फलां काम नहीं किया। आप यह कहकर तो बच नहीं सकते कि क्या करे विपक्ष ने संसद ही चलने नहीं दिया तो हम काम कैसे करते? इसलिए प्रधानमंत्री प्रलाप छोड़कर विपक्ष के नेताओं से संवाद बनाएं और यह देखें कि उनकी मांग में से बीच का रास्ता क्या निकल सकता है? विपक्ष की मांग है कि पीएम बहस के दौरान सदन में रहें और उसका जवाब दें? प्रधानमंत्री जवाब देने के लिए तो तैयार हैं, पर पूरे बहस के दौरान उपस्थित रहना उनके लिए संभव नहीं होगा। यह विपक्ष को भी समझना होगा कि प्रधानमंत्री के कई कार्यक्रम होते हैंं यह संभव नहीं कि वह पूरे समय सदन में बैठे रहें किंतु विपक्ष को मनाने का काम तो प्रधानमंत्री एवं उनके रणनीतिकारों को ही करना होगा। 

राज्यों से पारित होकर आने के बाद महत्त्वपूर्ण जीएसटी विधेयक फिर से लोक सभा में पड़ा हुआ है। जब संसद चलेगा ही नहीं तो विधेयक पारित कैसे होगा? इसलिए प्रधानमंत्री अपनी बात लेकर जनता के बीच जाएं लेकिन जो काम संसद में होना चाहिए, वह संसद में ही हो।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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