और “आधार” महत्वपूर्ण हो गया है

राकेश दुबे@प्रतिदिन। पूरे देश को आधुनिकता की ओर ले जाने में आधार कार्ड या आधार नंबर अचानक इतने महत्वपूर्ण हो जाएंगे, यह बहुत से लोगों ने कुछ समय पहले तक सोचा भी न था। आधार कार्ड जब शुरू हुआ था, तब लगता था कि यह हमारी नागरिकता का पहचान-पत्र भर होगा। फिर धीरे-धीरे पता लगा कि इसी आधार कार्ड के जरिये सब्सिडी सीधे लोगों के खाते में पहुंच जाएगी। फिर इसे मनरेगा जैसी योजनाओं के लिए जरूरी किया गया। यह जन-धन योजना से जुड़ा, तो कई और संभावनाएं उपजीं।

फिर पिछले दिनों पता पड़ा कि आईआईटी जैसी प्रवेश परीक्षाओं के लिए भी आधार को जरूरी कर दिया गया है। अब सरकार ऐसी योजना ला रही है, जिसमें आधार डेबिट कार्ड की तरह काम करने लगेगा। बेशक, नोटबंदी के बाद देश में जो नकदी की किल्लत का माहौल बना है, उसके दबाव में सरकार ऐसे रास्ते तलाशने को बाध्य हुई है, जिससे जनता को बहुत बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर के बगैर ही कैशलेस खरीद-फरोख्त की ओर ले जाया जा सके। पर यह ऐसा कदम भी है, जो पूरे देश की अर्थव्यवस्था का मिजाज बदल सकता है। इस कैशलेस प्रक्रिया के लिए किसी पिन नंबर या पासवर्ड की जरूरत नहीं पड़ेगी, फोन के जरिये होने वाले इस काम में अंगूठे का निशान ही पासवर्ड होगा।

आधार को लेकर इस समय जो नई चीजें सोची जा रही हैं, वे एक और तरह से महत्वपूर्ण हैं। अभी महज ढाई साल पहले तक आधार के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न खड़ा होने लग गया था। आधार परियोजना मनमोहन सिंह सरकार की देन मानी जाती है, इसलिए भारतीय जनता पार्टी के मन में उसे लेकर कई तरह के आग्रह थे। आधार परियोजना के जनक नंदन नीलेकणि की प्रतिष्ठा भले ही काफी अच्छी थी, लेकिन वह कांग्रेस के टिकट पर कर्नाटक से लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे, इसलिए भी यह परियोजना दांव पर लगी दिख रही थी। भाजपा के कई नेता यह कह ही चुके थे कि यह फिजूलखर्ची है, जिसे उनकी पार्टी सत्ता में आने के बाद बंद करा देगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने नंदन नीलेकणि से मिलकर इस परियोजना को समझा और न सिर्फ इसके महत्व को स्वीकारा, बल्कि अपनी कई नीतियों का मुख्य आधार भी बनाया।

इसी के चलते आधार ऐसी परियोजना बन गई, जिस पर देश में लगभग राजनीतिक आम सहमति है। अब जब इसे कैशलेस व्यवस्था का आधार बनाया जा रहा है, तो इसकी सफलता में बहुत ज्यादा संदेह नहीं है। यह सिर्फ जनता को एक नई सुविधा देने का मामला नहीं है। यह लोगों को संसाधनों और उनके अधिकारों से जोड़ने का तरीका तो है ही, साथ ही नए भविष्य की ओर सबको साथ लेकर चलने का जरिया भी है। पर इससे जितनी जनता की सुविधाएं बढ़ेंगी, उससे कहीं ज्यादा सरकार और व्यवस्था की इसे लेकर चुनौतियां और जिम्मेदारियां बढ़ जाएंगी। सरकार के पास आधार का एक बहुत बड़ा डेटाबेस तैयार हो चुका है।

जब हम इससे तमाम तरह की सुविधाओं, जन-धन खातों और कैशलेस खरीदारी की व्यवस्था वगैरह को जोड़ेंगे, तब यह डेटाबेस काफी तेजी से बढ़ेगा। हर किसी के लेन-देन, खरीद-फरोख्त व परेशानियों-समस्याओं का रिकॉर्ड इसमें दर्ज हो जाएगा। यह सिर्फ रिकॉर्ड ही नहीं, लोगों की निजता का मामला भी है और लोगों की निजता को बचाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है। रिकॉर्ड और दस्तावेजों के मामले में सरकारी व्यवस्था की साख बहुत अच्छी नहीं है। अक्सर कई गोपनीय दस्तावेज लीक होते रहे हैं। हम हर चीज नए दौर में ले जाना चाहते हैं, तो बेहतर होगा कि इस तरह की साख को यहीं छोड़ दें।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!