
वैसे विकास अपने यहाँ कुपोषित भी है क्योंकि हम आदमखोरों को मुफ्तखोरी का खून जीभ पर चढ़ चुकी है। तभी तो जहाँ कभी कोई हमें कोई मुफ़्त वाई-फाई या मुफ्त फोन और जूता-चप्पल बाँटने की बात करता है हम वहीँ मुँह उठाए लार टपकाने लगते हैं। इसलिए अपना मोगली भी कुपोषित ही रह गया। बस चड्डी पहन के घूमता रहता है इस कँधे तो उस कँधे। यह अलग बात है कि अपने मोगली को अब शेरखान से नहीं उलझन होती। उसे तो सबसे ज़्यादा परेशान करते हैं अपने बघीरा जैसे लोग। अपने मतलब के लिए उसे उकसाते है, उसे डराते भी हैं और भटकाते भी हैं। लेकिन कुपोषित मोगली रूपी अपना विकास बेशर्मो की तरह लगा रहता है कि कभी तो उसे मंज़िल मिलेगी।
अब जब कुछ राज्यों में माहौल बना है जँगल बुक के अगले अध्याय का तो सभी होड़ में शामिल हैं कि मोगली को अपना नेता बनाएँगे लेकिन हमारी मुफ़्तख़ोरी की लत कहाँ ले जाएगी यह हम आदमखोर नहीं समझ पा रहे। कहीं ऐसा न हो मोगली ऐसी नजरअंदाजी से तंग होकर पडोसी देश के रास्ते कहीं और निकल ले और हम मुफ़्त में जँगली ही बने रह जाएँ।