
उनका कहना है कि यदि सरकार सचमुच ही तालाब को बचाने की मंशा रखती है तो जैसे स्मार्ट सिटी फंड बनाया गया है, वैसे ही अपर लेक फंड भी बनाया जाना चाहिए। तालाब से सरकार को कमाई नहीं होने से इस तरफ कभी मौलिक ढंग से सोचा नहीं गया। उसके लिए अलग से कोई फंड नहीं है। आप याद रखिए खेती में रसायनों के उपयोग के कारण पानी की गुणवत्ता का ग्रेड भी सी या डी हो जाएगा। अभी बी-ग्रेड है।
तालाब दो जिलों में फैला है। सीहोर जिले में कैचमेंट व भोपाल में एफटीएल है। तालाब पानी की जरूरतों को पूरा करता है। इसलिए भोपाल वालों का जुड़ाव है। जबकि सीहोर में ऐसा नहीं है। तालाब के लिए वहां के लोग खेती व मकान नहीं छोड़ सकते। यही चिंता का विषय है। पूरा कैचमेंट उधर है। खेतों से रसायन तालाब पहुंच रहे हैं। यहां पक्के निर्माणों के कारण पानी के बहाव का प्राकृतिक रास्ता बंद हो रहा है।
मास्टर प्लान के प्रावधानों को सावधानी के साथ लागू करने में और देरी हुई तो 20 साल बाद बड़ा तालाब खत्म हो जाएगा। सबसे ज्यादा खतरा कैचमेंट में हो रहे पक्के निर्माण और अतिक्रमण से है। इससे पानी की आवक बंद हो जाएगी। जिस तरह कैचमेंट एरिया में निर्माण हो रहे हैं, उसका असर पांच साल बाद दिखाई देने लगेगा। इससे तालाब का एफटीएल कम हो जाएगा और कैचमेंट एरिया भी सिकुड़ जाएगा।
रिपोर्ट में क्या खास...
तालाब के फुल टैंक लेवल और कैचमेंट से रसायनिक खेती खत्म की जाए।
फुल टैंक लेवल से 300 मीटर तक सभी तरह के निर्माण रोके जाएं।
कैचमेंट और फुल टैंक लेवल पर 50 मीटर के दायरे में ग्रीन बेल्ट बने।
भौंरी, बकानिया, मीरपुर और फंदा आदि क्षेत्रों में हाउसिंग, कमर्शियल और अन्य प्रोजेक्ट्स पर प्रतिबंध।
कैचमेंट के 361 वर्ग किमी क्षेत्र में फार्म हाउस की अनुमति भी शर्तों के साथ।
वीआईपी रोड पर खानूगांव से बैरागढ़ तक बॉटनिकल गार्डन, अर्बन पार्क विकसित करना।
पुराने याट क्लब का रिनोवेशन कर यहां नया बोट क्लब बनाना।
वन विहार वाले क्षेत्र में गाड़ियां प्रतिबंधित कर यहां ईको टूरिज्म को बढ़ावा देना।
स्मार्ट सिटी की तरह अपर लेक फंड बनाइए
कैचमैंट में पानी का प्राकृतिक बहाव सिमट रहा है
बेहिसाब निर्माण का असर पांच साल में दिखेगा