
मामला मध्यप्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग अधिनियम की धारा-4 (3)(च) के तहत विधिवत सुनवाई का अवसर दिए बगैर पदच्युत किए जाने के अवैधानिक रवैये को कठघरे में रखे जाने से संबंधित है। मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से तर्क रखा गया कि उसके कार्य-व्यवहार से किसी पिछड़े वर्ग के व्यक्ति की उपेक्षा होने की सूरत में अधिनियम की निर्धारित धारा के तहत विधिवत कार्रवाई के बाद ही पद से हटाना विधिसम्मत माना जाता। चूंकि ऐसा नहीं किया गया, अत: बर्खास्तगी चुनौती के योग्य है।
व्यापमं घोटाले से जोड़ना बेमानी
बहस के दौरान राज्य शासन की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता का नाम बहुचर्चित व्यापमं घोटाले में आया था। आरोप लगा था कि बेटे को प्रीपीजी में पद का दुरुपयोग करते हुए लाभ दिलाया गया। इस सिलसिले में ग्वालियर में एसटीएफ ने केस दर्ज किया था। इसीलिए पद से हटाकर लालबत्ती छीनी गई।
जुलाई 2013 में हुई नियुक्ति 3 साल के लिए थी। अगस्त 2015 में पदच्युत कर दिया गया था। लेकिन फाइल नवंबर 2015 तक दबी रही। दिसम्बर 2015 में कार्रवाई के बाद याचिकाकर्ता हाईकोर्ट चला आया। याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि व्यापमं वाले मामले को इस याचिका के साथ जोड़कर न देखा जाए, यहां सिर्फ नियम-कायदे का प्रश्न महत्वपूर्ण है।