
दोषी पुलिसकर्मियों को अलग-अलग श्रेणी में सजा सुनाई है साथ ही सभी पर श्रेणी अनुसार जुर्माना भी लगाया है। जुर्माने की इस राशी से पीड़ित परिवारों को प्रति परिवार 14 लाख रुपए देने का आदेश दिया है। अदालत ने प्रति इंस्पेक्टर 11 लाख, सब इंस्पेक्टर को 7 लाख और सिपाही को 2.75 जाख रुपए का जुर्माना लगाया है।
न्याय की लंबी लड़ाई के दौरान आरोपी तत्कालीन थानाध्यक्ष न्यूरिया छत्रपाल सिंह, उपनिरीक्षक ब्रह्मापाल सिंह, कांस्टेबिल अशोक पाल सिंह, कांस्टेबिल राम स्वरूप, कांस्टेबिल अशोक कुमार, उपनिरीक्षक राजेश चन्द्र शर्मा, उपनिरीक्षक एमपी सिंह, कांस्टेबिल मुनीश खां, कांस्टेबिल कृष्ण बहादुर एवं कांस्टेबिल सूरजपाल सिंह की मृत्यु होने के कारण अदालत ने उनका मामला समाप्त कर दिया था। अदालत ने 181 पृष्ठ के निर्णय में कहा है कि इसमें किसी बात का संदेह नहीं है कि थाना बिलसंडा के फगुनाईघाट में मारे गए चार सिखों के शवों का पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद लावारिस दिखाकर अंतिम संस्कार कर दिया।
इसी तरह थाना न्यूरिया के धमेला कुआं में चार सिख एवं थाना पूरनपुर के पत्ताबोझी में दो शवों का पोस्टमार्टम कराकर अंतिम संस्कार कर दिया। इस प्रकार 10 सिख युवकों को पीलीभीत पुलिस द्वारा मारे जाने में कोई संदेह नहीं है।
अदालत ने कहा कि 12 जुलाई 1991 को 10 सिख युवकों को पुलिसकर्मियों द्वारा बस से उतार कर नदी के किनारे एक नीली बस में बिठाकर ले जाया गया। इन दस सिख युवकों को पुलिस बल ने तीन भागों में बांट दिया। एक दल के कब्जे में चार सिख युवक, दूसरे दल के कब्जे में चार सिख युवक एवं तीसरे दल के कब्जे में दो सिख युवक थे। जंगल में ले जाकर फर्जी मुठभेड़ दिखाते हुए उनकी हत्या कर दी गई।
यह था घटनाक्रम
12 जुलाई 1991 को नानक मथा पटना साहिब, हुजूर साहिब एवं अन्य तीर्थस्थलों की यात्रा करते हुए 25 सिख यात्रियों का जत्था बस संख्या यूपी 26/0245 से वापस लौट रहा था, तभी कछाला घाट के पास से पुलिसकर्मियों ने बस से 10 सिख युवकों को उतार लिया और तीन थाना क्षेत्रों में मुठभेड़ दिखाकर उनकी हत्या कर दी। मृत सिख युवकों के विरुद्ध पुलिस ने जानलेवा हमला करने की रिपोर्ट अलग-अलग दर्ज कराई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था सीबीआई जांच का आदेश
पीलीभीत सिख नरसंहार के नाम से चर्चित इस मामले की सीबीआई जांच के लिए वकील आरएस सोठी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जनहित याचिका दायर की थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार करते हुए 15 मई 1992 को सीबीआई से मामले की जांच कराने का आदेश दिया था। सीबीआई ने अपनी जांच में पुलिस मुठभेड़ को फर्जी करार देते हुए 12 जून 1995 को 57 पुलिसकर्मियों के विरुद्ध धारा 302, 365, 364, 120बी, 218, 217 भा.द.सं. के तहत आरोप पत्र दाखिल किया था। इन सभी अभियुक्तों के विरुद्ध अदालत ने 20 जनवरी 2003 को आरोप तय किया था।
अदालत ने इन्हें दोषी दिया करार
विशेष न्यायाधीश सीबीआई लल्लू सिंह ने दोष सिद्ध का निर्णय सुनाने के बाद आरोपी तत्कालीन थानाध्यक्ष मो. अनीस, उप निरीक्षक हरपाल सिंह, उपनिरीक्षक वीर पाल सिंह, तत्कालीन थानाध्यक्ष पूरनपुर विजेन्द्र सिंह, उपनिरीक्षक एमपी मित्तल, उपनिरीक्षक सुरजीत सिंह एवं उप निरीक्षक सत्यपाल सिंह के अलावा हेडकांस्टेबल नत्थू सिंह, कांस्टेबल बदन सिंह, कांस्टेबल सत्येन्द्र सिंह, कांस्टेबल नेम चन्द्र, कांस्टेबल करन सिंह, कांस्टेबल कृष्णवीर, कांस्टेबल लाखन सिंह, कांस्टेबल रामचन्द्र सिंह, कांस्टेबल हरपाल सिंह, कांस्टेबल राम नगीना एवं कांस्टेबल दिनेश सिंह के अलावा अरविन्द सिंह को एवं कांस्टेबल ज्ञान गिरि को न्यायिक अभिरक्षा में लेकर जेल भेज दिया।
गैरहाजिर पुलिसकर्मी
सुभाष चन्द्र, नाजिम खां, राजेन्द्र सिंह, नारायन दास, राकेश सिंह, शमशेर अहमद, देवेन्द्र पांडेय, रमेश चन्द्र, धनीराम, सुगम चन्द्र, कलेक्टर सिंह, कुवर पाल सिंह, श्याम बाबू, बनवारी लाल, सुनील कुमार दीक्षित, विजय कुमार सिंह, एमसी दुर्गापाल, आरके राघव, उदय पाल सिंह, मुन्ना खां, दुर्विजय सिंह, महावीर सिंह, रजिस्टर सिंह, राशिद हुसैन, दुर्विजय सिंह, सैयद अली रजा रिजवी के विरुद्ध अदालत ने न केवल गिरफ्तारी वारंट जारी किया है बल्कि उनके जामिनदारों को नोटिस जारी किया गया है।