तेलंगाना राज्य में 42% ओबीसी आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट में खारिज कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दायर करने वाले को कहा है कि वह अपने राज्य के हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने के लिए स्वतंत्र है।
तेलंगाना सरकार ने एक आदेश (G.O.Ms. No. 09, दिनांक 26.09.2025) जारी किया, जिसके तहत पिछड़े वर्गों (Backward Classes) को स्थानीय निकायों (जैसे ग्राम पंचायत, म्यूनिसिपैलिटी) में 42% आरक्षण दिया गया है। यह 42% आरक्षण, अनुसूचित जाति (SC) के 15% और अनुसूचित जनजाति (ST) के 10% के साथ मिलकर, कुल आरक्षण को 67% से ज़्यादा कर देता है।
आपत्ति क्यों है?
सुप्रीम कोर्ट की इंदिरा साहनी गाइडलाइन के अनुसार, किसी भी मामले में कुल आरक्षण 50% से ज़्यादा नहीं होना चाहिए। यह आदेश सीधे उस 50% की सीमा को तोड़ता है। तेलंगाना पंचायत राज अधिनियम, 2018 की धारा 285A में भी 50% की सीमा तय की गई है। याचिका दायर करने वाले का कहना है कि राज्य सरकार अपने ही कानून और संविधान के खिलाफ जाकर यह आदेश लागू कर रही है।
कोर्ट के पुराने फैसले का ज़िक्र:
दस्तावेज़ में के. कृष्णा मूर्ति बनाम भारत संघ के एक पुराने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ज़िक्र है, जिसमें कहा गया था कि: स्थानीय सरकारों (Local Governments) में आरक्षण का उद्देश्य, नौकरियों या शिक्षा में आरक्षण से काफी अलग होता है। (यह बात शायद 50% की सीमा में कुछ अपवाद की गुंजाइश बताने के लिए कही गई है, लेकिन याचिकाकर्ता इसे 50% की सीमा के समर्थन में इस्तेमाल कर रहा है।)
संक्षेप में, यह याचिका तेलंगाना सरकार के 67% से ज़्यादा आरक्षण देने वाले आदेश को रद्द करवाने के लिए दायर की गई है।
अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि, ओबीसी एडवोकेटस वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा सुप्रीम कोर्ट मे हस्तक्षेप याचिका दाखिल करके ओबीसी के 42 परसेंट आरक्षण को समर्थन किया तथा याचिका की प्रचलन शीलता पर गंभीर सवाल उठाया। इसके साथ ही तेलंगाना राज्य में 42 परसेंट ओबीसी आरक्षण के समर्थन में अपने सहयोगी वरुण ठाकुर के साथ उपस्थित होकर अपना पक्ष रखा।