एक दीप जलाने आया हूं
जग जंजालों को त्याग प्रभु
यह "विनय" सुनाने आया हूं।।
है रूप सलोना सुंदर सा
मुख मंडल आभा प्यारी है।
कानों में कुंडल चमक रहा
चितवन न्यारी कजरारी है।
यह रूप बनाकर श्रद्धा से
मन मंदिर में पधराया हूं ।1।
भगवान तुम्हारी चौखट पर
एक दीप जलाने आया हूं।।
जग जंजालों को त्याग प्रभु
यह विनय सुनाने आया हूं ।।
है भाल विशाल समुन्नत सा
चंदन की छटा निराली है।
पीतांबर अंग सुशोभित है
और चाल मधुर मतवाली है।
मलयागिरि सुरभित थाल लिए
मैं तिलक लगाने आया हूं ।2।
हे राम तुम्हारी चौखट पर
एक दीप जलाने आया हूं।
जग जंजालों को त्याग प्रभु
यह विनय सुनाने आया हूं।।
गुरुवाणी पर विश्वास अटल
जीवन भर राह बुहारूंगा ।
राहों के कांटे चुन चुन कर
सिय राम ही राम पुकारूंगा।
शबरी मां जैसा भाव लिए
दो बेर खिलाने आया हूं ।3।
हे राम तुम्हारी चौखट पर
एक दीप जलाने आया हूं।
जग जंजालों को त्याग प्रभु
यह विनय सुनाने आया हूं ।।
- डॉ. विनय दुबे, रीवा
संपर्क 9827352863
शासकीय उत्कृष्ट उ.मा.वि. मार्तण्ड क्र.1 रीवा