महर्षि वाल्मीकि आदिकवि माने जाते हैं और उनके द्वारा रचित रामायण भारतीय संस्कृति, धर्म और नैतिकता का आधार है। वाल्मीकि केवल कवि नहीं, बल्कि मानव चेतना के जागरणकर्ता भी हैं। महर्षि वाल्मीकि भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में एक युग-प्रवर्तक ऋषि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनका जन्म प्रचेतस (वरुण) के वंश में हुआ और उनकी माता का नाम चर्षणी तथा भ्राता भृगु था। वाल्मीकि का प्रारंभिक जीवन अत्यंत रोचक और परिवर्तनशील था।
रत्नाकर का नाम वाल्मीकि क्यों पड़ा
प्रारंभ में वे रत्नाकर नामक डाकू थे, जो यात्रियों को लूटकर अपने परिवार का पालन करते थे। एक दिन देवर्षि नारद ने उनसे पूछा कि क्या उनका परिवार उनके कर्मों का भागीदार बनेगा। जब परिवार ने स्पष्ट रूप से इनकार किया, तब रत्नाकर को अपनी गलती का बोध हुआ। नारद के निर्देशानुसार उन्होंने जप आरंभ किया, जो उनके द्वारा त्रुटिपूर्वक “मरा-मरा” बोला गया एवं ये बाद में “राम-राम” बन गया। दीर्घ तपस्या के दौरान उनका शरीर दीमकों से ढक गया, जिससे उन्हें वाल्मीकि कहा गया।
वाल्मीकि की पहली रचनात्मक अभिव्यक्ति
वाल्मीकि की पहली रचनात्मक अभिव्यक्ति उस समय हुई जब उन्होंने तमसा नदी के तट पर क्रौंच पक्षी के युगल को देखा। शिकारी ने नर पक्षी को मार दिया, जिससे वाल्मीकि की संवेदना प्रकट हुई और उन्होंने शिकारी को श्राप दिया। यही श्लोक संस्कृत काव्य का प्रथम श्लोक माना जाता है:
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमश्शाश्वतीस्समा: ।
यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधी: काममोहितम् ।।1.2.15।।
हे निषाद! तू कभी भी स्थायी प्रतिष्ठा प्राप्त न कर सके, क्योंकि तूने प्रेम में मोहित क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक का वध किया है।
वाल्मीकि ने ब्रह्मा के आदेशानुसार भगवान राम की कथा का दिव्य दर्शन प्राप्त किया
इसके बाद वाल्मीकि ने ब्रह्मा के आदेशानुसार भगवान राम की कथा का दिव्य दर्शन प्राप्त किया और 24,000 श्लोकों में रामायण की रचना आरंभ की। रामायण सात कांडों में विभाजित है: बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुंदरकाण्ड, युद्धकाण्ड और उत्तरकाण्ड। वाल्मीकि ने राम, सीता, लक्ष्मण, भरत, हनुमान और अन्य प्रमुख पात्रों के चरित्रों को आदर्श रूप में प्रस्तुत किया।
वाल्मीकि के आश्रम में माता सीता ने अपने वनवास काल में शरण ली और वहां उनके पुत्र लव और कुश का जन्म हुआ। वाल्मीकि ने दोनों को वेद, धनुर्वेद और रामकथा का ज्ञान दिया, जिससे वे रामायण के गायक बने। वाल्मीकि ने सीता के चरित्र और उनके वनवास के अनुभव को भी आदर्श रूप में प्रस्तुत किया है।
रामायण केवल धार्मिक आख्यान नहीं है, बल्कि यह आदर्श मानव जीवन और नैतिक मूल्यों का दर्पण है। राम को मर्यादा पुरुषोत्तम, सीता को पवित्रता की प्रतिमूर्ति और हनुमान को भक्ति एवं सेवा का प्रतीक दिखाया गया है। वाल्मीकि ने मानव जीवन में धर्म, त्याग, करुणा और भक्ति के महत्व को उजागर किया।
Moral of the Story of Maharishi Valmiki
महर्षि वाल्मीकि का जीवन यह सिद्ध करता है कि अज्ञान से ज्ञान और पाप से पुण्य की ओर यात्रा संभव है। रत्नाकर से वाल्मीकि बनने की उनकी कथा यह दर्शाती है कि सत्संग, भक्ति और तपस्या से कोई भी मनुष्य महर्षि बन सकता है। उनका साहित्य कालातीत है क्योंकि यह मानवता के आंतरिक परिवर्तन और आत्म-जागरण का संदेश देता है। वाल्मीकि का जीवन और उनका काव्य केवल संस्कृत साहित्य में ही नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता, धर्म और नैतिकता में भी अमूल्य योगदान है।
लेखक- मानसश्री डॉ. नरेंद्र कुमार मेहता, Sr. MIG-103, व्यास नगर, ऋषि नगर विस्तार, उज्जैन (म.प्र.) 456 010 मो.: 9424560115, drnarendrakmehta@gmail.com