आजकल नेताओं द्वारा सोशल मीडिया के जरिए उकसाने वाले बयान ज्यादा दिए जा रहे हैं, लेकिन वह नहीं जानते कि यदि उनके सोशल मीडिया अकाउंट पर 10 से अधिक फॉलोअर हैं या फिर वह ऑफलाइन कोई ऐसी गतिविधि कर रहे हैं जिसके कारण 10 से अधिक लोग प्रभावित हो सकते हैं तो नेताजी को न केवल 7 साल कठोर कारावास की सजा होगी बल्कि नेताजी चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे और यदि नेताजी पहले से कोई चुनाव जीत कर जनप्रतिनिधि (पंचायत सदस्य से लेकर संसद तक) बन चुके हैं तो अयोग्य घोषित कर दिए जाएंगे।
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 57: भीड़ को उकसाने पर अब कड़ी सज़ा
भारत में आपराधिक कानून में एक युगांतकारी परिवर्तन हुआ है, जिसमें भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 ने भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की जगह ली है। BNS का उद्देश्य न्याय प्रदान करना है, न कि केवल दंड देना। इस नई संहिता के तहत, दुष्प्रेरण (Abetment) जैसे अपराधों से संबंधित प्रावधानों को समेकित किया गया है और दंड की गंभीरता को बढ़ाया गया है।
BNS की धारा 57: आम जनता या दस से अधिक व्यक्तियों द्वारा अपराध किए जाने का दुष्प्रेरण
BNS के अध्याय IV में 'दुष्प्रेरण, आपराधिक षड्यंत्र और प्रयत्न' (Of Abetment, Criminal Conspiracy and Attempt) से संबंधित प्रावधान शामिल हैं। इसी अध्याय की धारा 57 एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो सार्वजनिक शांति को भंग करने वाले सामूहिक कृत्यों के दुष्प्रेरण पर रोक लगाती है।
BNS की धारा 57 क्या कहती है?
BNS की धारा 57 कहती है "आम जनता या दस से अधिक व्यक्तियों द्वारा अपराध किए जाने का दुष्प्रेरण"।
यह धारा निर्धारित करती है कि, "जो कोई आम जनता या दस से अधिक व्यक्तियों की किसी संख्या या वर्ग द्वारा अपराध किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, उसे किसी भी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और वह जुर्माने से भी दंडनीय होगा"। सरल शब्दों में, यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध को करने के लिए आम जनता को, या दस से अधिक लोगों के किसी समूह या वर्ग को उकसाता है, तो उसे इस धारा के तहत दंडित किया जाएगा।
Illustration: मुख्य तत्व और उदाहरण
यह प्रावधान विशेष रूप से बड़े समूहों को लक्षित करता है, जहां उकसावे की कार्रवाई सार्वजनिक व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती है। इस अपराध को बेहतर ढंग से समझने के लिए, संहिता में एक दृष्टांत (Illustration) भी दिया गया है: 'K' एक सार्वजनिक स्थान पर एक पोस्टर चिपकाकर दस से अधिक सदस्यों वाले एक पंथ को एक निश्चित समय और स्थान पर मिलने के लिए उकसाता है, जिसका उद्देश्य किसी जुलूस में लगे विरोधी पंथ के सदस्यों पर हमला करना होता है। 'K' ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है। यह प्रावधान उन स्थितियों को शामिल करता है जहां आपराधिक कृत्यों के लिए भीड़ को प्रेरित किया जाता है, अक्सर जिससे दंगे या सार्वजनिक शांति भंग होने की स्थिति उत्पन्न होती है।
दंड में वृद्धि - IPC से तुलना
BNS की धारा 57, पिछली भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 117 के अनुरूप है, लेकिन भारतीय न्याय संहिता में दंड की अवधि में वृद्धि कर दी गई है। आईपीसी की धारा 117 के तहत अधिकतम 3 वर्ष तक कारावास का प्रावधान था, और जुर्माना ऑप्शनल था। जबकि BNS की धारा 57 के तहत 7 वर्ष तक कठोर कारावास का प्रावधान किया गया है और जुर्माना अनिवार्य है।
यदि भड़काने के बाद भी जनता नहीं भड़की तब क्या होगा
यदि किसी व्यक्ति ने भीड़ को भड़काने की कोशिश की लेकिन भीड़ में किसी कानून का उल्लंघन नहीं किया और शांति बनी रही फिर भी भीड़ को भड़काने की कोशिश करने वाले व्यक्ति को धारा 57 के तहत दंडित किया जाएगा। ✍️लेखक: उपदेश अवस्थी, पत्रकार एवं विधि सलाहकार। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article. डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।